केंद्र के तीन नए कृषि बिलों के खिलाफ किसान प्रदर्शन का मुद्दा मीडिया चैनलों की भी सुर्खियों में बना हुआ है। टीवी चैनल आजतक के डिबेट शो ‘हल्ला बोल’ में भी इन्हीं मुद्दों पर पैनलिस्ट और एंकर आपस में भिड़ गए। डिबेट में कार्यक्रम की संचालक चित्रा त्रिपाठी ने अपनी राय देते हुए कहा कि प्रदर्शनकारी किसानों को थोड़ा लचीला रवैया अपनाना चाहिए। उन्होंने कहा कि अगर किसान अड़ा रहेगा तो इस मुद्दे का समाधान कैसे निकलेगा। बीच का रास्ता निकालने के लिए क्या जरूरी नहीं है कि किसान थोड़ा लचीला रवैया अपनाएं।

उनकी इस टिप्पणी पर किसान नेता राकेश टिकैट नाराज हो गए। पिछले 53 का साल गणित समझाते हुए उन्होंने चित्रा त्रिपाठी से कहा कि 1976 में भारत सरकार ने गेंहू खरीदना शुरू किया। 76 रुपए क्विंटल इसके दाम तय किए गए। प्राइमरी शिक्षक का वेतन 70 रुपए था। तब शिक्षक एक महीने की सैलरी में गेहूं नहीं खरीद सकता था। सोने का भाव 200 रुपए तौला था। फट्टे की ईंट 30 रुपए की एक हजार आती थीं। तब हम एक क्विंटल गेहूं बेचकर 2500 ईंटें खरीद सकते थे। हमारा यही हिसाब लगा दिया जाए।

राकेश टिकैट ने आगे कहा कि सरकार किसानों की मदद कैसी करेगी। कैसे अन्नदाताओं की सुरक्षा होगी। वो हमारा हिसाब नहीं मानते। हमारे बुजुर्गों को अनपढ़ रखा। स्कूलों में हमें पढ़ाया नहीं। आज नौजवान अपना हिसाब-किताब मांगने आया है। आज हम अपना हिसाब मांगने दिल्ली आए हैं। सरकार बताए कि हमें कैसे लाभ पहुंचाएगी। किसानों को बिजली दी जा सकती है जो कि तीन से चार राज्यों में मुफ्त है। क्योंकि बाजार बहुत ऊपर जा चुका मगर किसान वही बेच सकता है जो खेत में पैदा करता है।

किसान नेता ने कहा कि देश में कृषि जीवन का अहम हिस्सा है। भारत ऋषि और कृषि का देश रहा है। भारत संत महात्माओं और कृषि का देश रहा है। संत महात्मा तो ठीक हो गए मगर कृषि क्षेत्र ठीक नहीं हुआ। इसे भी ठीक किया जाना चाहिए। बता दें कि किसान पिछले महीने की 26 तारीख से कृषि बिलों के खिलाफ प्रदर्शन कर रहा है। किसानों ने सरकार से तीनों कृषि बिलों को वापस लेने की मांग की है।

कृषि बिलों पर प्रदर्शनकारी किसानों और सरकार के बीच पांच चरण में वार्ता हो चुकी है मगर कोई समाधान नहीं निकला। सरकार ने अब 9 दिसंबर को एक और चरण की वार्ता के लिए किसानों को बुलाया है। माना जा रहा है कि इस वार्ता में कोई हल निकाला जा सकेगा।