सरकार और भारतीय रिजर्व बैंक ने अर्थव्यवस्था को मजबूत करने के लिए पिछले कुछ महीनों में कई कदम उठाए हैं, लेकिन अभी तक इनके अपेक्षित परिणाम नजर नहीं आए हैं। जाहिर है, वित्तीय क्षेत्र को सशक्त बनाने के लिए एक नहीं, कई सुधारात्मक कदम उठाने की जरूरत बनी हुई है। पिछले साल अर्थव्यवस्था में जिस तरह मंदी की शुरुआत हुई, बैंक घोटाले हुए, गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों के डूबने का संकट गहराया, इन सब घटनाओं ने लोगों के मन में अर्थव्यवस्था को लेकर संदेह पैदा किया है। पंजाब एवं महाराष्ट्र कोआॅपरेटिव बैंक (पीएमसी) के घोटाले से सहकारी बैंकों से भी आम जनता का भरोसा डिगा है।

बैंकिंग क्षेत्र में सुधार की कवायद के तहत शहरी सहकारी बैंकों (यूसीबी) के लिए ऋण देने की शर्तों को सख्त बनाने का प्रस्ताव है। मसौदे के अनुसार बैंक अपने कुल ऋण का आधा हिस्सा ही व्यक्तियों और समूहों को भविष्य में ऋण के रूप में दे सकेंगे। इन बैंकों द्वारा दिए जाने वाले कुल ऋण में से कम से कम आधा ऋण पच्चीस लाख रुपए प्रति उधारकर्ता से अधिक नहीं होगा। साथ ही, उन्हें प्राथमिकता क्षेत्र के लिए ऋण लक्ष्यों को बढ़ाना होगा। प्रस्तावित बदलाव यूसीबी बैंकों को 31 मार्च, 2023 तक लाने होंगे। रिजर्व बैंक का कहना है कि नए नियमों से यूसीबी किसी व्यक्ति या समूह को ज्यादा ऋण देने के जोखिम से बचेंगे और वित्तीय समावेशन के लक्ष्य को हासिल करने में उन्हें आसानी होगी। नए प्रावधानों के तहत यूसीबी को प्राथमिकता क्षेत्र को कुल उधारी का पचहत्तर फीसद ऋण देना होगा, जो फिलहाल चालीस फीसद है। इसे मार्च 2021 तक पचास फीसद, मार्च 2022 तक साठ फीसद और मार्च 2023 तक पचहत्तर फीसद करना होगा।

आर्थिकी का एक बड़ा संकट गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (एनबीएफसी) के नगदी संकट के रूप में सामने आई है। एनबीएफसी में सुस्ती की मुख्य वजह उत्पादों की घटती मांग और बाजार में पूंजी की अनुपलब्धता रही है। इस बात का खुलासा रिजर्व बैंक के एक अनुसंधान में हुआ है। एनबीएफसी पर मुख्य रूप से रियल एस्टेट क्षेत्र में संकट और परिसंपत्ति-देनदारी के बेमेल के कारण दबाव है। वैसे, वित्त मंत्रालय के अनुसार एनबीएफसी की वित्तीय स्थिति में सुधार हो रहा है। आंकड़ों के अनुसार एनबीएफसी को बैंकों की उधारी सितंबर 2018 और सितंबर 2019 के बीच 17.5 फीसद बढ़ी है। इनमें से एक सौ सात बड़ी एनबीएफसी, जिनकी बाजार हिस्सेदारी करीब सड़सठ फीसद है की उधारी इकतीस फीसद बढ़ी है।

आवास वित्त कंपनियों यानी हाउसिंग फाइनेंस कंपनी (एचएफसी) पर नकारात्मक असर भी अर्थव्यवस्ता के लिए चिंता का विषय रहा है। मुख्य रूप से नौ बड़ी आवास वित्त कंपनियां इसकी चपेट में आई हैं, जिनकी परिसंपत्ति का आकार सितंबर 2018 के 2.94 लाख करोड़ रुपए के मुकाबले 26 फीसद घट कर नवंबर 2019 में 2.17 लाख करोड़ रुपए रह गया। भारत में कुल एक सौ एक एचएफसी हैं, जिसमें से सात ने परिचालन का लाइसेंस मिलने के बाद कारोबार शुरू नहीं किया है। परिचालन वाली चौरानवे एचएफसी में से छिहत्तर को बैंकों, एनएचबी और बाजार से ज्यादा वित्तीय सहारा मिला है, वहीं अठारह अग्रणी एचएफसी की उधारी 65,595 करोड़ रुपए घटी है।

एक और बड़ी चिंता एनबीएफसी में गैर निष्पादित परिसंपत्तियां यानी एनपीए बढ़ने से जुड़ी है। रिजर्व बैंक की एक रिपोर्ट के अनुसार एनबीएफसी क्षेत्र का सकल फंसा कर्ज (जीएनपीए) वित्त वर्ष 2019 में बढ़ कर 6.1 फीसद पहुंच गया, जो वित्त वर्ष 2018 में 5.3 फीसद था। वित्त वर्ष 2020 की पहली छमाही में इसमें और गिरावट आई है, क्योंकि इस अवधि में जीएनपीए में मामूली बढ़ोतरी हुई है। इसके अलावा एनबीएफसी के मुनाफे में कमी बता रही है कि इन कंपनियों के सामने संकट गंभीर है। रिजर्व बैंक के अनुसार वित्त वर्ष 2019 में एनबीएफसी के लाभ में कमी की मुख्य वजह जमा नहीं लेना रहा है।
बैंकिंग क्षेत्र में सबसे बड़ा संकट धोखाधड़ी से जुड़े मामले बढ़ने का रहा है।

