आज विश्व जल दिवस है। इस अवसर पर यह देखना महत्त्वपूर्ण हो जाता है कि दुनिया जल दिवस तो मना रही है, पर क्या उसके उपयोग को लेकर वह संजीदा, संयमित व सचेत है या नहीं? आज जिस तरह से अनवरत भू-जल का दोहन किया जा रहा है, उससे साल-दर-साल भू-जल स्तर गिरता जा रहा है। पिछले एक दशक के भीतर भू-जल स्तर में आई गिरावट को अगर आंकड़े के जरिये समझने का प्रयास करें तो अब से दस वर्ष पहले तक जहां तीस मीटर की खुदाई पर पानी मिल जाता था, वहां अब पानी के लिए साठ से सत्तर मीटर तक खुदाई करनी पड़ती है। साफ है कि बीते दस सालों में दुनिया का भू-जल स्तर बड़ी तेजी से घटा है और अब भी बदस्तूर घट रहा है, जो कि बड़ी चिंता का विषय है। अगर केवल भारत की बात करें तो इस संबंध में सरकार की एक जल नीति की यह रिपोर्ट उल्लेखनीय होगी जिसके अनुसार, देश में प्रतिव्यक्ति सालाना जल उपलब्धता 1947 के 6042 घन मीटर से चौहत्तर फीसद घट कर 2011 में 1545 घन मीटर रह गई है। भूजल का स्तर गिरते-गिरते नौ राज्यों में खतरनाक स्तर पर पहुंच गया है। ऐसे राज्यों में नब्बे फीसद भूजल का दोहन हो चुका है और उनके पुनर्भरण में काफी गिरावट आई है।

भारत में घटते भू-जल की स्थिति को एक उदाहरण के जरिये और बेहतर ढंग से समझने की कोशिश करें तो पानी से लबालब रहने वाली नर्मदा, घाघरा और बारना जैसी नदियों के बीच बसे बरेली जैसे नगर में भी भू-जल स्तर घटने की खबर कुछ समय पहले सामने आई। स्थिति यह है कि बरेली क्षेत्र के कुछ इलाकों में भू-जल स्तर गिर कर अड़तीस मीटर तक पहुंच गया है, इसलिए घरेलू बोरिंग में भी अक्सर पानी की समस्या आ रही है। प्रतिबंध के बाद भी ट्यूबेलों के लिए खुदाई हो रही है, जो भू-जल स्तर गिरने में एक बड़ी वजह है। भारतीय केंद्रीय जल आयोग द्वारा 2014 में जारी किए गए आंकड़ों के अनुसार देश के अधिकांश बड़े जलाशयों का जल-स्तर वर्ष 2013 के मुकाबले घटता हुआ पाया गया था। आयोग के अनुसार देश के बारह राज्यों- हिमाचल प्रदेश, उत्तर प्रदेश, मध्यप्रदेश, पश्चिम बंगाल, झारखंड, त्रिपुरा, गुजरात, महाराष्ट्र, उत्तराखंड, कर्नाटक, केरल और तमिलनाडु- के जलाशयों के जल-स्तर में काफी गिरावट पाई गई थी। आयोग की तरफ से यह भी बताया गया कि 2013 में इन राज्यों का जल-स्तर जितना अंकित किया गया था, वह तब ही काफी कम था। लेकिन 2014 में वह गिर कर तब से भी कम हो गया। 2015 में भी लगभग यही स्थिति रही।

