संजय दुबे

वर्षा की बूंदे जहां गिरे, वहीं पर रोकें, जिस खेत में जितना पानी होगा, उतनी अधिक नमी रहेगी; अच्छी पैदावार के लिए खेत में नमी होना बहुत आवश्यक है। ये बातें नीति आयोग भारत सरकार के जल भूमि विकास सलाहकार अविनाश मिश्रा ने जखनी गांव के किसानों से कहीं। उन्होंने बांदा जिले के जलग्राम जखनी में किसानों के अपने श्रम से खेतों की मेड़बंदी करके कुंओं, तालाबों और नालों में जलस्तर बढ़ाने को देखा। गांव में जलस्तर, वाटर रिचार्जिंग और जलसंग्रहण में भारी उछाल पर उन्होंने खुशी जताई। गांव के किसानों से बातें की और जलसंग्रहण तथा उसके फायदे की जानकारी ली।

बुंदेलखंड के जखनी गांव में जहां पहले पानी की भारी कमी से लोग परेशान रहते थे, उनकी खेती नहीं होती थी और बेरोजगारी के चलते भुखमरी जैसा माहौल था, वहां का अब आलम यह है कि गांव का हर तालाब पानी से लबालब है, कुंओं का जलस्तर ऊपर से एक फीट नीचे तक है, खेतों में नमी है। पत्थरों के बीच नदी बहने जैसा दृश्य है। परंपरागत जलस्रोतों में सालभर पानी भरे रहने से गांव का हर किसान अब संपन्न है। गांव वालों ने उन्हें बताया कि किस प्रकार वे लोग रात-दिन काम करके जल और अनाज के मामले में आत्मनिर्भर हो गए हैं। बताया कि गांव का हर किसान अब लाखों रुपए का अनाज हर साल खुद बेच रहा है।

उन्होंने जलग्राम जखनी समिति के कार्यकर्ताओं से मुलाकात कर उनके प्रयासों के बारे में जानकारी ली और गांव में आई समृद्धि पर खुशी जताते हुए उनका उत्साह बढ़ाया। उन्होंने कहा कि जखनी के किसानों जैसा काम अगर देश के हर गांव का किसान करने लगे तो भारत में गरीबी हमेशा के लिए खत्म हो जाएगा।

सलाहकार अविनाश मिश्रा आसपास के अन्य गांवों में भी गए। केन नदी का दर्शन किया। इस मौके पर उन्होंने जल ग्राम जखनी का नारा ‘खेत पर मेड़, मेड़ पर पेड़’ को जल संरक्षण के लिए उपयुक्त माना। कहा कि कहा कि मेड़बंदी से खेतों में वर्षा का जल रुकता है, भूजल संचयन होता है, जलस्तर बढ़ता है। पोषक तत्व खेत में ही बने रहते हैं। मृदा कटाव रुकता है, नमी संरक्षण से फसल के अवशेष सड़ते हैं। इससे खेतों को परंपरागत जैविक ऊर्जा प्राप्त होती है।

मेड़बंदी से खराब भूमि को भी उपजाऊ बनाया जा सकता है। पशुओं को चारा मिलता है। खेत के ऊपर मेड़ पर फलदार कम छायादार पौधे जैसे बेल, सहजन, करौंदा, अमरूद, नींबू, सागौन पेड़ लगाए जा सकते हैं, जिससे आयुर्वेदिक औषधियां प्राप्त होंगी। फल मिलने से अतिरिक्त आमदनी भी होगी। कहा कि वे लंबे समय से इस परंपरागत विधि के फायदों के बारे में किसानों को बता रहे हैं। बताया कि जखनी मॉडल को अब देश के दूसरे गांवों में भी लागू कराने का प्रयास किया जा रहा है।

कहा कि जखनी के किसानों ने अपने श्रम और सीमित संसाधन से मेड़बंदी करके समृद्धि पाई है। गांव के नौजवान किसानों ने खेती के क्षेत्र में परंपरागत तकनीक अपनाकर बगैर किसी सरकारी सहायता के अद्भुत सराहनीय कार्य किया है। माइनर इरीगेशन डिपार्टमेंट की रिपोर्ट से भी इस बात की पुष्टि हुई है। कहा कि यह प्रयास छोटा है, लेकिन बेहद महत्वपूर्ण है। अंधेरा-अंधेरा कहने के बजाए खुद एक दीपक जलाने की कोशिश की है। जखनी के किसानों नौजवानों की प्रशंसा संपूर्ण देश में हो रही है।

उन्होंने कहा कि हमारे पुरखे अरहर, उर्द, सन, अलसी, ज्वार जैसी फसलें मेड़ पर पैदा करते थे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मेड़बंदी के माध्यम तथा परंपरागत तरीके से जल संरक्षण के लिए देशभर के प्रधानों को पत्र लिखा है। हमारे देश में करोड़ों हेक्टेअर कृषि भूमि वर्षा जल पर निर्भर है। बुंदेलखंड के किसानों ने पिछले 10 वर्षों से खेतों में वर्षा जल रोकने के लिए मेड़बंदी करा रहे हैं। यह अच्छी पहल है।

भारत सरकार की विभिन्न एजेंसियों को निर्देश दिया गया है कि वे वर्षा जल रोकने के लिए श्रमिकों से अधिक से अधिक मेड़बंदी कराएं। सिंचाई के दो ही साधन हैं। वर्षा जल या भूजल। भूमिगत जल पर जबर्दस्त दबाव है। जल रोकने के लिए परंपरागत सामुदायिक तरीका खेत पर मेड़, मेड़ पर पेड़ सबसे उपयुक्त है। इस विधि में किसी तरह के प्रशिक्षण या अतिरिक्त ज्ञान की आवश्यकता नहीं होती है, न ही कोई मशीन चाहिए।

निरीक्षण के दौरान जल ग्राम समिति के संयोजक जलयोद्धा उमा शंकर पांडे ने उनसे मेड़बंदी से संबंधित जानकारी साझा की। इस अवसर पर अली मोहम्मद, निर्भय सिंह, प्रेमचंद वर्मा, राजा भैया वर्मा, रामचंद्र यादव, राम विशाल कुशवाहा, प्रेम प्रकाश, अजय शिवहरे आदि मौजूद रहे। नीति आयोग के सलाहकार डॉ. अविनाश मिश्रा ने घुरोड़ा के सर्वोदय कार्यकर्ता गजेंद्र से मुलाकात की और प्राकृतिक तरीके से तमाम जैविक और औषधि महत्व के पेड़-पौधों को लगाने के उनके प्रयासों को सराहा। परंपरागत जैविक किसान राहुल अवस्थी ने उनको जैविक खेती के बारे में जानकारी दी। बताया कि किस प्रकार उन्होंने सरकारी नौकरी को छोड़कर इस काम में जुटे और लाखों रुपए कमा रहे हैं।