भारतीय साहित्य जगत में 2015 में कई तरह की गतिविधियां हुईं। एक तरफ जहां बड़े लेखकों की किताबें आईं और कई उत्सवों का आयोजन किया गया, वहीं देश में ‘बढ़ती असहिष्णुता’ के विरोध में लेखकों द्वारा अवार्ड वापसी का मामला छाया रहा। इस साल आत्मकथाएं और जीवनी से लेकर फिक्शन, खेल, स्वयं सहायता, पाक कला तक और व्यवसाय-वाणिज्य से जुड़ी अनेक किताबें प्रकाशित हुईं। नए और कम मशहूर लेखकों की रचनाएं भी बड़ी संख्या में बाजार में आईं। साल की शुरुआत जयपुर साहित्य महोत्सव के साथ हुई जहां नोबेल पुरस्कार विजेता वीएस नायपॉल, अमेरिकी यात्रा लेखक पॉल थेरॉक्स, अमित चौधरी, पाकिस्तान के हनीफ कुरैशी, मैन बुकर पुरस्कार विजेता एलेनोर कॉटन और एमेयर मैकब्राइड जैसे बड़ी हस्तियों ने शिरकत की। इसके अलावा कई अन्य महोत्सव आयोजित किए गए। इसमें कुमाऊं में आयोजित महोत्सव भी शामिल है।

हालांकि ‘बढ़ती असहिष्णुता’ के खिलाफ 35 से अधिक लेखकों ने अपना साहित्य अकादमी पुरस्कार लौटा दिया, जबकि पांच अन्य ने अकादमी के अपने पदों से त्यागपत्र दे दिया। इससे विरोध-प्रदर्शन की एक नई लहर पैदा हो गई। उनके इस कदम को सलमान रश्दी और विक्रम सेठ जैसे प्रसिद्ध लेखकों का समर्थन मिला। साहित्य को बढ़ावा देने और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की रक्षा के लिए काम करने वाले लेखकों के संघ पेन इंटरनेशनल भारतीय लेखकों के साथ खड़ा हो गया।

दूसरी ओर प्रकाशकों के लिहाज से यह साल चहल-पहल भरा रहा। हार्पर कोलिंस इंडिया की प्रकाशक कार्तिका वीके के मुताबिक उनके लिए यह साल किताबों के प्रकाशन, कई अवार्डों और कई नामांकनों के नजरिए से बहुत संतोषजनक रहा। पेंग्विन रैंडम हाउस के लिए 2015 काफी अच्छा रहा। इस प्रकाशन की कई किताबें बेस्टसेलर रहीं। पाकिस्तान के पूर्व विदेश मंत्री खुर्शीद कसूरी की किताब के मुंबई में विमोचन को लेकर इस साल अक्तूबर में काफी हो-हल्ला हुआ। शिव सैनिकों ने ओआरएफ के मुंबई चैप्टर के अध्यक्ष सुधींद्र कुलकर्णी के चेहरे पर स्याही फेंक दी। उन पर इस किताब के विमोचन की मेजबानी के विरोध में ऐसा किया गया हालांकि आयोजकों ने कार्यक्रम को पूरा किया।

इस साल कई संस्मरण भी प्रकाशित हुए। इसमें पूर्व रॉ प्रमुख एएस दुलाट की ‘कश्मीर -द वाजपेयी ईयर्स’, एनसीपी प्रमुख शरद पवार की ‘ऑन माई टर्म्स’, कांग्रेस नेता एम एल फोतेदार की ‘चिनार लिव्स’ और सैम पित्रोदा की ‘ड्रीमिंग बिग’ भी शुमार हैं। इस साल एपीजे अब्दुल कलाम की उनके सहयोगी श्रीजन पाल सिंह के साथ लिखी हुई कई किताबें प्रकाशित हुईं। इनमें से कुछ का प्रकाशन उनके निधन के बाद हुआ।