देश में अभी पूरी तरह गरमी शुरू भी नहीं हुई कि नदियों में पानी की कमी दिखने लगी है। हालांकि यह कोई नई बात नहीं है, बीते पंद्रह वर्षों से नदियों में पानी हर साल कम होता जा रहा है। वैज्ञानिक भी इस बात को स्वीकार कर रहे हैं कि नदियों में पानी की मात्रा आगामी पच्चीस वर्षों तक यों ही घटती रही, तो देश में जलक्रांति की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता। दरअसल, मौसम चक्र में हो रहे बदलाव के कारण बर्फ और ग्लेशियर से निकलने वाले पानी की मात्रा नदियों में कम हो रही है। वैज्ञानिकों ने एक नए शोध में खुलासा किया है कि गंगा नदी के कानपुर और इलाहाबाद तक पहुंचते-पहुंचते हिमालयी ग्लेशियर और बर्फ के पानी की मात्रा 9 से 4 फीसद तक रह जाती है।
भौतिक अनुसंधान प्रयोगशाला अमदाबाद, आइआइटी रुड़की और वाडिया हिमालय भू-विज्ञान संस्थान, देहरादून के वैज्ञानिकों ने संयुक्त रूप से उत्तराखंड के ऋषिकेश में गंगा के पानी की पड़ताल की, तो मालूम हुआ कि बर्फ और ग्लेशियर के पानी का हिस्सा अठारह से दो फीसद रह गया है। वैज्ञानिकों का कहना है कि बर्फ और ग्लेशियर के पानी का प्रतिशत शुरू में 54 फीसद से ज्यादा रहा करता था। वैज्ञानिक अब नए सिरे से इजराइल की तर्ज पर मेल्टिंग वाटर का प्रतिशत निकालने के बाद अलग-अलग जलस्रोतों को एक-दूसरे से जोड़ कर पानी की बचत का फार्मूला निकालने में जुटे हैं। वे इस बात से ज्यादा चिंतित हैं कि केंद्र सरकार नदियों को जोड़ने और नदियों की सफाई को लेकर कई तरह की योजना बना रही है, पर इन योजनाओं को अमल में लाने से पहले नदी में जल की मात्रा और प्रवाह कैसे बढ़े, इसका कोई ठोस प्रयास नहीं किया जा रहा है। बीते पंद्रह सालों में वैज्ञानिकों ने कम से कम चार प्रस्ताव केंद्र सरकार को भेजे हैं। इन प्रस्तावों को ठंडे बस्ते में डाल दिया गया। जबकि नदी में निर्धारित मानकों के मुताबिक पानी की मात्रा बरकरार रखी जाए, तभी नदी जोड़ जैसी योजनाएं पूरी हो पाएंगी।
जलवायु परिवर्तन की वजह से माउंट एवरेस्ट का दक्षिणी ग्लेशियर पिछले चार साल में उनतीस फीसद से ज्यादा सिकुड़ चुका है। यह ग्लेशियर ब्रह्मपुत्र जैसी बड़ी नदियों का बड़ा स्रोत है। गोमुख में हर साल बर्फबारी घट रही है। हिम और हिमस्खलन अध्ययन प्रतिष्ठान, चंडीगढ़ के वैज्ञानिकों का कहना है कि गोमुख ग्लेशियर के अधिकतम तापमान में 0.9 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि हो रही है और बर्फबारी में हर साल 37 से 39 सेंटीमीटर की कमी। रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन के वैज्ञानिकों ने यह अध्ययन किया है। वैज्ञानिकों का यह भी कहना है कि एक दशक के दौरान गोमुख क्षेत्र में अधिकतम तापमान में 0.9 डिग्री सेल्सियस और न्यूनतम तापमान में 0.05 डिग्री सेल्सियस की बढ़ोतरी हुई है। गंगा में बांधों के निर्माण से गंगा की धारा काफी पतली हो गई है। गंगा की जलधारा को अविरल बनाए रखने के लिए जरूरी है कि बांध जितना पानी लेते हैं उसका चार फीसद छोड़ते रहें। इस बारे में सुप्रीम कोर्ट के आदेश का भी पालन नहीं किया जा रहा है।
