उत्तर प्रदेश के बागपत जिले में पिछले शनिवार को हुई खाप पंचायत में 18 साल से कम उम्र के लोगों को स्मार्टफोन रखने और सार्वजनिक स्थानों पर हाफ पैंट पहनने पर रोक लगाने के निर्णय को लेकर समर्थन और विरोध के स्वर तेज हो गए हैं। पंचायत में बारात घरों में विवाह आयोजन पर भी आपत्ति जताते हुए कहा गया कि शादियां गांवों और घरों में ही होनी चाहिए। खाप ने लड़कों के लिए कुर्ता-पायजामा और लड़कियों के लिए सलवार-कुर्ता को बढ़ावा देने की वकालत की।
पंचायत के इन फैसलों का कुछ वर्गों ने स्वागत किया है, जबकि कई बुद्धिजीवियों और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने कड़ा विरोध जताया है। वरिष्ठ इतिहासकार डॉक्टर अमित राय जैन ने पंचायत के इन निर्णयों को ‘तुगलकी फरमान’ बताते हुए कहा कि मोबाइल फोन आज के समय की आवश्यकता बन चुका है। ऐसे में उससे दूरी बनाने का आदेश देना व्यावहारिक नहीं है। उन्होंने ‘पीटीआई-भाषा’ से बातचीत में कहा कि पढ़ाई, सोशल नेटवर्क और कामकाज सभी मोबाइल फोन पर निर्भर हैं और इस पर प्रतिबंध व्यावहारिक नहीं है। सबसे अहम बात यह है कि कानून बनाने का अधिकार सरकार और प्रशासन का है, पंचायतों का नहीं।
बागपत: कुछ लोगों ने किया पंचायत के निर्णयों का विरोध
देशखाप मावी के थांबेदार चौधरी यशपाल सिंह ने कहा कि पंचायत के निर्णयों का वह विरोध नहीं करते लेकिन किसी पर जबरदस्ती नहीं की जा सकती। उन्होंने कहा कि बच्चों को समझाने और अच्छे संस्कार देने की जरूरत है क्योंकि संस्कारी बच्चे स्वयं गलत चीजों से बचते हैं।
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खाप के इन नियमों को राजनीतिक समर्थन भी मिला है। बागपत के राष्ट्रीय लोकदल (आरएलडी) सांसद राजकुमार सांगवान और वरिष्ठ कांग्रेस नेता चौधरी यशपाल सिंह ने कहा कि सामाजिक मूल्यों को बचाना समय की मांग है। सांगवान ने कहा कि खाप के विचार सम्मानजनक हैं क्योंकि वे समुदाय को मजबूत करते हैं।
कई लोगों ने किया खाप पंचायत के फैसलों का समर्थन
थाम्बा पट्टी मेहर देशखाप के चौधरी बृजपाल सिंह और खाप चौधरी सुभाष चौधरी ने कहा कि पंचायत के फैसलों को लागू कराने के लिए गांव-गांव जाकर ग्राम समाज के जिम्मेदार लोगों से विचार-विमर्श किया जाएगा। उन्होंने कहा कि इन निर्णयों को समाज के हित में पूरे उत्तर प्रदेश में लागू कराने के प्रयास किए जाएंगे और अन्य खापों से संपर्क कर इसे अभियान का रूप दिया जाएगा। छपरौली के पूर्व विधायक सहेंद्र सिंह रमाला ने कहा कि संस्कारों की शुरुआत घर से होती है। उन्होंने कहा कि अगर पंचायत ने ऐसा निर्णय लिया है तो पहले स्वयं आदर्श बनना होगा। उन्होंने कहा कि मोबाइल फोन के उपयोग को लेकर संतुलन जरूरी है और बच्चों को को समय देना और उनका मित्र बनना भी उतना ही महत्वपूर्ण है।
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