ब्रह्मदीप अलूने
दक्षिण एशिया के देशों को यह समझने की जरूरत है कि उनकी जरूरत हथियार नहीं, बल्कि करोड़ों लोगों की रोजी-रोटी है। इस क्षेत्र से महाशक्तियों को दूर रखने और मानवीय संकट से उबरने के लिए साझा प्रयास करने की जरूरत है।
भुखमरी, कुपोषण, बेरोजगारी, राजनीतिक अस्थिरता और आतंकवाद से प्रभावित अति संवेदनशील क्षेत्रों में शुमार दक्षिण एशिया भी विश्व शांति के लिए चुनौती बढ़ाता रहा है। सबसे अधिक और घनी आबादी वाले इस भौगोलिक क्षेत्र में लगभग दो अरब लोग बसते हैं, जो दुनिया की कुल आबादी का एक चौथाई है। किसी भी वैश्विक आर्थिक संकट का असर इस क्षेत्र पर सबसे ज्यादा पड़ता है और भुखमरी का संकट गहरा जाता है। संयुक्त राष्ट्र बाल कोष (यूनिसेफ) तो पहले ही चेता चुका था कि दक्षिण एशिया में दस करोड़ लोगों के सामने रोटी का संकट खड़ा हो सकता है। अब इस संख्या में भारी इजाफा हो गया है।
वैश्विक भुखमरी सूचकांक की ताजा रिपोर्ट में भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश, नेपाल और श्रीलंका की स्थिति बेहद खराब बताई गई है। जलवायु परिवर्तन और कोविड महामारी से भुखमरी का संकट तो बढ़ा ही है, साथ ही शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार की समस्याएं भी विकराल हो गई हैं। भारत के पड़ोसी देश राजनीतिक उथल-पुथल का सामना कर रहे हैं। गौरतलब है कि दक्षिण एशिया के देशों में आपसी सहयोग के लिए 1985 में दक्षेस की स्थापना की गई थी। इस संगठन का उद्देश्य दक्षिण एशिया में आपसी सहयोग से शांति और प्रगति हासिल करना था। लेकिन विभिन्न देशों के बीच विवाद इस पर संगठन पर हावी रहे और इसी का परिणाम है कि दुनिया की बड़ी आबादी वाला यह क्षेत्रीय संगठन आर्थिक समस्याओं का समाधान करने में विफल रहा।
दरअसल, श्रीलंका, नेपाल और मालदीव की अर्थव्यवस्था मुख्यरूप से पर्यटन पर ही टिकी है। कोविड महामारी के कहर ने इन देशों की अर्थव्यवस्था चौपट कर दी। फिर, रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की बढ़ती कीमतों से महंगाई का भी कहर बरपा हुआ है। विदेशी मुद्रा की कमी किसी देश की अर्थव्यवस्था को कैसे प्रभावित कर सकती है, यह श्रीलंका और पाकिस्तान के हालात से साफ हो गया है। आम तौर पर माना जाता है कि किसी देश का विदेशी मुद्रा भंडार कम से कम सात महीने के आयात के लिए पर्याप्त होना चाहिए।
लेकिन दक्षिण एशिया के कई देश दिवालिया होने की कगार पर हैं। नेपाल के पास अभी जितनी विदेशी मुद्रा बची है, उससे सिर्फ छह महीनों का आयात बिल ही भरा जा सकता है। सरकार ने विदेशी सामान के आयात पर रोक लगा दी है। नेपाल के नागरिक सड़कों पर प्रदर्शन कर रहे हैं। उधर, श्रीलंका तो कंगाली की कगार पर आ गया है। वह अब अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष से मदद मांग रहा है। भारत और चीन जैसे देश भी उसे मदद दे रहे हैं। ऐसे ही पाकिस्तान भी अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष के आगे गिड़गिड़ाता दिख रहा है। वहीं मालदीव भी मदद के लिए भारत की ओर देख रहा है।
अगर नेपाल की बात करें तो हिमालय की तराई में बसा यह देश करीब बासठ फीसद विदेशी व्यापार भारत से करता है और करीब चौदह फीसद चीन से। नेपाल की सबसे बड़ी समस्या वहां राजनीतिक अस्थिरता है। इसी का फायदा उठा कर चीन ने उसे कर्ज के जाल में फंसा लिया है। पाकिस्तान, श्रीलंका और मालद्वीप जैसे देश भी चीन के भारी कर्ज में डूबे हैं। श्रीलंका, नेपाल और पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था भारी व्यापार घाटे से जूझ रही है। इसके साथ ही तेल की बढ़ती कीमतें और मजबूत होते डालर ने इन देशों की मुद्रा को गिरा दिया है। चीन पर बहुत अधिक निर्भरता ने पाकिस्तान को आर्थिक रूप से खोखला बना दिया है। उसके पास आयात बिलों का भुगतान करने के लिए कोई विदेशी जमा पूंजी नहीं बची है। नेपाल और श्रीलंका की भी कमोबेश यही स्थिति है।
