देश के पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी का सोमवार 25 दिसंबर को जन्मदिवस है। विकास के तमाम नारों के बावजूद वाजपेयी का पुश्तैनी गांव बटेश्वर आज भी बुनियादी समस्याओं से जूझ रहा है। कहीं पानी की समस्या तो कहीं भरी हुई नालियां सहजता से देखी जा सकती हैं। बिजली की कटौती से तो गांववासियों को दिन में कभी भी दो-चार होना पड़ता है। इस गांव में आज भी अटल बिहारी के परिवार के लोग निवास करते हैं। उनके भतीजे रमेश चंद्र, जो कि अपनी उम्र के छह दशक पार कर चुके हैं, का कहना था कि जब से उनके चाचा वाजपेयी बीमार हुए हैं, तब से गांव में विकास के नाम पर कुछ नहीं है। 2003 में जब वह आखिरी बार गांव आए थे, तब तक सब कुछ ठीकठाक था,‘विकास भी काफी था परंतु अब पानी के लिए भी काफी दूर तक जाना पड़ता है। मैं अस्वस्थ रहता हूं इसलिए इस काम को पत्नी ही करती हैं।’

गौरतलब है कि बटेश्वर गांव के वाजपेयी मोहल्ले से ही देश के पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने राजनीति का ककहरा शुरू किया था। अब यह वाजपेयी मोहल्ला विकास के अभाव में उजड़ चुका है। मकान भी देखरेख के अभाव में खंडहर बन चुका है। आखिरी बार अटल जी वर्ष 2003 में रेलवे लाइन के शिलान्यास के दौरान गांव में आए थे।

वहीं दूसरी ओर मान्यता के अनुसार बटेश्वर को तीर्थस्थल नहीं, बल्कि तीर्थराज कहा जाता है। यहां 101 शिव मंदिर की शृंखला है, वहीं मंदिरों के नजदीक बहने वाली यमुना यहां विपरीत दिशा में बहती है। बताया जाता है कि पानीपत के तीसरे युद्ध में वीरगति को प्राप्त हुए हजारों मराठों की याद में मराठा सरदार नारू शंकर ने बटेश्वर में एक विशाल मंदिर का निर्माण कराया था। यहां हर साल लाखों भक्त दर्शनों के लिए आते हैं परंतु यह पवित्र तीर्थ स्थल और अटल का पैत्रक गांव आज भी सरकारी मशीनरी की उपेक्षा का शिकार होते हुए विकास की बाट जोह रहा है। अब देखना यह होगा कि क्या सरकारी मशीनरी अटलजी को उनके जन्मदिन पर तोहफे के रूप में इस गांव का विकास कर पाएगी या नहीं।