पश्चिम बंगाल में इस बार 14 फरवरी को सार्वजनिक अवकाश घोषित कर दिया गया है। इसी दिन सारी दुनिया में वैलेंटाइन डे मनाया जाता है। जिसे प्यार मोहब्बत में डूबे लोग मोहब्बत के इजहार का दिन भी कहते हैं। पर दीदी ने कहा है कि यह छुट्टी उन्होंने वैलेंटाइन डे के लिए नहीं की है। उनका कहना है कि सरकारी छुट्टी उन्होंने समाज सुधारक और राजवंशी नेता पंचानन वर्मा की जयंती को देखते हुए की है।

वैलेंटाइन डे को पंचानन वर्मा की जयंती के रूप में मनाने का ऐलान

दरअसल भारतीय पशु कल्याण बोर्ड की तरफ से घोषणा की गई थी कि वैलेंटाइन डे को गाय को गले लगाने के दिवस के रूप में मनाया जाएगा। तो फिर दीदी यानी सूबे की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने छुट्टी की नई परंपरा क्यों डाली है? दरअसल ममता बनर्जी के हर फैसले के पीछे अपने वोट बैंक को पुख्ता करने की मंशा जरूर रहती है। पंचानन वर्मा ने पश्चिम बंगाल में सामाजिक सुधार के क्षेत्र में काफी काम किया था। वे कूचबिहार के प्रतिष्ठित राजवंशी नेता थे। पिछले वर्ष उनकी जयंती के दिन रविवार था। जिस कारण अवकाश घोषित करने की जरूरत भी नहीं पड़ी और किसी का ध्यान भी इस तरफ नहीं गया। पर इस बार 14 फरवरी को मंगलवार है।

ममता के आलोचक तो यही कह रहे हैं कि मकसद उनका ईसाई समुदाय को खुश करना होगा। वैसे भी युवा पीढ़ी में पिछले कुछ बरसों से वैलेंटाइन डे का आकर्षण बढ़ा है। यह बाजार से जुड़ा एक बड़ा दिन बन गया है। अब आम लोग भी इस दिन को प्यार के दिन के रूप में देखते हैं। पाश्चात्य संस्कृति बताकर संघ परिवार और उससे जुड़े बजरंग दल जैसे संगठन वैलेंटाइन डे मनाने का विरोध करते हैं। हालांकि पिछले समय से उनका यह विरोध छुटभैये नेताओं को प्रचार हासिल करने का मौका भर ही देता है। कभी-कभी तो दक्षिणपंथी समूह जैसे तर्क देकर वैलेंटाइन डे का विरोध करते हैं, वह काफी हास्यास्पद भी हो जाता है। उन्हें भी संदेश देना दीदी का मकसद रहा होगा।

इससे पहले सूबे के आदिवासियों को खुश करने के लिए दीदी ने बिरसा मुंडा की जयंती पर भी सार्वजनिक अवकाश की घोषणा की थी। विश्वविद्यालयों के नाम भी बिरसा मुंडा, नेताजी सुभाष चंद्र बोस और पंचानन वर्मा के नाम पर रख चुकी हैं ममता पहले ही। अब नई पीढ़ी को तो मोहब्बत के इजहार की छूट और अवसर दे ही दिया पंचानन वर्मा की जयंती के बहाने दीदी ने।

फिर कुबोल

बड़बोले नेता चाहे जिस पार्टी के हों, अक्सर फजीहत ही कराते हैं अपने बड़बोलेपन से अपनी पार्टी और खुद की। तेलंगाना के भाजपा विधायक रघुनंदन राव का नाम भी ऐसे ही बड़बोले नेताओं की सूची में शामिल हो गया है। हाल ही में बिहारियों के बारे में विवादास्पद टिप्पणी कर विरोधियों को बैठे बिठाए मुद्दा थमा दिया। दरअसल, तेलंगाना सरकार ने सूबे का पुलिस महानिदेशक बिहार काडर के आइपीएस अधिकारी अंजनी कुमार को बनाया है।

इससे पहले भी बिहार के कुछ अफसरों को उन्होंने सूबे में तैनाती दे रखी थी। रघुनंदन राव चूंकि भाजपाई हैं सो मुख्यमंत्री केसीआर पर हमला करने के अवसर की तलाश में रहेंगे ही। केसीआर की आलोचना करते-करते जुबान ऐसी फिसली की बिहारियों को गुंडाराज का प्रतीक बता बैठे। केंद्रीय सेवा के अफसरों का काडर चाहे कोई भी हो पर वे डेपुटेशन पर किसी भी राज्य में जा सकते हैं। केंद्र का तो अपना कोई काडर होता नहीं, लिहाजा सभी आइएएस व आइपीएस अफसर केंद्र सरकार विभिन्न राज्यों से ही डेपुटेशन पर मांगती है।

जम्मू कश्मीर, पंजाब और असम जैसे राज्यों में दूसरे राज्यों के आइपीएस अधिकारी पुलिस महानिदेशक पहले भी रहे हैं। रघुनंदन राव ने केसीआर पर हमला करते हुए बयान दिया कि बिहारी अफसरों को लेकर वे बिहार का गुंडाराज तेलंगाना में भी चलाना चाहते हैं। भाजपा के नेता जहां इसे राव का निजी बयान बताकर पल्ला झाड़ रहे हैं वहीं जद (एकी), कांग्रेस और राजद के नेताओं ने पलटवार किया है कि भाजपा तो बिहारियों को सदैव अपमानित करती रही है। तेलंगाना में राजनीति का माहौल अभी गर्म है तो ऐसे और हादसों की आशंका है।

गाली गाथा

‘हराम’ शब्द का मतलब क्या है? जो पाप है जो वर्जित है। अपने असंसदीय शब्द पर हंगामे के बाद महुआ मोइत्रा इसके अरबी मूल के जरिए इसे न्यायोचित ठहराने की कोशिश कर रही हैं। आम तौर पर हिंदीभाषी गुस्से में अंग्रेजी बोलने लगते हैं। इन दिनों देखा गया है कि जब उच्च वर्ग की महिलाएं गुस्सा होती हैं तो हिंदी में गाली देती हैं। हाल के दिनों में दिल्ली-एनसीआर की हाउसिंग सोसायटी के मुख्यद्वार पर ऐसी कई घटनाएं देखी गईं जब अंग्रेजी में ही बात करने वाली महिलाएं सुरक्षाकर्मियों को हिंदी में भद्दी गालियां देती दिखाई दीं।

तृणमूल सांसद महुआ मोईत्रा उन उच्च वर्गीय लोगों में शुमार हो चुकी हैं जो गुस्सा आने पर हिंदी में गाली देती हैं। महुआ मोईत्रा के बोले शब्द संसद के रेकार्ड से हटा दिए गए हैं लेकिन महुआ उसे सोशल मीडिया के रेकार्ड पर ला रही हैं। गलती पर क्षमा कह कर आगे बढ़ा जा सकता है। लेकिन संसद में असंसदीय शब्द बोल कर उसे अरबी भाषा के जरिए सही ठहराना महुआ के अहंकार को ही दर्शाता है। खास कर जनप्रतिनिधि गालियों का महिमामंडन न करें तो समाज की सेहत के लिए सही होगा। (संकलन : मृणाल वल्लरी)