राष्ट्रीय महिला आयोग ने आम आदमी पार्टी प्रवक्ता आशुतोष को उनके विवादित ब्लॉग को लेकर तलब किया है। इसके जवाब में आशुतोष ने टि्वटर के जरिए महिला आयोग की अध्‍यक्ष ललिता कुमारमंगलम पर हमला बोला। उन्‍होंने लिखा, ”राष्‍ट्रीय महिला आयोग से नोटिस मिला। क्‍या एक कॉलम लिखने के लिए मुझे फांसी दे देनी चाहिए? क्‍या भारत एक फासीवादी देश बनता जा रहा है? मिस मंगलम आपको चेयरपर्सन के रूप में झूठ नहीं बोलना चाहिए कि आप भाजपा की सदस्‍य नहीं हैं। विकीपीडिया बताता है कि आप अभी भी भाजपा की सदस्‍य हैं।” गौरतलब है कि आशुतोष ने दिल्‍ली के पूर्व मंत्री संदीप कुमार का बचाव करते हुए एक ब्‍लॉग लिखा था। इसमें उन्‍होंने लिखा था कि यह सहमति से किया गया था और इस तरह उन्होंने कुछ गलत नहीं किया।

एनसीडब्ल्यू अध्यक्ष ललिता कुमारमंगलम ने कहा, ‘‘हमने उनसे आठ सितंबर को आने को कहा है।’’ उन्होंने बताया कि उन्हें लगता है कि आशुतोष ने काफी निंदनीय और अपमानित करने वाला ब्लॉग लिखा है, जिसमें उन्होंने बलात्कार के एक आरोपी का बचाव किया है। उन्होंने कहा, ‘‘…आयोग ने व्यापक हित में इस पर गौर किया क्योंकि हमें लगता है कि दिल्ली में शासन करने वाली पार्टी और जिस पार्टी के सदस्य महिलाओं के खिलाफ हिंसा की गई घटनाओं में आरोपी रहे हैं उस पार्टी के एक प्रवक्ता के तौर पर , उन्हें इस तरह का ब्लॉग नहीं लिखना चाहिए था जिससे पितृसत्ता और स्त्री द्वेष की बू आती है।’’ उन्होंने यह भी कहा कि जब एक आपराधिक जांच जारी थी तब आशुतोष घटना के बीच में ऐसे कूद पड़े कि यह दो लोगों के बीच का मामला हो।

संदीप कुमार का बचाव कर फंसे आशुतोष, पुलिस में शिकायत तो महिला आयोग ने भेजा समन

कुमारमंगलम ने कहा, ‘‘वह बीच में क्यों कूद पड़े? पुलिस ने फौरन संज्ञान ले लिया था और यह कहीं से छिपा हुआ नहीं था कि पुलिस ने क्या कार्रवाई की है। किसी मामले में समय से पहले ही कूद पड़ना हमारे देश में पितृसत्ता का एक संकेत है। यह किसी पार्टी के प्रवक्ता जैसा ब्लॉग नहीं है जिसके मंत्री ने अपराध किया हो।’’ साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि आशुतोष ने यह कहा क्योंकि माओ से तुंग ने ऐसा किया था, क्या यह ठीक ह।ै सिर्फ इसलिए कि दूसरों लोगों ने ऐसा किया था, क्या यह ठीक है। जब आप सार्वजनिक जीवन में होते हैं, तब सादगी के मानदंड होते हैं जिसका हर किसी को पालन करना होता है चाहे वह पुरूष हों या स्त्री।


Punjab Leaders ‘Exploiting Women’ Promising… by Jansatta