Jaipur News: जयपुर के एक चूड़ी कारखाने में कथित तौर पर 18 घंटे तक काम कराने वाले सात बच्चे सोमवार रात को भाग निकले और एक कब्रिस्तान में जाकर छिप गए। इसके बाद आसपास के लोगों ने उन्हें ढूंढकर निकाला। इस बात की जानकारी पुलिस ने दी है। मंगलवार को बच्चों को डरा हुआ और परेशान देखकर स्थानीय लोगों ने पुलिस कंट्रोल रूम को सूचित किया।
फिर भट्टा बस्ती पुलिस स्टेशन और चाइल्ड वेलफेयर कमेटी की एक टीम घटनास्थल पर पहुंची। एसएचओ दीपक त्यागी ने इंडियन एक्सप्रेस को बताया, “इन बच्चों को दो महीने पहले बिहार स्थित उनके गांवों से जयपुर एक यात्रा के बहाने लाया गया था। यहां उनसे कठिन परिस्थितियों में 15-18 घंटे प्रतिदिन काम करवाया जाता था। आखिरकार वे सोमवार रात को भाग निकले, लेकिन भट्टा बस्ती की भीड़भाड़ वाली गलियों में भटक गए और कब्रिस्तान में छिप गए।”
बीमार पड़ने पर की जाती थी पिटाई
पुलिस के अनुसार, बच्चों ने पहले तो कुछ भी बोलने से इनकार कर दिया, लेकिन बाद में उन्होंने बताया कि समसाद मिया नाम का एक व्यक्ति उन्हें जयपुर लाया था। उसके खिलाफ जुवेनाइल जस्टिस एक्ट के तहत मामला दर्ज कर पुलिस हिरासत में ले लिया गया है। बच्चों ने आरोप लगाया कि उनके साथ अमानवीय व्यवहार किया जाता था। उन्हें दिन में केवल एक बार खाना दिया जाता था और बीमार पड़ने पर उनकी पिटाई की जाती थी। इतना ही नहीं उनसे रोजाना 18 घंटे तक काम कराया जाता था।
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बाल श्रम का मुद्दा दशकों पुराना
जयपुर के चूड़ी कारखानों में बाल श्रम का मुद्दा दशकों पुराना है और पिछले कुछ सालों में ऐसे कारखानों पर कई छापे मारे गए हैं। पुलिस के अनुसार, मालिक चाइल्ड लेबर का इस्तेमाल इसलिए करते हैं क्योंकि बच्चों के हाथ इतने छोटे होते हैं कि वे कांच की चूड़ियों पर आसानी से काम कर सकते हैं और उनसे वयस्कों को दी जाने वाली मजदूरी के आधे दाम पर काम कराया जा सकता है।
ज्यादातर बच्चे बिहार से लाए जाते हैं- विवेक शर्मा
आसरा फाउंडेशन जयपुर के डायरेक्ट विवेक शर्मा ने इंडियन एक्सप्रेस को बताया कि इनमें से ज्यादातर बच्चे बिहार से लाए जाते हैं। जयपुर के चूड़ी कारखाने के मालिक बिहार से इन बच्चों को चंद हजार रुपयों में तस्करी करके लाते हैं। उन्होंने कहा, “हर साल लगभग 4000 बच्चों को चूड़ी कारखानों में काम करने के लिए जयपुर लाया जाता है, लेकिन केवल 20% ही बचाए जा पाते हैं। हमने ऐसे मामले देखे हैं जहां बच्चों को भागने से रोकने के लिए उनके पैर ब्लेड से काट दिए गए। बिना ब्रेक के लंबे समय तक काम करने के कारण कई बच्चों की रीढ़ की हड्डी में गंभीर चोटें आईं। राजस्थान और बिहार दोनों सरकारों के लिए इस समस्या का समाधान निकालना जरूरी है।”