बिहार में जाति आधारित जनगणना में ट्रांसजेंडर को एक जाति के रूप में दर्शाए जाने को लेकर नया विवाद खड़ा हो गया है। राज्य में जातियों की अब संख्या के रूप में एक कोड के आधार पर पहचान की जाएगी। 15 अप्रैल से जाति आधारित जनगणना का दूसरा चरण शुरू हुआ है, जो 15 मई तक चलेगा। इस दौरान जातियों को एक कोड दिया गया है। इसके तहत, थर्ड जेंडर को एक जाति कोड के आवंटन के साथ एक अलग जाति माना गया है। इसी तरह बाकी 214 जातियों को भी एक कोड दिया गया है।
थर्ड जेंडर के लिए जाति कोड 22 है। इसके बाद नया विवाद शुरू हो गया है और समुदाय ने इस कदम को भेदभावपूर्ण और मनमाना बताया है। ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के लिए सामाजिक कार्यकर्ता रेशमा प्रसाद ने 17 अप्रैल, 2023 को इस मामले में अधिवक्ता शाश्वत द्वारा पटना उच्च न्यायालय में एक जनहित याचिका के रूप में एक रिट याचिका दायर की थी। रेशमा प्रसाद का कहना है कि उन्हें लगता है कि राज्य सरकार ट्रांसजेंडर समुदाय के प्रति असंवेदनशील है इसलिए अदालत जाने के अलावा उनके पास कोई विकल्प नहीं है।
याचिका में अनुच्छेद 14, 15, 16, 19 (1) (ए) और 21 के साथ सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला देते हुए कहा गया कि ट्रांसजेंडर्स को एक जाति के रूप में वर्गीकृत करना असंवैधानिक और मनमाना है।
न्यूज 18 की एक रिपोर्ट के मुताबिक, रेशमा प्रसाद ने कहा, “मैं यह नहीं कहती कि जाति सर्वेक्षण की पूरी प्रक्रिया गलत है लेकिन ट्रांसजेंडर व्यक्तियों को एक जाति के तहत वर्गीकृत करना निश्चित रूप से गलत है। अंतरराष्ट्रीय दिशानिर्देशों और एनएलएसए बनाम भारत संघ ने हमें लैंगिक पहचान दी है, जातिगत पहचान नहीं। यह ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के खिलाफ एक बड़ा भेदभाव है। बिहार के अलावा किसी और देश या राज्य ने ऐसा नहीं किया है। यह निंदनीय है।”
वहीं, समुदाय के लोगों का कहना है कि ट्रांसजेंडर के तौर पर हमें श्रेणीबद्ध करना गलत है। एक ट्रांसजेंडर ने कहा, “मेरी अपनी जातिगत पहचान है। सरकार को इस बारे में सोचना चाहिए।” रिपोर्ट के मुताबिक, एक ट्रांसजेंडर ने सवाल किया कि क्या एक पुरुष या महिला की पहचान उनकी जाति है या उनका लिंग। उन्होंने आरोप लगाया कि बिहार सरकार ने हमारी पहचान खराब करने के लिए ऐसा किया है। उन्होंने कहा, “हम विरोध नहीं करना चाहते हैं, लेकिन बहुत विनम्रता से मुख्यमंत्री से अपना फैसला वापस लेने का अनुरोध करते हैं।”