उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर में वर्ष 2013 में हुए दंगों के दौरान राज्य के वरिष्ठ काबीना मंत्री आजम खां की भूमिका के बारे में एक टीवी चैनल के स्टिंग आपरेशन की जांच के लिए गठित उत्तर प्रदेश विधानसभा की जांच समिति ने खां को क्लीन चिट देते हुए संबंधित चैनल के तत्कालीन पदाधिकारियों को उनकी अवमानना का दोषी करार दिया है और सदन से उनके खिलाफ कार्रवाई की सिफारिश की है।

स्टिंग आपरेशन की जांच के लिए गठित सदन की सात सदस्यीय समिति के सभापति सतीश कुमार निगम ‘एडवोकेट’ ने मंगलवार को विधानसभा में पेश अपनी रिपोर्ट में संबंधित चैनल के तत्कालीन पदाधिकारियों को आजम खां की अवमानना का दोषी करार देते हुए इनके खिलफ समुचित कार्रवाई की सिफारिश की। जांच समिति ने कहा है कि आजम खां के खिलाफ पर्याप्त सबूत नहीं होते हुए भी उनको कठघरे में खड़ा करते हुए यह कहा गया कि उनके कहने से मुजफ्फरनगर दंगों के मुख्य अभियुक्त को रिहा कर दिया गया और एक समुदाय विशेष के व्यक्तियों की गिरफ्तारी व उनके खिलाफ तफ्तीश नहीं की गई। यहां तक कहा गया कि उन्होंने इस प्रकार के निर्देश दिए थे कि ‘जो हो रहा है उसे होने दो’ जबकि ऐसा कोई भी साक्ष्य चैनल के स्टिंग आपरेशन की रिकार्डिंग में नहीं मिला है।

रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि स्टिंग आपरेशन के माध्यम से जिस प्रकार की विद्वेषपूर्ण व असत्य परिकल्पनाएं प्रसारित की गईं उससे सामाजिक समरसता और सौहार्द को आघात पहुंचा और सांप्रदायिकता को बढ़ावा मिला।

यह जांच समिति सितम्बर 2013 में मुजफ्फरनगर में भड़के सांप्रदायिक दंगों में आजम खां की कथित संलिप्तता का दावा करने वाले वीडियो की जांच के लिए विधानसभा से पारित एक प्रस्ताव के जरिए 24 सितंबर 2013 को गठित हुई थी। निगम ने जांच समिति की रिपोर्ट पेश करते हुए कहा कि इलेक्ट्रॉनिक मीडिया टीआरपी का खेल बन गया है और ऐसा मीडिया व्यापार का साधन बन चुका है। पैसा कमाने की होड़ में वह भूल जाता है कि उसका समाज पर कितना नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है।

जांच समिति का यह भी नतीजा है कि चैनल की टीम द्वारा किए गए स्टिंग आपरेशन से लोकसभा चुनाव के पहले राजनीतिक व सामाजिक ध्रुवीकरण भी हुए जिससे कि राजनीतिक नतीजों पर विशेष अंतर पड़ा, जिससे यह स्टिंग आपरेशन राजनीतिक उद्देश्य से प्रभावित लगता है और हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट की विधिक व्यवस्थाओं और एनबीए के मार्गदर्शी सिद्वांतों के विपरीत था। इसलिए इस मामले में भी चैनल से संबंधित अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई अपेक्षित है।

यह कहते हुए कि चैनल ने जांच के दौरान मूल फुटेज एवं कैमरा उपलब्ध नहीं कराया और उसके स्थान पर अन्य फुटेज को मूल सामग्री बताते हुए पेश किया, जो कि सदन के विशेषाधिकारों की अवहेलना है। समिति ने सदन से इस संबंध में भी दंड निर्धारण की सिफारिश की है।
समिति ने टीवी चैनल के तत्कालीन पदाधिकारियों को भारतीय दंड संहिता के तहत धर्म व विभिन्न समूहों के बीच सौहार्द पर प्रतिकूल प्रभाव डालने का दोषी माना है और संबंधित धाराओं में उनके खिलाफ कार्रवाई की सिफारिश की है।

निगम समिति ने अपनी रिपोर्ट में यह भी कहा कि जिन प्रशासनिक एवं पुलिस अधिकारियों का स्टिंग आपरेशन किया गया था, स्टिंग आपरेशन टीम के समक्ष किया गया उनका आचरण पहली नजर में सेवा आचरण नियमावली के प्रावधानों के विपरीत है। इसलिए इनके खिलाफ भी समुचित नियमावली के तहत कार्रवाई होनी चाहिए। विधानसभा अध्यक्ष माता प्रसाद पांडेय ने कहा कि कार्य मंत्रणा समिति ने विचार के बाद रिपोर्ट पर कब और कितनी देर की चर्चा होनी है, तय किया जाएगा।

जांच के दौरान संबंधित पदाधिकारियों के साक्ष्यों के संबंधित विवरण एवं विधि विज्ञान प्रयोगशाला की आख्या के साथ अपनी 350 पृष्ठ की रिपोर्ट में समिति ने टीवी चैनल के संबंधित पदाधिकारियों को ‘केबल टेलीविजन नेटवर्क्स :रेगूलेशन :एक्ट 1995’ की धारा-5 के उल्लघंन का दोषी करार दिया है और उनके खिलाफ सुसंगत प्रावधानों के तहत कार्रवाई करने के लिए गृह विभाग को समुचित निर्देश देने की भी सिफारिश की गई है।
जांच समिति ने यह भी संस्तुति की है कि सदन की तरफ से केबिल टेलीविजन नेटवर्क्स (रेगुलेशन) एक्ट 1995 की धारा 20 के तहत आवश्यक कार्यवाही के लिए भारत सरकार को प्रस्ताव भेजा जाना चाहिए।

समिति ने सदन से भारत सरकार को इस आशय का प्रस्ताव भेजने की भी सिफारिश की है कि इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के विनियमन व संचालन के लिए एक विशिष्ट विधि का निर्माण हो, ताकि इक्लेट्रॉनिक मीडिया की विश्वसनीयता बनी रहे।
और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के मूलभूत अधिकार का दुरुपयोग न हो सके।