अफगानिस्तान का मानवीय संकट भी कम गंभीर नहीं है। तालिबान के सत्ता में आने के बाद इस देश में गरीबी और भुखमरी का संकट लगातार गहराता रहा है। तालिबान के सत्ता में आने के बाद वैश्विक आर्थिक मदद तो बंद हुई है, अमेरिका ने भी उस पर कई प्रतिबंध लगा दिए हैं। इससे वहां की अर्थव्यवस्था लड़खड़ा गई है। इस आर्थिक तंगी का असर देश में दिखने लगा है। इस संकट से बचने के लिए तालिबान नशीले पदार्थों की तस्करी को बढ़ावा दे सकता है। तालिबान की सत्ता हेरोइन के अवैध कारोबार को बढ़ावा देती है तो भारत के लिए बड़ा खतरा है।
मादक पदार्थों की तस्करी, हथियारों की तस्करी, मानव तस्करी, जाली मुद्रा, साइबर अपराध से लेकर दंगे भड़काना, सांप्रदायिक विद्वेष फैलाना और सामरिक सूचनाओं को लीक करने जैसे संवेदनशील मामलों में अपराधी आतंकियों के मददगार बनते रहे हैं। मादक पदार्थों के तस्करों के साथ अपराधियों का गठजोड़ पनपता है और इसके बाद तस्करी और अवैध हथियारों का कारोबार इन्हें आतंकवाद से जोड़ता है।
मादक पदार्र्थों की तस्करी के साथ, जहरीले रसायनों का निर्माण और आतंकियों से संबंधों का त्रिकोण व्यापक तबाही का सबब बन सकता है। संकट यह है कि भारत की भौगोलिक स्थिति इस त्रिकोण के बेहद मुफीद है। म्यांमा, थाईलैंड और लाओस इसके कारोबार को दुनिया में फैलाते हैं और नशीले पदार्थों के तस्करों के लिए यह स्वर्ण त्रिभुज माना जाता है। देश के उत्तर पूर्वी राज्यों के कई इलाके तस्करी का बड़ा केंद्र बन चुके हैं। पाकिस्तान-अफगानिस्तान और ईरान के गोल्डन क्रीसेंट से भारत जुड़ा हुआ है।
श्रीलंका का मामला कहीं ज्यादा गंभीर हो गया है। यह प्रायद्वीपीय देश इस समय दोहरे संकट में है। आर्थिक संकट के साथ ही इस देश में राजनीतिक संकट भी गहरा गया है। सरकार के कमजोर होने से तमिल समस्या एक बार फिर उभर सकती है। लिबरेशन टाइगर्स आफ तमिल ईलम (लिट्टे) की समाप्ति के एक दशक बाद वहां रहने वाले तमिल भारत की ओर रुख कर सकते हैं। तमिल समस्या का किसी भी स्थिति में बढ़ना भारत की सामरिक और आंतरिक सुरक्षा के लिए मुश्किलें बढ़ा सकता है। हिंद महासागर से जुड़े मालदीव में भारत विरोधी प्रदर्शन हो ही रहे हैं।
दरअसल दक्षिण एशिया के कई देशों के अंदरूनी हालात इस समय बेहद चिंताजनक हैं। महंगाई और गरीबी बढ़ने से असमानता का स्तर लगातार बढ़ रहा है। स्वास्थ्य सेवाएं महंगी होकर आम जनता से दूर हैं। इन देशों के पास लोक कल्याणकारी योजनाओं के लिए न तो पैसा है और न कोई दीर्घकालीन योजना। बच्चे लगातार स्कूल से दूर हो रहे हैं। दक्षिण एशिया के अधिकांश देशों में ई-शिक्षा के लिए संसाधन उपलब्ध नहीं हैं।
इस कारण शिक्षा का स्तर गिर रहा है। बढ़ते अपराध और धार्मिक उन्माद भी गंभीर चुनौती बन गए हैं। इस समय आवश्यकता इस बात की है कि दक्षेस के देश आपसी रिश्तों को बेहतर करके सहयोग को बढ़ाएं। हालांकि दक्षेस देशों में चीन का बढ़ता दखल दक्षिण एशिया के लिए घातक साबित होता दिख रहा है। चीन इस क्षेत्र में अपना प्रभाव बढ़ाने के लिए कर्ज की कूटनीति पर चल रहा है।
बहरहाल दक्षिण एशिया के देशों को यह समझने की जरूरत है कि उनकी जरूरत हथियार नहीं, बल्कि करोड़ों लोगों की रोजी-रोटी है। इस क्षेत्र से महाशक्तियों को दूर रखने और मानवीय संकट से उबरने के लिए साझा प्रयास करने की जरूरत है। दक्षिण एशिया में लोगों की एक दूसरे देशों में आवाजाही बढ़ने से रोजगार के अवसर बढ़ेंगे और इसी से क्षेत्र में शांति स्थापना की उम्मीदें भी मजबूत होंगी। यही समय है जब दक्षेस की भावना को मजबूत करने और आपसी सहयोग बढ़ाने की नितांत आवश्यकता है, वरना दक्षिण एशियाई क्षेत्र में मानवीय संकट विकराल रूप धारण कर लेगा।
