पिछले तीन दशक से दिल्ली में पूर्वांचल (बिहार, झारखंड और पूर्वी उत्तर प्रदेश के मूल निवासियों) के प्रवासियों की बढ़ती संख्या ने राजनीति के समीकरण को बदल दिया है। इस लोकसभा चुनाव में पूर्वांचल के प्रवासियों का दखल ज्यादा होता दिख रहा है। पहले तो सात में से एक लोकसभा सीट पर दावेदारी भी प्रवासी दबी जबान में करते थे लेकिन अब हर लोकसभा सीट पर 15 से 30 फीसद तक इस वर्ग का मतदाता होने के चलते हर दूसरी सीट पर प्रवासी दावेदार बन गए हैं। दिल्ली पर राज कर रही आम आदमी पार्टी (आप) ने तो दिल्ली उत्तर पूर्व सीट से पूर्वांचल मूल के दिलीप पांडेय को उम्मीदवार घोषित कर दिया है। इस सीट से अभी बिहार मूल के लोकप्रिय भोजपुरी गायक मनोज तिवारी सांसद हैं।

दिल्ली में प्रवासयिों के बीच में सक्रिय दिल्ली मैथिली भोजपुरी अकादमी के पूर्व उपाध्यक्ष और दिल्ली भोजपुरी समाज के अध्यक्ष अजीत दूबे का कहना है कि अब पूर्वांचल के लोगों को भी दिल्ली की राजनीति में भागीदारी नहीं हिस्सेदारी मिलनी चाहिए। सालों दिल्ली के लोकसभा चुनाव में पाकिस्तान से देश के विभाजन के बाद आए लोगों, आजादी के बाद हरियाणा और उत्तर प्रदेश के गांवों से आए वैश्य समाज के लोग और स्थानीय गांव के लोगों का दबदबा रहता था। कुछ सीटों पर तो देश पर राज करने वाली पार्टी-भाजपा और कांग्रेस राष्ट्रीय नेताओं को चुनाव लड़वाती थी। फिर उत्तर प्रदेश, राजस्थान और उत्तराखंड के मूल निवासियों को भी कोटे जैसा टिकट दिया जानेलगा था, लेकिन उन राज्यों के प्रवासियों को भी नेतृत्व करने का मौका नहीं दिया गया। पहली बार 2009 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने बिहार मूल के महाबल मिश्र को पश्चिमी दिल्ली से लोकसभा उम्मीदवार बनाया तो लोगों ने उनकी हार सुनिश्चित मान ली थी।

दिल्ली की सात लोकसभा सीटों में नई दिल्ली के बाद सबसे कम (करीब 15 फीसद) पूर्वांचल के प्रवासी मतों के बूते और महाबल मिश्र की मेहनत और प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह का सिख वोटों पर असर आदि से उनकी जीत हो गई। उसके बाद तो राजनीति में बदलाव आया और ‘आप’ ने अपनी राजनीति का केंद्र प्रवासियों और गरीबों को बनाया। उसका उन्हें लाभ मिला। ‘आप’ को पहले 2013 के विधानसभा चुनाव में करीब 29 फीसद वोट और 2015 के चुनाव में रिकार्ड 54 फीसद वोट और 70 विधानसभा सीटों में से 67 पर जीत हासिल हुई। इस चुनाव में कांग्रेस का पूरा वोट बैंक ही ‘आप’ में चला गया और कांग्रेस दस फीसद वोट लेकर हाश्एि पर चली गई। दिल्ली में भाजपा 1998 में दिल्ली सरकार से बाहर हुई, तब से वह कभी विधानसभा चुनाव नहीं जीत पाई। इसका बड़ा कारण भाजपा का वोट समीकरण है। भाजपा खास वर्ग की पार्टी मानी जाती है। गैर भाजपा मतों का ठीक से विभाजन होने पर ही भाजपा विधानसभा या नगर निगम चुनाव जीत पाती है। 1993 में दिल्ली विधानसभा के चुनाव में उसे करीब 43 फीसद वोट मिले तब वह सत्ता में आई। उसके बाद उसका वोट औसत लोकसभा चुनावों के अलावा कभी भी 36-37 फीसद से बढ़ा ही नहीं।

