नृपेंद्र अभिषेक नृप
उत्पादन और मूल्य प्राप्ति में अनिश्चितता की वजह से किसान उच्च लागत वाली कृषि के दुश्चक्र में फंस गया है। लगातार गिरता उत्पादन और फसलों में बढ़ती बीमारियां कृषि क्षेत्र की जटिलताओं को और बढ़ा रही हैं। इस स्थिति से किसानों को बाहर निकालने और उनके दीर्घकालिक कल्याण के लिए प्राकृतिक खेती की तरफ रुख करने से सकारात्मक परिणाम मिल सकते हैं।
कृषि में बढ़ते रासायनिक खादों और दवाओं के उपयोग से फसलों और फिर इसका सीधा प्रतिकूल प्रभाव स्वास्थ्य पर पड़ रहा है। प्राकृतिक खेती एक रासायनिक खाद मुक्त यानी पारंपरिक कृषि पद्धति है। इसे कृषि-पारिस्थितिकी आधारित विविध कृषि प्रणाली माना जाता है, जो जैव विविधता के साथ फसलों, पेड़ों और पशुधन को एकीकृत करती है।
सरकार ने देश भर में प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने के लिए भारतीय प्राकृतिक कृषि पद्धति यानी बीपीकेपी को प्रश्रय देकर राष्ट्रीय प्राकृतिक खेती मिशन की शुरुआत की है, ताकि किसान खेतों में रासायनिक खादों का उपयोग कम कर सकें।राष्ट्रीय प्राकृतिक खेती मिशन के तहत पंद्रह हजार क्लस्टर यानी समूह विकसित करके साढ़े सात लाख हेक्टेयर क्षेत्र को इसकी परिधि में लाया जाएगा।
प्राकृतिक खेती शुरू करने के इच्छुक किसानों को क्लस्टर सदस्य के रूप में पंजीकृत किया जाएगा और इसके साथ ही प्रत्येक क्लस्टर में पचास हेक्टेयर भूमि के साथ पचास या उससे अधिक किसानों को शामिल किया जाएगा। क्लस्टर एक गांव भी हो सकता है और उसमें दो-तीन आसपास के गांवों को भी शामिल किया जा सकता है।
इस मिशन के तहत बुनियादी ढांचे के निर्माण के लिए तीन वर्ष तक प्रति वर्ष पंद्रह हजार रुपए प्रति हेक्टेयर की वित्तीय सहायता मिलेगी। इस वित्त पोषण में इस बात का ध्यान रखा जाएगा कि किसान प्राकृतिक खेती के लिए प्रतिबद्ध हों। अगर कोई किसान प्राकृतिक खेती का उपयोग नहीं करता है, तो उसे बाद की किस्तों का भुगतान नहीं किया जाएगा। इन सबके अलावा, प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने के लिए क्रियान्वयन ढांचे, संसाधनों, क्रियान्वयन की प्रगति, किसान पंजीकरण, ब्लाग आदि की जानकारी प्रदान करने वाला एक वेब पोर्टल भी शुरू किया गया है।
देश में गैर-रासायनिक खेती को प्रोत्साहित करने के लिए खरीद पर भले जोर दिया जा रहा हो, पर हकीकत में सारे प्रयास अभी तक आधे-अधूरे हैं। सरकार ने 2022 तक किसानों की आय दोगुनी करने का लक्ष्य रखा था, लेकिन इसमें अभी तक कोई विशेष सफलता हाथ नहीं लगी है। उत्पादन और मूल्य प्राप्ति में अनिश्चितता की वजह से किसान उच्च लागत वाली कृषि के दुष्चक्र में फंस गया है। लगातार गिरता उत्पादन और फसलों में बढ़ती बीमारियां कृषि क्षेत्र की जटिलताओं को और बढ़ा रही हैं। इस स्थिति से किसानों को बाहर निकालने और उनके दीर्घकालिक कल्याण के लिए प्राकृतिक खेती की तरफ रुख करने से सकारात्मक परिणाम मिल सकते हैं।
दुनिया की बढ़ती जनसंख्या एक गंभीर समस्या है। लोगों को भोजन की आपूर्ति के लिए मानव द्वारा अधिक से अधिक उत्पादन करने के लिए तरह-तरह के रासायनिक खादों, जहरीले कीटनाशकों का उपयोग, प्रकृति के जैविक और अजैविक पदार्थो के बीच आदान-प्रदान के चक्र यानी ‘इकोलाजी सिस्टम’ को प्रभावित करता है, जिससे भूमि की उर्वरा शक्ति खराब हो जाती है, साथ ही वातावरण प्रदूषित होता और मानव स्वास्थ्य में गिरावट आती है।
भारत में ग्रामीण अर्थव्यवस्था का मुख्य आधार कृषि है और यह बड़ी आबादी की आय का मुख्य साधन भी है। हरित क्रांति के समय बढ़ती जनसंख्या और आय के मद्देनजर उत्पादन बढ़ाने पर जोर दिया गया। तब अधिक उत्पादन के लिए खेती में अधिक मात्रा में रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों के उपयोग पर जोर दिया गया। अब इसकी वजह से सीमांत और छोटे किसानों के पास कम जोत में अत्यधिक लागत आ रही है और जल, भूमि, वायु प्रदूषित हो रहा है, खाद्य पदार्थ भी जहरीले हो रहे हैं। इसलिए इन सभी समस्याओं से निपटने के लिए प्राकृतिक कृषि पर सरकार बल दे रही है।
