ओडिशी नृत्य की परंपरा का निर्वाह गुरु-शिष्य परंपरा के जरिए बखूबी हो रहा है। कई गुरुओं ने अपनी प्रतिभा और सोच से इसे समृद्ध किया। उसी परंपरा के प्रतिनिधि थे गुरु गंगाधर प्रधान। गुरु गंगाधर प्रधान ने ओडिशी नृत्य अकादमी की नींव रखी थी। इसे उनकी शिष्या व ओडिशी नृत्यांगना अरुणा मोहंती पूरी लगन से संभाल रहीं हैं। उनकी शिष्या मधुस्मिता और शिष्य प्रताप कुमार व विश्वजीत ने उनके साथ नृत्य किया। पिछले दिनों परिचय फाउंडेशन की ओर से हुए कार्यक्रम में अरुणा मोहंती और उनके शिष्य-शिष्याओं ने नृत्य पेश किया। उन्होंने अपनी प्रस्तुति में नृत्य रचना संसार और नारी को शामिल किया। अरुणा का कहना है कि शास्त्रीय नृत्य नाट्य शास्त्र पर आधारित है। इसलिए इसकी नींव बहुत गहरी है। फिर, ओडिशी नृत्य को ओडिशा की रास लीला, महारी, सखी नाट, प्रहलाद नाट, गोतिपुआ कला विधाओं ने और समृद्ध किया है। ओडिशी इसलिए तो नृत्य नाट्य परंपरा मानी जाती है। बंगाल की तरह ओडिशा के साहित्य में संस्कृत व उड़िया साहित्य का उपयोग हम अपने नृत्य के लिए करते हैं। हम ओडिशी नृत्य शैली में किसी तरह का घालमेल नहीं करते।
समारोह में अरुणा ने परंपरागत मंगलाचरण, पल्लवी, बटु, अभिनय नृत्य के बजाय अपनी नृत्य रचनाओं को पेश किया। पहली नृत्य रचना ‘संसार’ में पंच तत्व की महत्ता और जीवन की यात्रा पर प्रकाश डाला गया था। यह ‘नलिनी दल जल’, ‘देहि देहे कौमारं यौवनं’, तराना और संकीर्तन ‘भज गोविंदम भज गोविंदम’ पर आधारित थी। बाल्य, किशोर, युवा और वृद्धावस्था का चित्रण सुंदर था। एक ओर कलाकारों के अभिनय में परिपक्वता दिखी वहीं वात्सल्य, शृंगार व करुण रस का समावेश भी सहज था।
नृत्य रचना नारी में सीता, कुंती, द्रौपदी व निर्भया स्त्री चरित्रों के माध्यम से स्त्री की पीड़ा को अरुणा ने नृत्य रचना में पिरोया। इसकी नृत्य रचना नृत्यांगना अरुणा मोहंती की थी और संगीत की परिकल्पना रामहरि दास की थी। केदार मिश्र की रचना पर आधारित पेशकश में सीता के चित्रण के लिए रचना ‘तापस वेश उदासे’ व रामचरितमानस की पंक्तियों ‘जीव बिन देह नदी बिन वारि’ का चयन किया गया था। इसमें सीता हरण व राम रावण युद्ध के प्रसंग को निरुपित किया गया। ‘प्रतिशोध प्रवंचना द्रौपदी हृदयं’ के जरिए द्रौपदी के दुख को दर्शाया गया। वहीं निर्भया कांड से प्रेरित नायिका निभर्या को संवाद ‘राजपथ पर आहत, जीवन मोर निष्ठुर संघर्ष’ के जरिए दिखाया गया। इस नृत्य रचना के जरिए कलाकारों ने संदेश दिया कि महिलाओं का सशक्तिकरण जरूरी है।
उन्हें हर तरह से स्वतंत्र और सबल बनाना समय की मांग है।