गौरतलब है कि केंद्रीय जल आयोग (सीडब्लूसी) देश के पचासी प्रमुख जलाशयों की देखरेख व भंडारण क्षमता की निगरानी करता है। संभवत: इन स्थितियों के मद््देनजर ही अभी हाल में जारी जल क्षेत्र में प्रमुख परामर्शदाता कंपनी ईए की एक अध्ययन रिपोर्ट के मुताबिक भारत 2025 तक जल संकट वाला देश बन जाएगा। इस अध्ययन में कहा गया है कि परिवार की आय बढ़ने और सेवा व उद्योग क्षेत्र से योगदान बढ़ने के कारण घरेलू और औद्योगिक क्षेत्रों में पानी की मांग में उल्लेखनीय वृद्धि हो रही है। देश की सिंचाई का करीब सत्तर फीसद और घरेलू जल खपत का अस्सी फीसद हिस्सा भूमिगत जल से पूरा होता है, जिसका स्तर तेजी से घट रहा है। हालांकि घटते जल-स्तर को लेकर जब-तब देश में पर्यावरणविदों द्वारा चिंता जताई जाती रही है, लेकिन जल-स्तर को संतुलित रखने के लिए सरकारी स्तर पर कभी कोई ठोस प्रयास किया गया हो, ऐसा नहीं दिखता।

अब सवाल यह उठता है कि आखिर भू-जल स्तर के इस तरह निरंतर गिरते जाने का मुख्य कारण क्या है? अगर इस सवाल की तह में जाते हुए हम घटते भू-जल स्तर के कारणों को समझने का प्रयास करें तो तमाम बातें सामने आती हैं। घटते भू-जल के लिए सबसे प्रमुख कारण तो उसका अनियंत्रित और अनवरत दोहन ही है। आज दुनिया अपनी जल-जरूरतों की पूर्ति के लिए सबसे ज्यादा भू-जल पर ही निर्भर है। लिहाजा, एक तरफ भू-जल का अनवरत दोहन हो रहा है तो वहीं दूसरी तरफ औद्योगीकरण के अंधोत्साह में हो रहे प्राकृतिक विनाश के चलते पेड़-पौधों व पहाड़ों की हरियाली आदि में कमी आने के कारण बरसात में भी काफी कमी आ गई है। परिणामत: धरती को भू-जल दोहन के अनुपात में जल की प्राप्ति नहीं हो पा रही है।

सीधे शब्दों में कहें तो धरती जितना जल दे रही है, उसे उसके अनुपात में बेहद कम जल मिल रहा है। बस यही वह प्रमुख कारण है जिससे कि दुनिया का भू-जल स्तर लगातार गिरता जा रहा है। दुखद और चिंताजनक बात यह है कि कम हो रहे भू-जल की इस विकट समस्या से निपटने के लिए अब तक वैश्विक स्तर पर कोई ठोस पहल होती नहीं दिख रही है। यह एक कटु सत्य है कि अगर दुनिया का भू-जल स्तर इसी तरह से गिरता रहा तो आने वाले समय में लोगों को पीने के लिए भी पानी मिलना मुश्किल हो जाएगा।

विश्व बैंक के एक आंकड़े पर गौर करें। उसमें कहा गया है कि भारत में ताजा जल की सालाना उपलब्धता 761 अरब घन मीटर है, जो किसी भी देश से अधिक है। लेकिन बावजूद इसके अगर देश में चारों तरफ पानी की किल्लत महसूस की जा रही है तो इसका प्रमुख कारण यह है कि इस उपलब्ध जल में से आधा से अधिक उद्योग, अवजल जैसे कारणों से प्रदूषित हो चुका है और उसके फलस्वरूप डायरिया, टायफाइड तथा पीलिया जैसे रोगों का प्रसार बढ़ रहा है।

हालांकि ऐसा कतई नहीं है कि कम हो रहे पानी की इस समस्या का हमारे पास कोई समाधान नहीं है या इस दिशा में सरकार द्वारा कुछ किया नहीं जा रहा। घटते भू-जल की समस्या के मद्देनजर विगत दिनों वित्तमंत्री अरुण जेटली ने चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि उनकी सरकार भूजल प्रबंधन पर छह हजार करोड़ रुपए खर्च करेगी। इस समस्या से निपटने के लिए सबसे बेहतर समाधान तो यही है कि बारिश के पानी का समुचित संग्रहण किया जाए और उसी पानी के जरिये अपनी अधिकाधिक जल जरूरतों की पूर्ति की जाए। बरसात के पानी के संरक्षण के लिए उसके संरक्षण माध्यमों को विकसित करने की जरूरत है, जो कि सरकार के साथ-साथ प्रत्येक जागरूक व्यक्ति का भी दायित्व है।

