हाल में देश-विदेश में रोबोट के हाथों दो मजदूरों की मौत का मामला काफी चर्चा में रहा। इनमें पहली घटना जर्मनी की आॅटोमोबाइल कंपनी फॉक्सवैगन से जुड़ी है, जहां उत्पादन संयंत्र में रोबोट ने एक मजदूर की जान ले ली। कुछ ऐसा ही वाकया गुड़गांव के मानेसर स्थित मारुति सुजुकी की एक बेंडर कंपनी में भी सामने आया। यहां भी एक चौबीस वर्षीय मजदूर गलती से रोबोट एरिया में चला गया। रोबोट ने उसे मैटल प्लेट पर गिरा दिया, जहां आधे घंटे में ही उसकी मौत हो गई।

गौरतलब है कि अभी तक विज्ञान की फंतासी कथाओं में ही रोबोट की कहानियां सुनने और पढ़ने को मिलती रही हैं। पर भारत में अपनी तरह का यह पहला हादसा है। रोबोट के हाथों हुए इन हादसों को लेकर दुनिया भर में एक बहस खड़ी हो गई है। इस बहस में उठा सबसे खास सवाल यह है कि क्या इस हादसे के लिए उस रोबोट को दोषी माना जाए या उसे बनाने वाली कंपनी को, या फिर उस मजदूर को दोषी माना जाए जो बिना जानकारी के उस रोबोट के सामने पहुंच गया? बहस का रुख चाहे जो हो, लेकिन मानव और मशीन के बीच तेजी से बढ़ता यह फासला अब इस कृत्रिम बुद्धि के संभावित खतरों पर गंभीरतापूर्वक विचार करने को मजबूर कर रहा है।

कहना न होगा कि अभी तक लोग जिन रोबोटों को विज्ञान की कथाओं, नाटकों और फिल्मों में देखते-सुनते आए हैं, वे अब इस मशीनी दुनिया की कड़वी सच्चाई बन कर सामने आ रहे हैं। दरअसल, रोबोट कंप्यूटर प्रोग्रामिंग के जरिए काम करता है। यह एक मशीनी गतिविधि है, जिसमें टाइमिंग के आधार पर उसका समय, क्रिया और एक निश्चित व्यवहार तय है। उसका एक निश्चित सॉफ्टवेयर है, जिसके आधार पर ही उस मशीन का संचालन होता है। आज दुनिया की हजारों कंपनियां अपने उत्पादन में अधिक से अधिक रोबोट का इस्तेमाल कर रही हैं। गुड़गांव और फरीदाबाद में होंडा, यामहा, मारुति, एस्कॉर्ट्स और शोवा इंडिया जैसी डेढ़ सौ से अधिक कंपनियों में अधिकतर जोखिम भरा काम इन्हीं रोबोट से लिया जा रहा है।

कंपनियां मानती हैं कि रोबोट के जरिए किया जाने वाला काम मानव से अच्छा और त्रुटिविहीन होता है। साथ ही इनके काम करने से औद्योगिक दुर्घटनाएं भी कम होती हैं। विशेषज्ञ मानते हैं कि रोबोट न तो थकता है और न ही काम को अधूरा छोड़ता है। इसके काम की गुणवत्ता भी अच्छी होती है। सबसे बड़ी बात तो यह है कि इन रोबोटों का न तो कोई लंच होता है और न ही इनसे पीएफ या हड़ताल का खतरा होता है। पचास लाख रुपए से लेकर डेढ़ करोड़ रुपए तक की कीमत के ये रोबोट आज शिक्षा, चिकित्सा, खेल, अंतरिक्ष और रक्षा क्षेत्र के अलावा कार उत्पादन, पैकेजिंग और वेल्डिंग जैसी अनेक कंपनियों में काम कर रहे हैं। आंकड़े बताते हैं कि चीन, कोरिया, जापान, जर्मनी और अमेरिका के केवल कार निर्माण उद्योग में प्रति दस हजार लोगों पर तीस से लेकर पांच सौ तक रोबोट काम कर रहे हैं।