असल में नदी पर रिवर फ्रंट बनाने की योजना भी भविष्य के लिए घातक साबित हो सकती है। जिस नदी पर रिवर फ्रंट बनेगा उसका हाइड्रोलिक सिस्टम बिगड़ जाएगा। जो जलचर नदी के कच्चे किनारे पर आते-जाते, अंडे देते हैं वे सब समाप्त हो जाएंगे। नदी अपने आप को रिचार्ज करने के लिए जो पानी कच्चे किनारों से बरसात में लेती है, वह व्यवस्था पूरी तरह से खत्म हो जाएगी। साफ पानी कम मिलेगा। सीवेज का पानी ज्यादा मिलेगा। इतना ही नहीं, आने वाले दिनों में पानी का संकट भी बढ़ेगा।
उदाहरण के तौर पर साबरमती को देखा जा सकता है। साबरमती की औसत चौड़ाई 1,253 फुट थी, जो रिवर फ्रंट योजना के बाद अब महज 92 फुट बची है। यह जो कटौती हुई है उस पर रिवर फ्रंट बना है। गोमती हो, हिंडन या फिर यमुना हो, जहां रिवर फ्रंट बनेगा, नदी की चौड़ाई कम करके ही बनेगा। नदी अपने भूजल से ही अपने आप को रिचार्ज करती है। अगर वाकई देश की नदियों पर रिवर फ्रंट बनाना है, तो चीन से सबक लेना चाहिए। चीन के शंघाई में ह्यंगपू रिवर फ्रंट पार्क इसका बेहतरीन उदाहरण है। जहां नदी के किनारे सरिया-सीमेंट के दीवार बिना बनाए प्राकृतिक ढंग से रिवर फ्रंट बनाए गए हैं, ताकि इस व्यवस्था से नदी का पानी भी साफ रहे और उसके पर्यावरण को कोई नुकसान नहीं पहुंचे। नदी समय-समय पर अपने को रिचार्ज भी करती रहे।
देश में इस साल सूखे की मार भी किसानों को झेलनी पड़ रही है। खुद टिहरी हाइड्रो डेवलपमेंट कॉरपोरेशन ने स्वीकार किया है कि गंगा में पिछले साल के मुकाबले बयालीस क्यूमैक्स पानी कम है। क्योंकि इस साल 5.04 मिमी बारिश हुई है। जबकि बीते साल 54 .05 मिमी बारिश हुई थी। महत्त्वपूर्ण बात यह है कि उत्तराखंड में 968 ग्लेशियरों में से भागीरथी में योगदान देने वाले 238 ग्लेशियर हैं, जिनमें अभी आधे से अधिक बिना बर्फ के हैं। वहीं, जम्मू-कश्मीर के 5,262, हिमाचल के 2,735, सिक्किम के 449 और अरुणाचल के 162 ग्लेशियरों में बर्फ की मात्रा लगातार घट रही है। पहले से ही जहां ग्लेशियरों के पिघलने की दर मात्र 17 मीटर प्रति वर्ष है, वहां इस साल बर्फ नहीं पड़ने से हिमपोषित नदियों के अस्तित्व पर खतरा मंडराने लगा है।
गंगा में लगभग चौदह हजार घन मीटर पानी छोड़े जाने की जरूरत है, लेकिन मौजूदा समय में यह केवल नौ हजार घन मीटर है। उज्जैन में चल रहे सिंहस्थ कुंभ के लिए क्षिप्रा नदी में आवश्यक जलप्रवाह और जल उपलब्ध नहीं है। यहां पर सरकार ने नर्मदा-क्षिप्रा सिंहस्थ लिंक परियोजना शुरू की है, जिससे नर्मदा की ओंकारेश्वर सिंचाई परियोजना के सिसलिया तालाब से जल शिप्रा के उद्गम स्थल से छोड़ा जा रहा है। वहां से यह जल क्षिप्रा में प्रवाहित होकर उज्जैन तक पहुंचेगा। हालांकि मध्यप्रदेश में 2006-07 और 2009-10 में 5,186 करोड़ की लागत से जल संरक्षण और संवर्द्धन कार्य करने का दावा सरकार ने किया था। बावजूद इसके सिंहस्थ कुंभ के लिए परियोजना शुरू करनी पड़ी है।
