अंगूर खट्टे

जगत प्रकाश नड्डा का सपना चकनाचूर हो गया। हिमाचल का मुख्यमंत्री बनने की हसरत इस बार पूरी करने का सपना अमित शाह के अध्यक्ष बनने के बाद ही देखने लगे थे। पर जातीय गणित आड़े आ गया। हिमाचल में राजपूत मतदाताओं की तादाद सबसे ज्यादा है। कांग्रेस ने राजपूत वीरभद्र सिंह पर ही फिर दांव लगाया तो भाजपाई फंस गए।

अमित शाह हरियाणा, झारखंड, उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड की तरह ही हिमाचल में भी मुख्यमंत्री का उम्मीदवार घोषित किए बिना चुनावी जंग जीतने के दावे कर रहे थे। लेकिन मुंह की न खानी पड़ जाए, इस डर से अचानक चुनाव के बीच ही अमित शाह को बदलनी पड़ी अपनी रणनीति। नड्डा क्या करते? मुंह लटका कर रह गए। पत्रकारों ने कुरेदा तो फरमाया कि वे मुख्यमंत्री पद के दावेदार कभी थे ही नहीं। इसी को तो कहते हैं कि नसीब नहीं हुए तो खट्टे बता दिए अंगूर। पाठकों को बता दें कि 1977 और 1990 में ब्राह्मण शांता कुमार जरूर बने थे सूबे के भाजपाई मुख्यमंत्री। लेकिन उसके बाद दो बार भाजपा को मौका मिला तो ताज राजपूत धूमल के सिर पर ही सजा था। कलराज मिश्र, आनंदीबेन पटेल और नजमा हेपतुल्ला जैसों को तो 75 पार आराम के फार्मूले से निपटा दिया, पर 74 साल के प्रेमकुमार धूमल पर नहीं चला मोदी और शाह का उम्रदराजी का पैंतरा।
हर तरफ दागी

जनीति के हमाम में अब हर कोई नंगा है। हिमाचल का विधानसभा चुनाव भी अछूता नहीं है। कांग्रेस और भाजपा एक-दूसरे पर जमकर लांछन तो लगा रहे हैं पर दामन दोनों के ही उजले नहीं हैं। एसोसिएशन आफ डेमोक्रेटिक रिफार्म्स और नेशनल इलेक्शन वाच जैसी गैर-सरकारी संस्थाओं ने उम्मीदवारों की आपराधिक जन्मपत्री का खुलासा कर इसकी पुष्टि की है। 68 विधानसभा क्षेत्रों में चुनाव लड़ रहे कुल 338 उम्मीदवारों में दर्जनों चेहरे दागी हैं। हल्के नहीं गहरे और बदनुमा दागवाले। इनमें कांग्रेसी और भाजपाई दोनों हैं। एक उम्मीदवार जहां हत्या का आरोपी है वहीं दो पर हत्या की कोशिश के मामले चल रहे हैं।

दागियों में 23 भाजपा के, 16 निर्दलीय और दस माकपा, तीन बसपा व छह कांग्रेस के हैं। राजनीति अब सेवा का माध्यम नहीं रही है। होती तो हिमाचल जैसे छोटे सूबे में 158 करोड़पति उम्मीदवार न होते। पर इनमें भी 71 बड़े उस्ताद हैं जिन्होंने नामांकन पत्रों में अपनी आमदनी का स्रोत ही नहीं बताया। 2012 में चुनाव जीते 60 विधायक इस बार भी किस्मत आजमा रहे हैं। सब की संपत्ति में पांच साल में औसतन दोगुनी बढ़ोतरी हो गई। बेटी बचाओ और बेटी पढ़ाओ का राग तो अलापा जा रहा है पर महिला उम्मीदवारों की संख्या महज 19 हैं।