आंकड़े यह भी बताते हैं कि आज रोबोट विज्ञान में जापान सबसे आगे है। अकेले चीन में रोबोट से जुड़ी सॉफ्टवेयर इंजीनियरिंग और इसके कल-पुर्जों का बाजार तीस अरब डॉलर के करीब है। कहना न होगा कि पिछले वर्ष चीन में यह बाजार करीब दस अरब डॉलर का रहा और वहां पचपन हजार से अधिक रोबोट की बिक्री हुई।

भारत में भी रोबोट से जुड़ा बाजार पिछले चार-पांच साल में चार गुना से अधिक बढ़ गया। वर्तमान में रोबोटिक विज्ञान का तेजी से विस्तार होने से अब विश्व स्तर पर तमाम ऐसे रोबोट काम कर रहे हैं, जो लोगों की मेजबानी करने के साथ-साथ नाचने, गाने, गेंद को किक मारने, देखभाल करने, किचन में काम करने, अनेक भाषाओं को जानने और समझने तथा तरह-तरह के शोध में सहायता करने जैसे कामों को अंजाम दे रहे हैं।

सच यह है कि आज दुनिया में मानव श्रम को हिकारत की नजर से देखा जा रहा है। दूसरे, बढ़ती मजदूरी, वेतन और भत्तों में बढ़ोतरी की मांग और हड़ताल जैसी समस्याओं से निजात पाने के लिए रोबोट इसका स्थानापन्न बन रहे हैं। रोबोट केवल मानवीय श्रम को दरकिनार नहीं कर रहे, बल्कि कृत्रिम बुद्धि के रूप में संचालित होने वाले रोबोट मानव मस्तिष्क से भी आगे जाने की तैयारी में हैं। ऑक्सफर्ड विश्वविद्यालय के वैज्ञानिक स्टुअर्ट आर्मस्ट्रांग का कहना है कि भविष्य में रोबोट मनुष्यों से ज्यादा तेज और चालाक ही नहीं होंगे, बल्कि वे देशों का शासन चलाने और मानव का सफाया करने में भी सक्षम होंगे।

उनका यह भी कहना है कि अगर इस कृत्रिम बुद्धि के क्षेत्र में हो रहे शोध में सावधानियां नहीं बरती गर्इं, तो मानव जाति को इसकी बहुत बड़ी कीमत चुकानी पड़ेगी। शायद इस कृत्रिम बुद्धि के विकास से जुड़े खतरों को भांपते हुए ही गूगल ने इस पर चल रहे शोध पर निगाह रखने के लिए एक नैतिक बोर्ड का गठन भी कर दिया है। गूगल ने हाल ही में कुछ ऐसी कंपनियां भी खरीदी हैं, जो कंप्यूटरों के लिए कृत्रिम बुद्धि से युक्त सॉफ्टवेयर का विकास कर रही हैं। उनको उम्मीद है कि इस सॉफ्टवेयर से ये कंप्यूटर मानव की तरह ही सोचने ओर विचारने लगेंगे।

अभी तक रोबोटिक विज्ञान और उसके विस्तार का जो जिक्र किया गया है वह इस बहस का एक उजला पक्ष है। इसके नकारात्मक पक्ष की ओर ध्यान दिलाते हुए मशहूर भौतिक विज्ञानी स्टीफन हॉकिंग ने साफ-साफ कहा है कि रोबोट धरती से मानव जीवन के समाप्त होने की प्रक्रिया की शुरुआत करेंगे।

उनकी यह चिंता इसलिए वाजिब लगती है कि मानव का आज का यह धीमा जैविक विकास अभी के इन रोबोट के तीव्र और कृत्रिम बुद्धि के विकास के सामने ठहर नहीं पा रहा है। निश्चित ही मनुष्य जाति के लिए यह एक खतरे की घंटी है। आज की यह तकनीक जिस तरह वर्तमान की चुनौतियों के अनुसार खुद को ढालना सीख रही है उससे मानव जाति के सामने एक अनिश्चित भविष्य की लकीरें जरूर खिंच रही हैं।