व्यावसायिक बैंकों के ग्राहकों से लेकर आवास वित्त कंपनियों और एनबीएफसी तक में धोखाधड़ी के कई मामले सामने आए हैं। रिजर्व बैंक ने अपनी सालाना रिपोर्ट ‘बैंकिंग क्षेत्र का रुझान एवं प्रगति’ में कहा है कि धोखाधड़ी के मामलों में पंद्रह फीसद और इससे संबंधित रकम की मात्रा में चौहत्तर फीसद का इजाफा हुआ है। रिजर्व बैंक ने कहा कि वित्त वर्ष 2018-19 में बैंकिंग क्षेत्र में धोखाधड़ी के 6801 मामले दर्ज किए गए थे, जबकि वित्त वर्ष 2017-18 में यह आंकड़ा 5916 था। धोखाधड़ी से संबंधित रकम सालाना आधार पर 41,167 करोड़ रुपए की तुलना में बढ़ कर 71,543 करोड़ रुपए दर्ज की गई।

रिजर्व बैंक के अनुसार बड़ी राशि के घोटाले लंबे अंतराल के बाद सामने आते हैं। इस वजह से बैंकों द्वारा दर्ज धोखाधड़ी के मामलों की संख्या के साथ-साथ इनसे संबंधित रकम में वित्त वर्ष 2018-19 के दौरान तेजी दर्ज की गई। इससे परिचालन जोखिमों के प्रबंधन में असफलता का पता चलता है। रिजर्व बैंक के मुताबिक कुल धोखाधड़ी मामलों में निजी क्षेत्र के बैंकों और विदेशी बैंकों की भागीदारी 30.7 फीसद और 11.2 फीसद रही, जबकि धोखाधड़ी से संबंधित रकम में इनका योगदान 7.7 फीसद और 1.3 फीसद रहा।

हालांकि राहत की बात यह है कि बैंकों के फंसे कर्ज में वसूली बेहतर हुई है। रिजर्व बैंक का कहना है कि आगामी महीनों में फंसे कर्ज में और कमी आएगी। ऋणशोधन अक्षमता एवं दिवालिया संहिता की वजह से इस साल फंसे कर्ज की वसूली में तेजी आई। बैंकिंग क्षेत्र का सकल एनपीए अनुपात मार्च 2018 के 11.2 फीसद से घट कर मार्च 2019 में 9.1 फीसद रह गया। मौजूदा समय में वृद्घि में नरमी और कर्ज उठाव कम होने के साथ ही छिटपुट चूक के मामले और धोखाधड़ी की घटनाओं से बैंक कर्ज देने से हिचक रहे हैं।

रिजर्व बैंक का कहना है कि वृहद आर्थिक हालात और खासतौर पर घरेलू आर्थिक गतिविधियों में नरमी ने जोखिम वहन करने की क्षमता को प्रभावित किया है और उधारी की मांग कम हुई है। हालांकि परिसंपत्ति की गुणवत्ता में सुधार और बैंकिंग क्षेत्र का मुनाफा शुरुआती अवस्था में है और सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों का पूंजी अनुपात सरकार द्वारा बैंकिंग क्षेत्र में पूंजी डालने से बढ़ा है। इतना ही नहीं, बैंकिंग क्षेत्र में वित्त वर्ष 2018-19 की पहली छमाही में कम प्रावधान की जरूरत के कारण मुनाफे में बढ़ोतरी हुई। दिवालिया संहिता होने के बावजूद एनपीए की समस्या बनी हुई है। बैंकों में धोखाधड़ी की घटनाएं बढ़ने से उनकी मुश्किलें बढ़ी हैं। बैंकों को अभी न केवल नियामकीय मानदंडों को पूरा करने के लिए, बल्कि बैलेंस शीट दुरुस्त करने के लिए भी पूंजी की जरूरत है।

बहरहाल, रिजर्व बैंक द्वारा उठाए जाने वाले कदमों से शहरी सहकारी बैंकों की कार्यप्रणाली और वित्तीय स्थिति में बेहतरी आने की संभावना है। रिजर्व बैंक के अनुसार सरकारी बैंकों के विलय से अर्थव्यवस्था को को भी फायदा होने की उम्मीद है। माना जा रहा है कि सुरक्षित बैंकिंग प्रणाली विकसित करने और एनबीएफसी क्षेत्र को मजबूत करने से अर्थव्यवस्था को लाभ होगा। वतर्मान में सरकार और रिजर्व बैंक, बैंकों और एनबीएफसी में सुधार लाने के लिए महत्त्वपूर्ण सुधारात्मक कदम उठा रहे हैं। ऐसे में कहा जा सकता है कि नए साल में बैंकिंग प्रणाली को मजबूत करके ही अर्थव्यवस्था को मजबूत बनाया जा सकता है।