पंजाब की पांच नदियां सतलुज, ब्यास, रावी, चिनाब और झेलम का वार्षिक प्रवाह 1,145 घन मीटर है। इन नदियों में भी जल की कमी हर साल हो रही है। अकेले राजस्थान में सालाना वर्षा जल के रूप में 645 मिलियन घन मीटर पानी भू-गर्भ में पहुंचता है, जबकि कृषि, पेयजल और औद्योगिक समेत अन्य उपयोग के लिए 1337 मिलियन क्यूबिक मीटर तक पानी का दोहन किया जाता है। इस बात का खुलासा खुद राजस्थान भू-जल विभाग की रिपोर्ट में किया गया है। रिपोर्ट में यह भी जिक्र है कि वर्ष 1884 के मुकाबले तीस गुना ज्यादा पानी का उपयोग राजस्थान में किया जा रहा है। जबकि इसके विपरीत बचत का आंकड़ा मात्र दो फीसद के अंदर सिमटा हुआ है। ऐसे में वहां की नदियों में वर्षा का पानी कहां से संग्रह हो पाएगा।
राजस्थान के करीब ढाई सौ वर्ग किलोमीटर भू-भाग में भू-जल अन्वेषण का कार्य किया जाना है। सरस्वती और उसकी सहायक नदियों के पुराने मार्ग को पुनर्जीवित करने के लिए राजस्थान सरकार ने विस्तृत योजना केंद्र के हवाले की है। केंद्रीय भूमि जल बोर्ड की रिपोर्ट के मुताबिक, बुदेलखंड में भूगर्भ जलस्तर तीन मीटर खिसक गया है। दरअसल, वर्ष 1982 में ही अमेरिकी वैज्ञानिकों ने एक शोध का हवाला देते हुए कहा है कि साल भर में होनी वाली कुल बारिश का कम से कम इकतीस फीसद पानी धरती के अंदर जाना चाहिए, जिसमें नदियां भी शामिल हैं। इससे बिना हिमनद वाली नदियों और जलस्रोत को भी लगातार पानी मिल पाएगा। लेकिन वैज्ञानिकों ने यह भी खुलासा किया है कि कुल बारिश का मात्र तेरह फीसद पानी धरती के अंदर जमा हो पाता है। ऐसे में मैदानी क्षेत्रों में बहने वाली नदियों में पानी कम होना स्वाभाविक है। जलस्तर बढ़ाने के लिए वैज्ञानिकों ने यह भी सुझाव दिया है कि रिचार्ज का स्तर बढ़ाने के लिए वन क्षेत्र में निरंतर वृद्धि जरूरी है।
यमुना नदी को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने दो आदेश दिए हैं। पहला आदेश वर्ष 1999 में आया था, जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि दिल्ली की युमना में एक क्यूमैक्स पानी प्रभावित किया जाना अनिवार्य है। सुप्रीम कोर्ट का दूसरा आदेश युमना को लेकर ही 14 अप्रैल 2014 में आया था, जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने यमुना नदी के बावन किलोमीटर के तटीय इलाकों को संरक्षित करने को कहा था। बावजूद इसके यमुना नदी के किनारे बीते दिनों आध्यात्मिक गुरु श्रीश्री रविशंकर का वर्ल्ड कल्चर फेस्टिवल मनाया गया। इसे लेकर काफी विवाद भी हुआ। नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने भी माना है कि इससे आठ फीसद नुकसान हो चुका है। देश की प्रमुख नदियां- कावेरी, गोदावरी, कृष्णा, महानदी, नर्मदा, पेन्नर और इंडस बढ़ रहे शहरीकरण और औद्योगीकरण की वजह से बुरी तरह प्रभावित हुई हैं।
अमेरिकी वैज्ञानिकों ने दावा किया है कि गंगा, ब्रह्मपुत्र और सिंधु नदियों को जल आपूर्ति करने वाले हिमनदों या ग्लेश्यिर पर अब बर्फ एकत्र नहीं हो रही है। इससे विशाल पर्वत शृंखला की निचली धारा के पास रहने वाले करोड़ों लोग प्रभावित हो सकते हैं। केंद्रीय जल संसाधन मंत्री उमा भारती ने भी हरियाणा और पंजाब में भूजल के गिरते स्तर पर चिंता व्यक्त की है।
