जनलोकपाल बिल को लेकर आप सरकार के बयान के मामले में अण्णा हजारे से स्वराज अभियान के प्रशांत भूषण के मिलने के बाद विधानसभा के बाहर गुरुवार को अभियान की ओर से विरोध प्रदर्शन किया गया। प्रदर्शनकारियों का कहना है कि अण्णा ने कहा है कि दिल्ली सरकार फिर से लोकपाल विधेयक पेश करे। वह भी, वह विधेयक जिसका मसौदा लेकर आंदोलन किया गया था। हम इसी मांग को लेकर आंदोलन कर रहे हैं और इसे पूरा होने तक डटे रहेंगे।

रालेगण सिद्धि में अण्णा ने प्रशांत के साथ यह मांग उठाई। प्रशांत भूषण ने कहा कि विधेयक के मामले में मनमाने बयान देकर आप सरकार दिल्ली की जनता को गुमराह कर रही है और अण्णा को भी अपने नाम से जोड़कर उनके मूल्यों और सिद्धांतों का मजाक उड़ा रही है। इस विधेयक पर आप ही के बागी नेताओं की ओर से गंभीर सवाल उठाए जाने के बाद आप सरकार ने दलील दी कि यह वही विधेयक है, जिसे लेकर अण्णा ने आंदोलन किया था। इस बयान को तथ्यों के आधार पर स्वराज अभियान के प्रशांत भूषण और योगेंद्र यादव ने खारिज करते हुए पेश विधेयक में खामियों को उजागर किया तो आप सरकार के दो प्रतिनिधियों संजय और कुमार विश्वास ने अण्णा से मुलाकात की और उनकी ओर से दी गई सलाह पर एक-दो बदलाव के साथ विवादित विधेयक को ही पेश किया।

इसके बाद प्रशांत भूषण ने जाकर अण्णा से मुलाकात की और स्वराज अभियान की ओर से उठाए सवालों से अवगत कराया। इसके बाद अण्णा हजारे ने फि र से वही विधेयक लाने की मांग उठाई, जो स्वरूप आंदोलन के समय था। स्वराज अभियान ने इस बयान का स्वागत किया है, जिसमें उन्होंने आप सरकार की ओर से दिल्ली में पेश किए गए पिछले साल के जनलोकपाल बिल की अनुशंसा की है और अरविंद केजरीवाल सरकार से कहा है कि वह मौजूदा विधेयक की जगह उसी 2014 वाले विधेयक के मसौदे को पेश करे।

स्वराज अभियान ने कहा है कि अगर आप सरकार मौजूदा बिल को छोड़ कर सन 2014 के बिल को यथावत ले कर आती है तो हम उसका समर्थन करेंगे। अगर ऐसी अवस्था में केंद्र सरकार बिल को पास होने में अड़चन लगाती है तो हम जनलोकपाल के तमाम साथियों के साथ मिल कर केंद्र सरकार का विरोध करेंगे। योगेंद्र यादव ने कहा कि अण्णा हजारे के बयान के बाद आप सरकार के पास जनलोकपाल आंदोलन को गुमराह करने के सभी रास्ते बंद हो गए हैं। लेकिन ऐसा नहीं लगता सरकार सुधार कर इस बिल को छोड़ने वाली है। एक तरफ सरकार लोकतांत्रिक होने की दुहाई देती है दूसरी तरफ सदन में विधायक पंकज पुष्कर के साथ दुर्व्यवहार, परिसर में मीडिया के साथ दुर्व्यवहार और स्वराज अभियान के कार्यकर्ताओं की गिरफ्तारी के आदेश देकर संदेश देती है कि यह सरकार संसदीय लोकतंत्र की न्यूनतम मर्यादा का उलंघन करने पर आमादा है।