राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव का ताल्लुक फुलवरिया प्रखंड से है और फुलवरिया प्रखंड हथुआ विधानसभा क्षेत्र में आता है। हैरानी की बात ये है कि हथुआ विधानसभा क्षेत्र में कभी भी राजद को जीत नहीं मिल सकी है और 2005 के बाद से इस सीट पर जदयू का कब्जा है। जदयू सरकार में समाज कल्याण मंत्री रामसेवक सिंह 2005 से ही इस सीट पर जीतते आ रहे हैं। हालांकि इस बार मुकाबला कड़ा होने की उम्मीद की जा रही है।

इसकी वजह है कि इस बार राजद हथुआ सीट पर पूरा जोर लगा रही है। हथुआ सीट से तीन बार विधायक रहे प्रभुदयाल सिंह के भतीजे और राजद के जिलाध्यक्ष राजेश सिंह कुशवाहा अपने चाचा की विरासत संभालने की तैयारी में जुटे हैं। जदयू की तरफ से एक बार फिर रामसेवक सिंह ही हथुआ सीट के चुनाव में ताल ठोक सकते हैं। बता दें कि पहले हथुआ सीट मीरगंज सीट के अंतर्गत आती थी लेकिन 2010 में परिसीमन के बाद मीरगंज का अस्तित्व खत्म हो गया और हथुआ विधानसभा क्षेत्र बना।

बता दें कि हथुआ से मौजूदा विधायक रामसेवक सिंह साल 2001 में पंचायत चुनाव से अपने राजनैतिक करियर की शुरुआत की थी। इसके बाद साल 2005 में वह मीरगंज सीट से (जो कि अब हथुआ सीट हो गई है) पहली बार विधायक चुने गए। इसके बाद से वह ही इस सीट पर चुनाव जीतते आए हैं।

जदयू से पहले हथुआ सीट पर कांग्रेस पार्टी का दबदबा था। साल 1977 में जनता पार्टी के भवेश चंद्र प्रसाद ने यहां से जीत दर्ज की और फिर 1980 के विधानसभा चुनाव में भी जनता पार्टी को ही जीत मिली। 1985 में यहां प्रभुदयाल सिंह की एंट्री हुई और वह पहले कांग्रेस और फिर निर्दलीय चुनाव जीतकर विधानसभा पहुंचे।

1995 में सीपीएम के विश्वनाथ सिंह ने प्रभुदयाल सिंह को हराकर इस सीट पर कब्जा किया। साल 2000 में एक बार फिर प्रभुदयाल सिंह ने समता पार्टी के टिकट पर यहां से जीत दर्ज की। इसके बाद 2005 से इस सीट पर रामसेवक सिंह का दबदबा बना हुआ है।

हथुआ सीट पर कुशवाहा वोटबैंक का अच्छा खासा प्रभाव है। यही वजह है कि इस बार रालोसपा भी यहां से दावेदारी पेश कर रही है और लोजपा ने भी इस सीट से चुनाव लड़ने की इच्छा जतायी है। भाजपा में तो कई नेता टिकट ना मिलने की स्थिति में बगावत के मूड में हैं और भाजपा नेता मकसूदन सिंह कुशवाहा तो निर्दलीय चुनाव लड़ने की तैयारी भी कर रहे हैं।