औद्योगिक उत्पादन बढ़ाना और कामगारों के वेतन-पारिश्रमिक आदि की मांगों से निपटने के लिए रोबोट के इस्तेमाल को बढ़ावा देना कंपनियों के स्वार्थ के हिसाब से ठीक हो सकता है, पर क्या इसमें व्यापक समाज-हित भी है? रोबोट के इस्तेमाल के चलते जो रोजगार की कमी होगी, क्या वह एक नए असंतोष को जन्म नहीं देगी? मशीन क्या मनुष्य से ऊपर है? रोबोट की मशीनी सक्रियता से जो घटनाएं सामने आ रही हैं उससे देश में चिंता की लकीरें खिंचना लाजमी है। वह इसलिए कि कृत्रिम बुद्धि का क्रमिक विकास इन रोबोटों को अत्याधुनिक बनाने का काम कर रहा है।

कड़वा सच यह है कि इस समय आइएस और अन्य आतंकवादी संगठन देश में अपना जाल फैलाने और खुद को नई तकनीक से युक्त बनाने को बेचैन हैं। इस समय देश में यह चिंता भी है कि अगर ये संगठन रोबोट से जुड़े सॉफ्टवेयर का उपयोग अपने लक्ष्य की प्राप्ति के लिए करने लगे तो मानवता सिहर उठेगी। अंतरराष्ट्रीय नागरिक जमात के साथ-साथ दुनिया भर के वैज्ञानिक समुदाय और विभिन्न देशों के राष्ट्राध्यक्षों को भी इस ओर बिना देरी किए ध्यान देने की आवश्यकता है।

इतिहास गवाह है कि आज तक वैज्ञानिकों द्वारा देश और समाज के कल्याण के लिए जो सृजनात्मक शोध हुए हैं, उनसे मानव विकास के साथ-साथ विनाश के साधन भी तैयार हुए हैं। वह चाहे परमाणु ऊर्जा की खोज हो या तमाम प्रकार के रासायनिक तत्त्वों अथवा प्लास्टिक का निर्माण या चाहे तरह-तरह की कारों का निर्माण ही क्यों न हो, इन सभी ने लोगों की सुविधाओं के साथ आतंक और प्रदूषण के रूप में काफी क्षति पहुंचाई है। यही आशंकाएं एक बार फिर रोबोट के अत्यधिक उपयोग को लेकर उठ रही हैं।

जरा गौर करें कि अमेरिका में टेक्सला कार के जनक और प्रसिद्ध वैज्ञानिक इलोन मस्क ने एक समय में रोबोट से संबद्ध कृत्रिम बुद्धि को बढ़ावा देने में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया था। पर मस्क अब इसके प्रखर आलोचक बन गए हैं। आज उनका कहना है कि रोबोट के निर्माण का मतलब सीधे-सीधे दानवों को निमंत्रण देना है। रोबोट से जुड़े हादसे सही मायनों में मानव और मशीन के बीच संघर्ष की ओर इशारा करते हैं। यह सच है कि मानव निर्मित मशीन चाहे जितनी तरक्की कर ले, पर वह हमेशा मानवीय विवेक और संवेदनाओं से दूर ही रहेगी।

निश्चित ही रोबोट की कल्पना मानवीय श्रम के विभिन्न रूपों का ही एक विकल्प है। पर ये रोबोट धीरे-धीरे अब ‘टर्मिनेटर’ बन रहे हैं। इक्कीसवीं सदी के इस वैश्विक दौर में मशीनीकरण के विस्तार को रोकना नामुमकिन है। महात्मा गांधी इन तमाम वजहों के चलते ही मशीनीकरण के अतिरेकी प्रयोग के खिलाफ थे। पर अब समय आ गया है, जब मानव विकास और उसके अस्तित्व के संरक्षण के लिए रोबोट जैसी मशीन की सीमाओं को तय करना पड़ेगा। अन्यथा भविष्य में मानव निर्मित अधिक चतुराई वाले ये रोबोट मानव को विस्थापित ही नहीं करेंगे, बल्कि देश और दुनिया से बेदखल करने में भी ये खासी भूमिका निभाएंगे।