मनोज तिवारी के बूते भाजपा अपना वोट बैंक का विस्तार करने का प्रयास किया। महाबल मिश्र के बाद मनोज तिवारी को 2014 में लोस चुनाव का टिकट मिला और वे सांसद बने। तिवारी को 2016 में सतीश उपाध्याय को हटाकर प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया तो उनके लिए सबसे बड़ी चुनौती 2017 के निगम चुनाव जीतने की थी। वे इसमें सफल रहे। उन्होंने 32 बिहार मूल के उम्मीदवारों को टिकट दिलवाया जिसमें 20 चुनाव जीत गए। 36 फीसद वोट लाकर भाजपा तीसरी बार निगमों की सत्ता में काबिज हुई। अस्सी के दशक से दिल्ली के राजनीतिक समीकरण में बदलाव की शुरुआत तेजी से हुई और उसके तीन दशक बाद दिल्ली की 70 विधानसभा सीटों में से 50 में पूर्वांचल के प्रवासी 20 से 60 फीसद तक हो गए हैं। दिल्ली का हर चौथा या पांचवा मतदाता पूर्वांचल का प्रवासी माना जाने लगा है। पहले तो यह कहा जाता था कि प्रवासी तो दिल्ली में रहते हैं लेकिन वे मतदाता अपने मूल राज्य के हैं। 2015 के विधानसभा चुनाव और 2017 के निगम चुनाव ने साबित कर दिया कि अब दिल्ली में रहने वाले ज्यादातर प्रवासी दिल्ली के मतदाता बन गए हैं। मनोज तिवारी के प्रदेश अध्यक्ष बने रहने के कारण ‘आप’ में भी प्रवासी नेताओं का महत्त्व बढ़ गया और कांग्रेस में महाबल मिश्र के अलावा दूसरे प्रवासी नेताओं को भी जुटाने का प्रयास चल रहा है। सही मायने में मनोज तिवारी ने दिल्ली की राजनीति का रुख बदलने का काम किया है। इसका परिणाम यह हुआ कि दिल्ली की सभी सातों सीटों पर पूर्वांचल के प्रवासी नेता सक्रिय होकर अपनी दावेदारी जताने लगे।

पुरबियों का वर्चस्व

तीन दशक पहले रोजगार और पढ़ाई आदि के लिए आया प्रवासी अब दिल्ली में हर मामले में सक्षम हो गया। अजीत दुबे कहते हैं कि अब पूरबिए (पूर्वांचल के प्रवासी) केवल रोजगार मांगते नहीं रोजगार देने की हैसियत में आ गए हैं। लंबे समय तक तो दिल्ली के अनेक पूर्वांचल मूल के अधिकारियों (आमोद कंठ, दीपक मिश्र, अजीत दुबे आदि) और समाज के विभिन्न क्षेत्रों में सक्रिय प्रभावशाली लोगों ने भी प्रवासियों को दिल्ली में स्थापित कराने में बड़ी भूमिका अदा की। सालों से तो कांग्रेस नेता महाबल मिश्र उन सभी स्थानों पर सबसे पहले पहुंचने वाले नेता होते थे जहां पूर्वांचल के प्रवासियों के साथ कोई घटना घटती थी। अब यही भूमिका मनोज तिवारी की हो गई है। पूरबियों का मामला इतना संवेदनशील हो गया है कि तमाम सफाई देने के बावजूद दक्षिणी दिल्ली के भाजपा सांसद रमेश बिधूड़ी की टिकट पर ग्रहण पूरबियों को कथित अपशब्द बोलने से लग गया है। वे पार्टी नेतृत्व को लगातार अपनी सफाई दे रहे हैं। हालात ऐसे हैं कि पूरबिए का टिकट किसी पार्टी के लिए काटना कठिन हो गया है और अगर कटा तो उसकी भरपाई दूसरे पूरबियों को टिकट देकर करनी होगी।