प्राकृतिक खेती एक अनूठा माडल है, जो कृषि-पारिस्थितिकी पर निर्भर है। इसका उद्देश्य उत्पादन की लागत को कम करना और सतत कृषि को बढ़ावा देना है। प्राकृतिक खेती मिट्टी की सतह पर सूक्ष्म जीवों और केंचुओं द्वारा कार्बनिक पदार्थों के विखंडन को प्रोत्साहित करती और धीरे-धीरे मिट्टी में पोषक तत्त्वों को जोड़ती है। हालांकि, जैविक खेती में जैविक खाद, वर्मी-कंपोस्ट और गाय के गोबर की खाद का उपयोग किया जाता है तथा इन्हें जोते हुए खेत में प्रयोग किया जाता है।
भारत सरकार द्वारा सहायता प्राप्त प्राकृतिक कृषि क्षेत्र अब 4.09 लाख हेक्टेयर तक पहुंच गया है। इस कार्य के लिए आंध्र प्रदेश, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और केरल सहित आठ राज्यों में 49.81 करोड़ रुपए का आबंटन किया गया है। भारत में वर्तमान में शून्य बजट प्राकृतिक कृषि पर ध्यान दिया जा रहा है। इसके तहत प्राकृतिक खेती के तरीकों का एक समूह तथा एक जमीनी किसान आंदोलन तैयार हो रहा है, जो भारत के विभिन्न राज्यों में फैल रहा है।
शून्य बजट प्राकृतिक कृषि एक ऐसी पद्धति है, जो लागत कम करने के साथ ही जलवायु पर निर्भर कृषि तथा किसानों को स्थानीय संसाधनों का उपयोग करने के लिए प्रोत्साहित करती और कृत्रिम उर्वरकों और कीटनाशकों के उपयोग को समाप्त करती है। इस तरह मृदा स्वास्थ्य और मानव स्वास्थ्य को नुकसान से बचाती है।
शून्य बजट प्राकृतिक खेती, एक अनूठा तरीका है, जिसमें बाजार से बीज, उर्वरक और पौधों के संरक्षण, रसायनों जैसे महत्त्वपूर्ण उपादानों की खरीद के लिए कोई मौद्रिक निवेश करने की आवश्यकता नहीं होती है। यह व्यापक, प्राकृतिक और आध्यात्मिक कृषि प्रणाली है। किसान उर्वरकों और कीटनाशकों के बिना फसल की स्थानीय किस्मों को उगा सकते हैं। चूंकि यह शून्य बजट खेती है, इसलिए इसमें किसी संस्थागत ऋण की आवश्यकता नहीं होगी और मानव श्रम पर निर्भरता भी कम से कम हो जाएगी। शून्य बजट प्राकृतिक खेती विभिन्न कृषि सिद्धांतों के माध्यम से मिट्टी की उर्वरता में सुधार लाने की एक कारगर पद्धति है।
प्राकृतिक खेती कई अन्य लाभों, जैसे कि मिट्टी की उर्वरता और पर्यावरणीय स्वास्थ्य की बहाली, और ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन का शमन या उनमें कमी लाते हुए किसानों की आय बढ़ाने का मजबूत आधार प्रदान करती है। यह प्राकृतिक या पारिस्थितिकीय प्रक्रियाओं, जो खेतों में या उसके आसपास मौजूद होती हैं, पर आधारित होती है। किसानों की आमदनी दोगुना करने के साथ ही अनाज का उत्पादन भी वर्तमान की तुलना में दोगुना करने के सरकार द्वारा निर्धारित लक्ष्य खेती की इसी विधि से हासिल किए जा सकते हैं। यही नहीं, शून्य बजट प्राकृतिक खेती के तहत जो फसल उगाई जाती है उसकी पैदावार भी काफी अच्छी होती है।
‘भारत में आर्गेनिक और प्राकृतिक खेती से संपूर्ण लाभ के प्रमाण’ नामक रिपोर्ट प्राकृतिक खेती के दृष्टिकोण और फायदे के बारे में सबूतों के आधार पर बताती है कि गैर-रासायनिक खेती को व्यापक विस्तार दिया जा सकता है। यह रिपोर्ट भविष्य की नीतियों के लिए एक स्पष्ट रास्ता दिखाती है कि सिर्फ पैदावार के बजाय जैविक या प्राकृतिक खेती के विभिन्न फायदों को समग्रता से देखा जाना चाहिए।
वैज्ञानिक समुदाय और नीति निर्माता इन तथ्यों पर ध्यान देंगे और गैर-रासायनिक खेती को प्रोत्साहित करेंगे। 2014-19 के बीच 504 बार दर्ज पैदावार के परिणाम बताते हैं कि प्राकृतिक खेती के जरिए उच्चतम पैदावार इकतालीस फीसद, आंशिक रसायन आधारित एकीकृत खेती में पैदावार तैंतीस फीसद और रासायनिक खेती में महज छब्बीस फीसदी पैदावार रही।
इन सबके अलावा एक अच्छी बात यह है भी कि इस बार के आम बजट में रासायनिक खेती की जगह प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने की घोषणा की गई है। इसमें राज्यों को भी प्रोत्साहित करने की बात कही है, ताकि वे अपने कृषि विश्वविद्यालयों के पाठ्यक्रम को नए सिरे से प्राकृतिक खेती के आधार पर तैयार कर सकें। समय की मांग है कि इस दिशा में और बड़े कदम उठाए जाने चाहिए।