ब्रह्मदीप अलूने

समावेशी विचार और लोकतांत्रिक व्यवस्था वाले भारत में खालिस्तान आंदोलन की कोई संभावना नहीं है। मगर कट्टरता, धार्मिक प्रदर्शन, सर्वोच्च धार्मिक संस्थाओं के क्रियाकलापों को नियंत्रित करने और क्षेत्रीय राजनीतिक दलों द्वारा अलगाववादी ताकतों को संरक्षण न मिले, इसे लेकर सजग रहने की जरूरत अवश्य है। खालिस्तान समर्थक विदेश में भारतीय राजनयिकों को निशाना बनाने की कोशिश कर रहे हैं। ऐसे में भारत को कूटनीतिक स्तर पर कड़े कदम उठाने की जरूरत है।

खालिस्तान आंदोलन की संभावनाएं करीब ढाई दशक पहले ही खत्म हो गई थीं, लेकिन भारत से बाहर इसे जिंदा रखने की धार्मिक और राजनीतिक कोशिशें जारी रही हैं। हाल के महीनों में खालिस्तान से जुड़े कट्टर अलगाववादियों और भारत के ‘मोस्ट वांटेड’ आतंकियों में से कुछ की मौत हुई है, इसे लेकर खालिस्तान समर्थक भारत पर आरोप लगा रहे हैं।

दुनिया भर में भारत के खिलाफ प्रदर्शन और भारतीय राजनयिकों के खिलाफ हिंसा की अपील भी कर रहे हैं। कनाडा खालिस्तानी समर्थकों का गढ़ माना जाता है, वहीं ब्रिटेन, अमेरिका और आस्ट्रेलिया में भी खालिस्तान समर्थकों ने भारतीय दूतावास के बाहर प्रदर्शन किया है। लंदन में खालिस्तानी समर्थकों के हाथों में पाकिस्तान और कश्मीर के समर्थन वाले पोस्टर देखे गए।

इसी साल मार्च में ब्रिटेन की राजधानी लंदन में खालिस्तान समर्थकों की उग्र भीड़ ने भारतीय उच्चायोग के बाहर प्रदर्शन किया था। इस दौरान एक व्यक्ति ने भारतीय उच्चायोग पर लगे तिरंगे को उतार दिया था। वहीं आस्ट्रेलिया के ब्रिस्बेन शहर में भारतीय दूतावास को खालिस्तान समर्थकों के डर से बंद करना पड़ा था।

विदेशों में दूतावास की सुरक्षा के लिए वैश्विक स्तर पर विएना समझौते को माना जाता है। वैश्विक स्तर पर यह राजनयिक संबंधों के लिए एक अंतरराष्ट्रीय संधि है। यह संधि राजनयिकों को मेजबान देश में बिना किसी जबर्दस्ती, उत्पीड़न या डर के काम करने में सक्षम बनाती है। कनाडा, ब्रिटेन और आस्ट्रेलिया जैसे देश भी इस संधि से बंधे हैं। भारत से इन देशों के साझा आर्थिक और रणनीतिक हित हैं। इन सबके बाद भी इन देशों में भारत-विरोधी गतिविधियों से कूटनीतिक चुनौतियां बढ़ गई हैं।

कनाडा में भारतीय मूल के करीब दस लाख लोग रहते हैं, जिसमें पंजाबियों को अच्छी-खासी तादाद है, जो आर्थिक और राजनीतिक तौर पर बेहद सक्षम माने जाते हैं। इसका प्रभाव कनाडा के राजनीतिक हितों पर भी देखा गया है। कुछ कनाडाई सिख प्रवासी भारतीय आंदोलन के समर्थन के लिए कट्टरपंथियों को उकसाते हैं।

बैसाखी और खालसा दिवस पर कनाडा के राजनेता भी खालिस्तान को समर्थन देते देखे गए हैं। इसके चलते भारत और कनाडा के संबंधों में ठहराव देखा गया है। भारत ने 2022 में कनाडा द्वारा खालिस्तानी अलगाववादी जनमत संग्रह की अनुमति देने पर आपत्ति जताई थी, साथ ही कनाडा में घृणा अपराधों के खिलाफ चेतावनी के साथ आगाह किया था।

