उत्तर प्रदेश में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने इलाहाबाद विश्विद्यालय के इकॉनमिक डिपार्टमेंट के तीन प्रोफेसरों के खिलाफ फर्जी एससी-एसटी एक्ट के दुरुपयोग को लेकर महिला प्रोफेसर को फटकार लगाई है। कोर्ट ने कहा है कि 2016 का यह केस फर्जी है इसलिए इसे रद्द किया जाए। इसके साथ ही इलाहाबाद हाईकोर्ट ने महिला प्रोफेसर पर 15 लाख का जुर्माना लगयाा है। कोर्ट ने कहा है कि महिला द्वारा दर्ज किया गया केस एक तुच्छ मामला है।

इस मामले में याचिकाकर्ताओं ने दावा किया है कि असिसेटेंट प्रोफेसर को ठीक से पढ़ाने और समय पर क्लास लेने के लिए कहा था, इसलिए उन्हें निशाना बनाया गया था। निचली अदालत द्वारा समन जारी किया गया था और इसीलिए तीन याचिकाकर्ताओं ने उच्च न्यायालय में का दरवाजा खटखटाया था। तीन याचिकाओं को संबोधित करते हुए अलग-अलग आदेशों में अदालत ने कार्यवाही को रद्द करने का फैसला दिया है। कोर्ट ने कहा कि तुच्छ मामले में के चलते अन्य प्रोफेसरों की प्रतिष्ठा को झटका लगा है। यह केवल व्यक्तिगत प्रतिशोध लेने के लिए आवेदक के खिलाफ झूठा केस दायर किया था। कोर्ट ने कहा कि ऐसी गतिविधियों पर अंकुश लगाना होगा।

अदालत ने आगे कहा है कि यह पूरी तरह से कानूनी की प्रक्रिया का दुरुपयोग है, जहां शिकायतकर्ता ने विभाग के प्रमुख के खिलाफ बदला लेने के लिए झूठा केस दर्ज कराया है। जस्टिस प्रशांत कुमार की पीठ ने ये फैसला प्रोफेसर मनमोहन कृष्ण, प्रह्लाद कुमार और जावेद अख्तर द्वार याचिकाओं को वाजिब बताते हुए लिया है। जज ने कहा कि यह कोई पहला मामला नहीं है क्योंकि जब भी वरिष्ठ विभागाध्यक्ष और प्रोफेसर महिला प्रोफेसर को पढ़ाने के लिए कहते थे तो उनके खिलाफ केस दर्ज करा दिया जाता था।

कानून का किया गलत इस्तेमाल

कोर्ट ने कहा कि शिकायतकर्ता महिला काफी पढ़ी लिखी हैं और उन्हें कानूनी मामलों की अच्छी समझ है, यह बताता है कि यह पूरी तरह से बदला लेने के लिए ही उठाया गया कदम था। अदालत ने कहा कि असिस्टेंट प्रोफेसर पर हर मामले में 5 लाख रुपये का जुर्माना लगाया गया है। पीड़ितों को खुद बचाने के लिए पुलिस थानों से लेकर कोर्ट तक के चक्कर लगाने पड़े हैं।

कोर्ट ने खारिज किए आरोप

केस की बात करें तो 4 अगस्त 2016 को इलाहाबाद विश्वविद्यालय के अर्थशास्त्र विभाग ने एक पुलिस स्टेशन में एससी-एसटी एक्ट के तहत केस दर्ज कराया था। महिला ने आरोप लगाया था कि उसे प्रोफेसरों द्वारा अपमानित और परेशान किया गया है और डांटते हुए अपशब्दों का इस्तेमाल करने का भी आरोप लगाया है। इस केस को अब 8 साल बाद खारिज कर दिया गया है।