उत्तर प्रदेश में सत्ता में आने के बाद नोएडा के सीईओ और नोएडा समेत ग्रेटर नोएडा व यमुना एक्सप्रेस वे प्राधिकरण के चेयरमैन की तैनाती को लेकर सपा सरकार की इलाहाबाद हाई कोर्ट से तनातनी रही थी। उप्र में दोबारा विधानसभा चुनावों से पहले अब फिर से नोएडा के सीईओ और तीनों प्राधिकरणों के चेयरमैन को लेकर सरकार और इलाहाबाद हाई कोर्ट में खींचतान फिर से हो रही है। करीब 4 साल के अंतराल के बाद होने वाले दोनों ही मामलों में सरकार अपने चहेते अफसरों को चुनिंदा पदों पर तैनात रखना चाहती है। जबकि अदालत एक ही पद पर आइएएस अफसर की कितने समय तक तैनाती हो सकती है, इस पर आइएएस कैडर रूल्स व सर्विस रूल्स के तहत जवाब मांग रही है। 2012 में कोर्ट के आदेश के करीब दो महीने बाद सरकार ने नोएडा सीईओ और तीनों प्राधिकरणों के चेयरमैन के रूप में तैनात अपने चहेते अफसरों को हटाया था। इस बार भी कोर्ट ने लंबे समय से चेयरमैन पद पर आसीन आइएएस अफसरों को हटाने का आदेश करीब डेढ़ महीने पहले दिया था।

हालांकि कोर्ट के आदेश के डेढ़ महीने बाद बाद सरकार ने चेयरमैन पद पर एक वरिष्ठ आइएएस अफसर को तैनात कर पूर्व अधिकारी को महज नोएडा के सीईओ के रूप में रखा है। इलाहाबाद हाई कोर्ट में इस मामले पर 19 अगस्त को सुनवाई होनी है। 2012 में उप्र में सपा सरकार के गठन के कई महीनों बाद तक नोएडा के सीईओ और तीनों प्राधिकरणों के चेयरमैन की तैनाती नहीं हो सकी थी। सूत्रों के मुताबिक, इन पदों के लिए मुनासिब अफसरों की तलाश की जा रही थी। उसके बाद नोएडा सीईओ के रूप में आइएएस संजीव सरन और तीनों प्राधिकरणों के चेयरमैन के रूप में राकेश बहादुर की तैनाती की थी। यहीं दोनों अफसर 2012 से पहले सपा सरकार के कार्यकाल में भी इन्हीं पदों पर रहे थे।

उस दौरान हुए आबंटन घोटालों को लेकर बसपा सरकार ने कई एजंसियों से जांच कराई थी। कई मामलों में बाजार के मुकाबले बेहद कम दामों पर जमीन आबंटित करने का पता चला था। दोबारा भी उन्हीं अफसरों को प्रदेश के सबसे अहम पदों पर तैनाती को लेकर चर्चाएं हुई थीं। माधव समाज निर्माण समिति ने दोनों की नियुक्ति के खिलाफ इलाहाबाद हाई कोर्ट में पीआइएल दायर की थी। जिस पर सुनवाई करते हुए हाई कोर्ट ने नवंबर, 2012 में दोनों अफसरों को हटाने और पश्चिमी उप्र में भी तैनात नहीं करने का आदेश दिया था। आदेश के बावजूद सरकार दोनों अफसरों की तैनाती को सही साबित करने के लिए कोर्ट में सबूत और साक्ष्य देने में लगी रही। आखिरकार 16 जनवरी, 2013 को सरकार ने दोनों अफसरों का तबादला कर ग्रेटर नोएडा के सीईओ और 1987 बैच के आइएएस रमा रमण को नोएडा का सीईओ तैनात किया था। मौजूदा मामले में रमा रमण की नोएडा के सीईओ और तीनों प्राधिकरणों के चेयरमैन पद पर इतने लंबे समय तक तैनाती को लेकर इलाहाबाद हाई कोट र् सुनवाई कर रहा है। इतने लंबे समय तक एक ही अफसर की तैनाती को लेकर नोएडा निवासी जितेंद्र कुमार गोयल ने पीआइएल दायर की थी।

जिस पर हाई कोर्ट ने 1 जुलाई को रमा रमण को हटाने के अलावा शक्तियां रोकने का आदेश दिया था। आदेश के कारण रमा रमण ने नोएडा सीईओ का चार्ज अडिशनल सीईओ पीके अग्रवाल को सौंप दिया था। करीब डेढ़ महीने तक चेयरमैन पद खाली रहने के बाद 16 जुलाई, 2016 को सरकार ने वरिष्ठ आइएएस प्रवीर कुमार को तीनों प्राधिकरणों का चेयरमैन नियुक्त कर दिया। जबकि रमा रमण को महज नोएडा सीईओ पद पर रखा। मामले की सुनवाई के कारण अभी रमा रमण ने सीईओ को चार्ज नहीं संभाला है। इस दौरान सरकार ने 5 हजार करोड़ रुपए लागत वाली नोएडा ग्रेटर नोएडा मेट्रो समेत अन्य अहम परियोजनाओं के संचालन में रमा रमण की उपयोगिता को जरूरी बताकर कोर्ट में स्पष्टीकरण दिया है। सरकार के इस दावे पर कोर्ट ने रमा रमण के तबादले पर सरकार का रुख और आइएएस अफसरों की तैनाती की समय-सीमा के बारे में पूछा है। बताया गया है कि ज्यादातर आइएएस अफसर 3 सालों के भीतर हटाए गए हैं। हाई कोर्ट में शुक्रवार को इस मामले पर सुनवाई होनी है।