लोकतंत्र और बहुलवाद की भारत की साझी विरासत के प्रति कनाडा अपना समर्थन जताता रहा है। भारत कनाडा का सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार देश है। कनाडा के पास यूरेनियम, प्राकृतिक गैस, तेल, कोयला, खनिज और जल विद्युत, खनन, नवीकरणीय ऊर्जा तथा परमाणु ऊर्जा में उन्नत प्रौद्योगिकियों के दुनिया के सबसे बड़े संसाधन हैं। उसकी चार सौ से अधिक कंपनियों की भारत में उपस्थिति है और एक हजार से अधिक कंपनियां सक्रिय रूप से भारतीय बाजार में कारोबार कर रही हैं। कनाडा में भारतीय कंपनियां सूचना प्रौद्योगिकी, साफ्टवेयर, इस्पात, प्राकृतिक संसाधन और बैंकिंग जैसे क्षेत्रों में सक्रिय हैं।

दूसरी ओर कनाडा पृथकतावादी खालिस्तान समर्थकों के लिए महफूज ठिकाना रहा है। भारत के बाद सबसे बड़ी सिख आबादी कनाडा में ही बसती है। खालिस्तानी आतंकवादी गुट बब्बर खालसा इंटरनेशनल यानी बीकेआइ सिख अलगाव को बढ़ावा देने के लिए पूरी दुनिया में सक्रिय है। इस आतंकी गुट का कनाडा पर गहरा प्रभाव है और वह इस देश में राजनीतिक तौर पर भी ताकतवर माना जाता है। अपने रसूख का इस्तेमाल कर बीकेआइ खालिस्तान समर्थक ताकतें को यहां से संचालित भी करता है।

बब्बर खालसा इंटरनेशनल को कनिष्क विमान विस्फोट के लिए जिम्मेदार माना जाता है, जिसमें भारत के 329 लोग मारे गए थे। यह आतंकी संगठन हर साल बैसाखी के मौके पर आयोजित समारोह में सिख चरमपंथियों को शहीद का दर्जा देकर उन्माद फैलाता है। विदेशों में रह कर भारत-विरोधी गतिविधियां चलाने वाले कई चरमपंथियों को भारत ने काली सूची में डाल रखा है और उन्हें भारत आने की इजाजत नहीं है। ऐसे लोग भारत में खालिस्तान की मांग उठाने वाली चरमपंथी ताकतों को आर्थिक मदद देते हैं।

ब्रिटेन और कनाडा परिपक्व लोकतंत्र हैं। परिपक्व लोकतंत्र में शांतिपूर्ण प्रदर्शन स्वीकार किए जाते हैं, लेकिन चरमपंथी आंदोलनों को उनकी स्वीकार्यता भारत की समस्याएं बढ़ा रही है। कनाडा में संवैधानिक राजतंत्र और संसदीय लोकतंत्र है। संवैधानिक राजतंत्र का अर्थ है कि ब्रिटिश सम्राट राज्य का प्रमुख होता है।

ब्रिटेन में खालिस्तान समर्थकों की हिमाकत से नाराज भारत के विदेश मंत्रालय ने एक बयान में कहा था कि भारत को ब्रिटेन में भारतीय राजनयिक परिसरों और वहां काम करने वालों की सुरक्षा के प्रति ब्रिटेन सरकार की बेरुखी देखने को मिली है, जो अस्वीकार्य है। करीब पांच दशक पहले खालिस्तान की एक संप्रभु और स्वतंत्र राज्य की धारणा उत्तरी अमेरिका और यूरोप में सिखों के बीच लोकप्रिय करने का मुख्य कारण वहां खालिस्तान परिषद का गठन था। इसका पश्चिमी लंदन में ठिकाना बताया जाता है, जो 1970 से यहां कार्य कर रहा है।

