भारत के केंद्रीय बैंक के अगुआ ने आगाह कर दिया है कि जीएसटी महंगाई बढ़ाने वाला है। कई छोटे शहरों और कस्बों में दुकानदारों ने स्वघोषित नियम बना कर वे सिक्के लेने बंद कर दिए हैं जो बैंकों ने नोटबंदी के समय अपने ग्राहकों को नोटों की कमी के कारण दिए थे। रोजगार छिनने के इस दौर में गुलाबी दो हजारी नोट अभी तक खुले नहीं होने के कारण शरमाकर बटुए में वापस आ जाता है। विपक्षमुक्त भारत का दावा करनेवालों के अंदर ही एक विपक्ष बन गया। कागजी क्रांति तो भुलाई बात हो गई थी लेकिन प्रकाश राज के बहाने नायक न सही खलनायक की ही छवि वाले मेरिल स्ट्रीप का भारतीय संस्करण भी सामने आ गया। नाकाम शल्यक्रिया का ठीकरा ‘शल्य’ पर फोड़ना कितना कामयाब होगा यही बताता बेबाक बोल।

पेट्रोल से उत्पाद शुल्क कम किया गया, हनीप्रीत पकड़ ली गई, काशी हिंदू विश्वविद्यालय के ‘राष्टÑवादी कुलपति’ की विदाई हुई और विजय माल्या की चट गिरफ्तारी पट जमानत की रस्म भी पूरी हो गई। विजयादशमी पर शस्त्र-पूजा से पहले उन्हें जल, जंगल और जमीन से जमीनी रिपोर्ट मिल चुकी थी कि आपका अंक-शस्त्र बिगड़ सकता है। इसलिए नागपुर से हुए जीवंत प्रसारण में गोरक्षकों के साथ संविधान जैसे शब्द भी सुनाई दिए। अर्थव्यवस्था की मंदी पर भी आगाह किया गया और जीडीपी के पैमाने को गैरजरूरी बता दिया गया। आपको चेतावनी दे दी गई कि रोजी-रोटी के सवालों से मुठभेड़ करना ही होगा।
इसका सबसे सकारात्मक पक्ष यह रहा कि आपने माना कि अर्थव्यवस्था सुस्त है। काश, ऐसा आपने अपने खेमे के ‘शल्यों’ के वार के पहले किया होता। नकारात्मक यह है कि आप इस समय भी 70 साल वाले उस कवच-कुंडल को पहने हुए हैं जब आपका पहिया नाकामियों की कीचड़ में धंस चुका है। लगता है, आप खुद को कर्ण जैसा बेबस महसूस कर रहे हैं जिसका सारथी शल्य की तरह लकीर का फकीर नहीं है। जो बस ‘जी हां’ कहना नहीं जानता। महाभारत एक सबॉल्टर्न आख्यान भी रचता है। यह रथी बनाम सारथी का भी कुरुक्षेत्र है। रथी की राह सारथी तय करता है।

अर्थव्यवस्था की बहस में आप महाभारत का किरदार ले आए। इस महाकाव्य का हर किरदार विरोधाभासों और अपने-अपने सत्य के साथ अपना अलग से आख्यान रचता है। शल्य प्रतीक है उस युगबोध का जो सत्य का मार्ग खोजता है। अच्छाई और सच्चाई का मार्ग देख जिसका हृदय परिवर्तन होता है। शल्य प्रवृत्ति नहीं पांडवों की नीति का हिस्सा था। आज के युग के लिए वह प्रतीक है पुरुषार्थ और सकारात्मकता का। आपने जीडीपी और नकदी के तो आंकड़े दिए लेकिन अर्थव्यवस्था की व्यवस्था और सबसे बड़ी चिंता रोजगार पर चुप रहे। वाहनों की बिक्री और विमान यात्रियों की संख्या में इजाफे के छोटे आंकड़े इतनी बड़ी चिंता के सामने कमजोर थे। और, आंकड़ों का सच आशा और निराशा के भाव कहां देखता है। आंकड़े तो कृष्ण के सच की तरह तटस्थ होते हैं जो अर्जुन को अपने मकसद से भटकने नहीं देते हैं।

राम जेठमलानी का खुला खत, यशवंत सिन्हा के संपादकीय लेख के बाद अरुण शौरी का नारा कि अबकी बार ढाई लोगों की सरकार। विपक्षमुक्त सपने के चूल्हे पर अपनों के ही भीतर की बात उबल-उबल कर गिरने लगी। शौरी ने तो नोटबंदी को अब तक का सबसे बड़ा घोटाला करार दिया। उनका आरोप है कि कालेधन को सफेद करने की इससे अच्छी सरकारी योजना क्या हो सकती थी। उधर, सुल्तानपुर के युवा सुल्तान किसानों के दर्द पर लिख बैठे। अभी उनकी तो उम्र भी नहीं है मार्गदशर्क मंडल में बैठने की।

