बिहार की सियासत में फिर उथल-पुथल दिखने लगी है। नीकु की सहमति और स्वीकृति के बिना पार्टी के उपाध्यक्ष प्रशांत किशोर इतनी जुर्रत कैसे कर सकते हैं कि नीतीश के उपमुख्यमंत्री पर ही कटाक्ष कर बैठे। प्रशांत किशोर और पवन वर्मा ने पहले तो सीएए के समर्थन के पार्टी के फैसले पर असहमति जताई। फिर प्रशांत किशोर ने टीवी चैनल को इंटरव्यू दे भाजपा को आगाह किया कि इस साल होने वाले विधानसभा चुनाव में वह जद (एकी) से बराबर की सीटों की उम्मीद न पाले। दरअसल लोकसभा चुनाव में दोनों दलों के बीच सत्रह-सत्रह सीटों पर सहमति हुई थी। प्रशांत किशोर ने लोकसभा के 2004 व 2009 और विधानसभा के 2010 के चुनाव का हवाला दे दिया। जब भाजपा और जद (एकी) के बीच गठबंधन था। जद (एकी) ने 139 और भाजपा ने 102 सीटों पर चुनाव लड़ा था। प्रशांत किशोर ने एक तो सीटों का अनुपात वही रखने पर जोर दिया दूसरी तरफ गठबंधन के चेहरे के तौर पर नीतीश कुमार के नाम पर चुनाव लड़ने की बात कही।

भाजपा की तरफ से उपमुख्यमंत्री सुशील मोदी की प्रतिक्रिया आई। उन्होंने कहा कि चुनाव प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के नेतृत्व में लड़ा जाएगा। फिर प्रशांत किशोर को नसीहत दी कि किसी विचारधारा के तहत नहीं बल्कि चुनावी डाटा जुटाने और नारे गढ़ने वाला व्यवसाय चलाते हुए राजनीति में आए लोगों द्वारा गठबंधन धर्म का उल्लंघन ठीक नहीं। प्रशांत किशोर इस जवाब से तिलमिलाए। वे पलटवार से भला क्यों चूकते? तुरंत ट्विट किया कि सुशील मोदी का नैतिकता पर बयान अचरज की बात है। जो परिस्थितिवश भी उपमुख्यमंत्री हैं। अन्यथा उनकी पार्टी तो 2015 में चुनाव हारी थी। इस टिप्पणी के बाद भाजपा के और भी कई नेताओं ने प्रशांत किशोर की लानत-मलानत कर दी। पर इस बारे में पत्रकारों ने नीतीश कुमार से पूछा तो रहस्यमयी मुस्कान के साथ बोले- राजग में सब ठीक है। लेकिन प्रशांत किशोर को विवाद में न पड़ने की नसीहत देना जरूरी नहीं माना।

सियासी हलकों में नीतीश के भावी पैतरों को लेकर अटकलें तेज हैं। वे दबाव बनाने की राजनीति में निपुण माने जाते हैं। तेजस्वी यादव भले उन्हें पलटू चाचा कहते हों पर उनके नेतृत्व में फिर विधानसभा चुनाव लड़ने की परिस्थिति बने तो चाचा-भतीजे फिर एक हो सकते हैं। बिहार में सीएए का जैसा जबर्दस्त विरोध हुआ, उसने नीतीश को चौकस किया है। तभी तो उन्हें एलान करना पड़ा कि वे अपने सूबे में एनआरसी लागू नहीं करेंगे। पहले हरियाणा और महाराष्ट्र में भाजपा की जमीन खिसकने और फिर झारखंड के चुनावी नतीजों ने नीतीश की बेचैनी तो बढ़ाई ही है। इस बीच कांग्रेस ने तो कह भी दिया है कि नीतीश साथ आना चाहें तो उनका स्वागत है। साफ है कि नीतीश एक तरफ तो अपने लिए नए गठबंधन का विकल्प खुला रखे हैं दूसरी तरफ हालात का फायदा उठाते हुए भाजपा की बांह मरोड़ने के फेर में हैं।

जोश गहलोत का
सीएए पर राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के आक्रामक तेवरों ने भाजपा खेमे में खलबली मचाई है। कानून के विरोध में निकली रैली का जयपुर में गहलोत ने खुद नेतृत्व किया। केंद्र सरकार पर जमकर बरसे। जबकि इसी सूबे के सीमाई इलाकों में सबसे ज्यादा शरणार्थी रह रहे हैं। कानून को अव्यावहारिक बता गहलोत ने लागू करने से साफ इनकार किया है। भाजपा खेमे में भी गुटबाजी है। वसुंधरा राजे ने समर्थन में जोश नहीं दिखाया। गहलोत जैसे तेवर भाजपा के सूबेदार सतीश पूनिया से लेकर केंद्रीय मंत्रियों गजेंद्र सिंह शेखावत और अर्जुन मेघवाल व कद्दावर नेता गुलाब चंद्र कटारिया कोई नेता नहीं दिखा पाया। नतीजतन आलाकमान को मोर्चा संभालना पड़ा है। जोधपुर में रैली की। गहलोत के आक्रामक तेवरों ने उनकी पार्टी में उत्साह का संचार किया है। हरियाणा, महाराष्ट्र और झारखंड के चुनाव नतीजों के बरक्स वे डंके की चोट पर भविष्यवाणी कर रहे हैं कि भाजपा का बिस्तर अब सारे देश से ही गोल होने वाला है। गहलोत अब वसुंधरा पर नहीं मोदी और शाह पर वार करते हैं। शायद इसे ही अनुभव कर वसुंधरा भी अब गहलोत पर ज्यादा हमले नहीं कर रहीं। वसुंधरा को आलाकमान की शह पर सूबे के भाजपाई भी अब भाव नहीं दे रहे।
(प्रस्तुति : अनिल बंसल)