बिहार के चुनाव के आंकड़ों में इस बार महागठबंधन में चुनाव लड़ रही कांग्रेस पार्टी को अब तक का सबसे बड़ा नुकसान उठाना पड़ा है। यह नुकसान न सिर्फ वर्ष 2025 के चुनावी आंकड़े बता रहे हैं, बल्कि देश में बिहार के इतिहास में 1951 से 2020 के बीच दर्ज चुनाव का इतिहास भी इसी ओर इशारा कर रहा है। वर्ष 2000 के चुनावी आंकड़ों के आंकलन में यह सबसे खराब ऐतिहासिक आंकड़ा निकाल कर आया है। कांग्रेस इस बार राजद के साथ आने के बाद भी अपना जनाधार नहीं बढ़ा पाई।

निर्वाचन आयोग के आंकड़ों के मुताबिक शुरूआत से ही बिहार की सीटों पर कांग्रेस पार्टी की सीटों पर खराब प्रदर्शन था। कांग्रेस के उम्मीदवारों केवल छह सीटें जीतने में ही कामयाब रहे। इन सीटों में मनिहारी, चनपटिया, फारबिशगंज, अररिया, वाल्मीकि नगर हैं। इस बार कांग्रेस पार्टी 61 सीट पर ही चुनाव मैदान में थी। सफलता केवल छह सीटों तक सिमट गई। कांग्रेस को मिली करारी हार के कारण महागठबंधन के प्रदर्शन पर भी असर पड़ा। बीते चुनाव 2020 में कांग्रेस पार्टी ने 70 सीट पर चुनाव लड़ा था। कांग्रेस पार्टी ने 2020 के चुनाव में 19 विधानसभा सीट जीत थी।

इस बार के चुनाव में यह आंकड़ा : बिहार के चुनावी समीकरण बताते है कि कांग्रेस की सबसे मजबूत स्थिति 1952 में थी, उस समय कांग्रेस पार्टी का कुल 239 सीट पर कब्जा था और यहां 41.38 फीसद मत कांग्रेस पार्टी के पास थे। इसके बाद से ही लगातार कांग्रेस का मत फीसद और सीटों का आंकड़ा गिरता ही जा रहा है। वर्ष 1990 में यह आंकड़ा दो अंकों में आ गया था और कांग्रेस के पास 71 सीट थी। इसके बाद से वर्ष 2000 सीटों का यह आंकड़ा गिरकर केवल 23 सीट रह गया था। इसके बाद से ही सीटों और मतदान फीसद के आंकड़े में लगातार गिरावट दर्ज की जा रही है।

दोस्ताना समीकरण समझाने में सफल नहीं हो पाई कांग्रेस

पहली बार महागठबंधन में कांग्रेस पार्टी के खिलाफ उसके सहयोगी दल ही मैदान में थे। इस चुनाव में पार्टी सहयोगी दलों को समझाने में नाकाम रही। हालांकि इस चुनावी दंगल को कांग्रेस पार्टी ने दोस्ताना लड़ाई का नाम दिया था लेकिन महागठबंधन के अंदर का यह बवाल शायद कांग्रेस पार्टी अपने मतदाताओं को नहीं समझा पाई।

इसका असर भी इन सीट 11 सीट पर साफ नजर आया है। इन सीट में वैशाली, बिहार शरीफ, बछवाड़ा, राजापाकर, बेलदौर, चैनपुर, कलहगांव, सुलतान गंज, सिकंदरा, नरकटिया और करगहर विधानसभा सीट शामिल थी। इस बार मुस्लिम बहुल इलाकों की संख्या को ध्यान में रखकर ही कांग्रेस पार्टी ने 18 फीसद सीटों पर मुस्लिम उम्मीदवारों को उतारा था, लेकिन यह कार्ड भी चल रही पाया है। इसके अतिरिक्त बिहार चुनाव के दौरान कांग्रेस पार्टी ने मत चोरी को बड़ा मुद्दा बनाया था, इसका असर भी इस चुनाव में कहीं नजर नहीं आता। आयोग ने इस चुनाव में मतदान का भी नया कीर्तिमान बताया है।

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