अभी स्थिति यह है कि समुचित संरक्षण माध्यमों के अभाव में वर्षा का बहुत ज्यादा जल, जो लोगों की तमाम जल जरूरतों को पूरा करने में काम आ सकता है, खराब और बर्बाद हो जाता है। अगर प्रत्येक घर की छत पर वर्षा जल के संचयन के लिए एक-दो टंकियां लग जाएं व घर के आसपास कुएं आदि की व्यवस्था हो जाए, तो वर्षा जल का समुचित संरक्षण हो सकेगा, जिससे जल-जरूरतों की पूर्ति के लिए भू-जल पर लोगों की निर्भरता भी कम हो जाएगी। परिणामत: भू-जल का स्तरीय संतुलन कायम रह सकेगा।

जल संरक्षण की व्यवस्थाएं हमारे परंपरागत समाज में थीं, जिनके प्रमाण उस समय के निर्माण के ध्वंसावशेषों में मिलते हैं। पर विडंबना यह है कि इस आधुनिक समय में हम उन व्यवस्थाओं को लेकर बहुत गंभीर नहीं हैं। बहरहाल, जल संरक्षण की इन व्यवस्थाओं के अलावा अपने दैनिक कार्यों में सजगता और समझदारी से पानी का उपयोग करके भी जल संरक्षण किया जा सकता है। जैसे, घर का नल खुला न छोड़ना, साफ-सफाई आदि कार्यों के लिए खारे जल का उपयोग करना, नहाने के लिए उपकरणों के बजाय साधारण बाल्टी आदि का इस्तेमाल करना आदि तमाम ऐसे सरल उपाय हैं, जिन्हें अपनाकर प्रत्येक व्यक्ति प्रतिदिन काफी पानी की बचत कर सकता है।

कुल मिलाकर कहने का अर्थ यह है कि जल संरक्षण के लिए लोगों को सबसे पहले जल के प्रति अपनी सोच में बदलाव लाना होगा। जल को खेल-खिलवाड़ की अगंभीर दृष्टि से देखने के बजाय अपनी जरूरत की एक सीमित वस्तु के रूप में देखना होगा। हालांकि ये चीजें तभी होंगी जब जल की समस्या के प्रति लोगों में आवश्यक जागरूकता आएगी और यह दायित्व दुनिया के उन तमाम देशों- जहां भू-जल स्तर गिर रहा है- की सरकारों समेत संपूर्ण विश्व समुदाय का है। हालांकि ऐसा भी नहीं है कि जल समस्या को लेकर दुनिया में बिलकुल भी जागरूकता अभियान नहीं चलाए जा रहे। बेशक टीवी, रेडियो आदि माध्यमों से इस दिशा में कुछेक प्रयास जरूर हो रहे हैं, लेकिन गंभीरता के अभाव में वे प्रयास कोई बहुत कारगर सिद्ध होते नहीं दिख रहे।

लिहाजा, आज जरूरत इस बात की है कि पानी की समस्या को लेकर गंभीर होते हुए न सिर्फ राष्ट्र स्तर पर बल्कि विश्व-स्तर पर भी एक ठोस योजना के तहत घटते भू-जल की समस्या की भयावहता व जल संरक्षण के उपायों के बारे में बताते हुए एक जागरूकता अभियान चलाया जाए, जिससे जल समस्या की तरफ लोगों का ध्यान आकर्षित हो और वे इस समस्या को समझते हुए सजग हो सकें। यह एक ऐसी समस्या है जो किसी कायदे-कानून से नहीं, बल्कि लोगों में व्यापक जागरूकता से ही हल हो सकती है। लोग जितना जल्दी जल संरक्षण के प्रति जागरूक होंगे, घटते भू-जल की समस्या से दुनिया को उतनी ही जल्दी राहत मिल सकेगी।