बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने नौजवानों से उच्च शिक्षा हासिल करने और कौशल विकास के जरिए हुनरमंद होने की ओर अपना ध्यान लगाने की अपील की। और साथ ही बोले कि किसी के बहकावे में आकर लड़ाई झगड़े के फेर न रहे। राजनीति में सभी धर्मों का सम्मान होना चाहिए। उनका यह इशारा क्या कहता है? राजनैतिक रणनीतिकार जरूर इसका मायने निकालेंगे। मगर उनके भाषण के बाद यह सवाल उठने लगा है कि क्या भाजपा से अलग होने का यह कही संकेत तो नहीं। वैसे जदयू के उपाध्यक्ष प्रशांत किशोर ने तो दो टूक कहा है कि राम मंदिर पर अध्यादेश आया तो जदयू समर्थन नहीं करेगी। यह सब बातें हिंदी पट्टी के तीन राज्यों में भाजपा की शिकस्त के बाद जदयू अपना भविष्य सोचकर कर रही है। ऐसा जाहिर होता है।
बगैर किसी दल या व्यक्ति का नाम लिए करारा हमला करते हुए उन्होंने कहा कि लोग टकराव की राजनीति में यकीन करते हैं। जबकि सिद्धांत विहीन राजनीति पाप है। गांधी जी ने भी यही पाठ पढ़ाया है। गांधी का अनुयायी हूँ। इसी वजह से इस पर ध्यान देता हूं। टकराव की राजनीति से राज्य और देश का भला नहीं हो सकता है। आज के नौजवानों के पास समझ की काफी शक्ति है। लोग उल्टा पुलटा समझकर आपस में लड़ाना चाहते है। बारबार मंच से उन्होंने युवाओं से बहकावे में न आने के लिए सावधान किया।

वे भागलपुर के सैंडिस कम्पाउंड स्टेडियम में राष्ट्रीय कौशल विकास योजना के तहत लगे तीन रोजा रोजगार सह अप्रेंटिस मेले का मुआयना व युवाओं से रु-ब-रु होने शनिवार को दोपहर आए थे। शुक्रवार को मेला का उदघाटन श्रम संसाधन मंत्री विजय कुमार सिंहा ने किया था। मुख्यमंत्री के साथ जल संसाधन व योजना मंत्री राजीव रंजन सिंह उर्फ लालन सिंह व इलाके के जद (एकी) के विधायक सुबोध राय , गोपाल मंडल , अजय मंडल, मनोज यादव (विधान पार्षद) भी मौजूद थे। समारोह में भाजपा के इक्के दुक्के स्थानीय नेता के अलावे कोई नजर नहीं आया। जबकि शुक्रवार को उनके दल के मंत्री के उदघाटन के मौके पर भाजपा के लोग ज्यादा थे और जदयू के कम। रिश्ते की खटास इसी से समझी जा सकती है।

