राजनीति से बाहुबल को दूर करने की बातें लंबे समय से हो रही हैं लेकिन अभी यह दूर की कौड़ी ही नजर आ रहा है। मौजूदा बिहार चुनाव को ही देखें तो यहां भी अपराधिक छवि वाले नेताओं का दबदबा खासा दिखाई दे रहा है। एसोसिएशन ऑफ डेमोक्रेटिक रिफॉर्म (एडीआर) और बिहार इलेक्शन वॉच की एक रिपोर्ट में बताया गया है कि बिहार के सभी राजनैतिक दलों में बाहुबली नेताओं की घुसपैठ है।
एडीआर और बिहार इलेक्शन वॉच की यह रिपोर्ट 2005, 2010 और 2015 विधानसभा चुनाव के साथ ही 2009, 2014, 2019 के लोकसभा चुनाव में उम्मीदवारों द्वारा दिए गए उम्मीदवारों के शपथ पत्र पर आधारित है। रिपोर्ट के अनुसार, इस अंतराल में राजद ने 502 उम्मीदवारों को टिकट दिया, जिनमें से सबसे ज्यादा 280 दागी उम्मीदवार थे। इनमें से 32 फीसदी चुनाव जीते हैं।
नीतीश कुमार की छवि बिहार में विकास पुरुष की है लेकिन दागी उम्मीदवारों से उनकी पार्टी भी अछूती नहीं है ब्लकि यूं कहें कि सभी से आगे दिखाई देती है। जदयू के 454 उम्मीदवारों में से 235 दागी उम्मीदवार थे और इनमें से 64 फीसदी चुनाव जीते हैं। भाजपा के टिकट पर 252 दागी उम्मीदवार चुनाव लड़े हैं, जिनमें से 61 फीसदी ने चुनाव में जीत हासिल की है।
कांग्रेस पार्टी भी इस मामले में पीछे नहीं है। रिपोर्ट के अनुसार, कांग्रेस ने 2005 से 2019 के चुनाव तक 394 उम्मीदवार मैदान में उतारे हैं, जिनमें से 170 पर अपराधिक मामले हैं। कांग्रेस के टिकट पर 15 फीसदी दागी चुनाव जीत चुके हैं।
बिहार में अन्य छोटी पार्टियों की बात करें तो वो भी दागी नेताओं को टिकट देने में पीछे नहीं हैं। बसपा ने 234, लोजपा ने 155, भाकपा ने 91, माले ने 187, रालोसपा ने 19 दागी नेताओं को टिकट दिया है। गौरतलब है कि 880 दागी नेता निर्दलीय भी चुनाव लड़ चुके हैं और इनकी जीत का प्रतिशत 2 फीसदी है।
रिपोर्ट में यह भी पता चला है कि बिहार में साफ सुथरी छवि के उम्मीदवारों की जीत का प्रतिशत महज 5 फीसदी है। वहीं दागी उम्मीदवारों की जीत का प्रतिशत 15 फीसदी है। बिहार की राजनीति में बाहुबल का इतना दबदबा है कि वहां चुनाव लड़ने वाली कुल महिला उम्मीदवारों में से 19 प्रतिशत दागी हैं। पुरुष उम्मीदवारों में 31 फीसदी दागी हैं और 21 फीसदी के खिलाफ गंभीर मामले दर्ज हैं।