ब्रिटेन में बसने वाले प्रवासियों में सबसे बड़ी तादाद भारतीयों की है, जिनकी आबादी तकरीबन 16 लाख है। भारतीय ब्रिटेन के कारोबार का अहम हिस्सा तो हैं ही, सांस्कृतिक, तकनीकी और राजनीतिक रूप से भी उनकी भागीदारी बेहद महत्त्वपूर्ण मानी जाती है। दोनों देशों के आपसी संबंधों को मजबूत रखने में ब्रिटेन में रहने वाले प्रवासी भारतीयों की अहम भूमिका है।

आजादी के पहले और बाद में कुछ समय तक भारत से लोगों को काम के लिए यहां बुलाया गया था। अफ्रीकी देशों की आजादी के बाद वहां से भारतीय ब्रिटेन आकर बसे। वैश्वीकरण के दौर में बहुराष्ट्रीय कंपनियों ने काम के लिए भारत से पेशेवर लोगों को ब्रिटेन लाना शुरू किया। मगर वीजा नियमों, भारतीय समुदाय पर होने वाले नस्लीय हमलों और कश्मीर को लेकर ब्रिटेन की राजनीतिक नीतियों में दोहरापन समस्याओं को बढ़ाता रहा।

खालिस्तान की मुहिम को विदेशों में बढ़ावा देने में पाकिस्तान की खुफियां एजेंसी आइएसआइ का भी योगदान है। कनाडा और ब्रिटेन में पाकिस्तान मूल के लोगों की अच्छी-खासी तादाद है। पाकिस्तान स्थित गुरुद्वारों में दुनिया भर के सिख जुटते हैं और आइएसआइ इसका इस्तेमाल कर खालिस्तान आंदोलन को मजबूत करती रही है। पाक सिखों को ननकाना साहिब में आने के लिए न केवल उच्च कोटि की सुरक्षा देता, बल्कि वहां खालिस्तान के समर्थन में पोस्टर भी लगाता रहा है।

पाकिस्तान के आतंकी शिविरों में सिख अतिवादी संगठन बब्बर खालसा इंटरनेशनल के सदस्यों की उपस्थिति भारत की आंतरिक सुरक्षा के लिए संकट बढ़ाने वाली है। इसके साथ ही आइएसआइ खालिस्तानी अलगाववादी और कश्मीर के आतंकवादियों को एकजुट करने की योजना पर लगातार काम कर रही है। पंजाब में कुछ हिंसक घटनाओं में पाकिस्तान की संलिप्तता के संकेत भी मिले हैं।

खालिस्तानी अपने लिए अलग देश चाहते हैं, वे राजकाज को धार्मिक नेतृत्व से जोड़ कर नई व्यवस्था कायम करना चाहते है। यह विचार भारत की संवैधानिक व्यवस्था को चुनौती देने वाला है। समावेशी विचार और लोकतांत्रिक व्यवस्था वाले भारत में खालिस्तान आंदोलन की कोई संभावना नहीं है, पर कट्टरता, धार्मिक प्रदर्शन, सर्वोच्च धार्मिक संस्थाओं के क्रियाकलापों को नियंत्रित करने और क्षेत्रीय राजनीतिक दलों द्वारा अलगाववादी ताकतों को संरक्षण न मिले, इसके लिए सजग रहने की जरूरत अवश्य है।

खालिस्तान समर्थक विदेशों में भारतीय राजनयिकों को निशाना बनाने की कोशिश कर रहे हैं। ऐसे में भारत को कूटनीतिक स्तर पर कड़े कदम उठाने की जरूरत है। भारत के साथ द्विपक्षीय और रणनीतिक संबंधों को मजबूत करने वाले देशों से यह अपेक्षा नहीं की जा सकती कि वे भारत-विरोधी ताकतों को प्रश्रय दें या अलगाववादी ताकतों को एकजुट होने का अवसर प्रदान करें।