अब आपके साथ के लोगों के इस मनशोधन का क्या करें। मनशोधकों का यह कारवां बढ़ता जा रहा है। आपने इंटरनेट पर आभासी अनुगामियों का लक्ष्य ही हासिल करने को कहा। लाइक्स और शेयरिंग पर पूरे मंत्रिमंडल का रिपोर्टकार्ड तैयार हो रहा था। आरोप है कि बाजार के मुहैया कराए ये इंटरनेटी अनुगामी जमीन पर नदारद हैं। आपने तो साढ़े तीन बरस में एक भी पत्रकार सम्मेलन नहीं किया लेकिन आपके मंत्रियों और सहयोगियों को तो यदा-कदा जनता से लेकर पत्रकारों का सामना करना ही पड़ जाता है। मंत्रिमंडल के प्रेस बयानों और संपादकीय लेखों को खेत-खलिहानों और कल-कारखानों तक नहीं पहुंचाया जा सकता। लेकिन जो लोग लोकसभा का मुंह देख चुके हैं और जिन्हें राज्यसभा का पार्श्वद्वार नहीं, लोकसभा के मुख्यद्वार से आना है उन्हें अपने बुरे दिन दिखने शुरू हो गए हैं।

‘एको अहम् द्वितीयो नास्ति’ और ‘अहम् ब्रह्मास्मि’ वाली आपकी कार्यशैली का हासिल यह रहा कि देश में लोकतंत्र पर सवाल उठाने वाले विपक्ष से ज्यादा बुलंद आवाज आपके पक्ष से आने लगी कि पार्टी के अंदर लोकतंत्र कहां है। आपके अपने ही आरोप लगा रहे हैं कि हर कोई डर से चुप है। आजादी के बाद पहली बार सत्तामार्ग पर चलकर हाल में अपना चोला तक बदल लेने वाले संगठन को भी शायद बाबा भारती की कहानी याद आ गई। अगर इस बार लोगों का भरोसा टूटा तो फिर सत्ता वापसी मुश्किल होगी। आप तो अपने अहंकार में लोकतंत्र के कायदे भूल 2022 का अलाप उठाते रहे, लेकिन उन्हें तो 2025 की चिंता है, जब सौसाला जश्न मनाना है।

आप नोटबंदी को ऐतिहासिक व सबसे बड़ा सुधार बताते रहे और नागपुर से ही कुछ दूर नाशिक में किसानों का आंदोलन शुरू हो गया जो मध्य प्रदेश तक पहुंचा। जय जवान का नारा देते-देते किसानों पर गोलियां चलानी पड़ गर्इं। उस वक्त सत्ता के राजपुरोहित बनने की ख्वाहिश रखनेवाले जगतगुरु यह न बता सके कि ‘हैपीनेस मंत्रालय’ की जगह गोलीबारी मंत्रालय कहां से बन गया। मंदसौर से लेकर पंचकूला तक देश के नागरिकों पर गोलियां बरसनी कैसे शुरू हो गर्इं। खैर, झंडेवालान से लेकर नागपुर तक यह पाठ पहुंच चुका था कि फिलहाल भारत जैसा देश कपड़ा मिलों, इंजीनियरिंग, आइटी कंपनियों, छोटे-मझोले उद्योगों, खेतों-खलिहानों और विनिर्माण क्षेत्रों में बसता है। सिर्फ कपड़ा मिलों में 17000 से ज्यादा कर्मचारी बेरोजगार हो गए हैं। नए भारत की नई उम्मीद बन रहा आइटी क्षेत्र अब नौकरियां देने नहीं, नौकरियों से निकालने के लिए जाना जा रहा है। स्टार्टअप के झुनझुने से तो बच्चों ने भी बहलना बंद कर दिया है। अरुण शौरी कहते हैं कि आप सरकार नहीं चला रहे हैं ‘इवेंट मैनेजमेंट’ कर रहे हैं।

वहीं मार्गदर्शक मंडल से लेकर नागपुर तक से आई सलाह के जवाब में आपके वकील साहब (शौरी के गणित के हिसाब से सरकार के वह ढाई आदमी) कहते हैं कि विकास की तो कीमत चुकानी पड़ती है। और इसके साथ ही राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद अन्य पिछड़ा वर्ग के उप-वर्गीकरण की व्यवहार्यता का अध्ययन करने के लिए एक आयोग का गठन करते हैं। इस आयोग की रिपोर्ट के आधार पर सरकार सभी अन्य पिछढ़े वर्गों में आरक्षण के लाभों के समान वितरण की चर्चा करेगी।

राष्ट्रपति के इस नवगठित आयोग से यही संदेश जा रहा है कि आपने देश भर के विश्वविद्यालयों से आए युवाओं के और नागपुर से आई चेतावनी को या तो ठीक से सुना नहीं या शौरी के आरोप सही हैं कि आपके पास विशेषज्ञों की कमी है। मतलब साफ है कि आप अभी भी अर्थव्यवस्था को लेकर परेशान नहीं हैं। आप अर्थव्यवस्था की मरहमपट्टी नहीं, चुनावों में मिली हार के प्रबंधन में व्यस्त हैं। आप अभी भी उत्तर प्रदेश मॉडल के तहत यादव और जाटव का अलगाव कर सोशल इंजीनियरिंग को ही रास्ता मान रहे हैं। आरक्षण की रेवड़ी अपने हाथ में रखना चाहते हैं।

आपके शाह गुजरात में खूब गरजे लेकिन नोटबंदी और जीएसटी के महिमामंडन से बचते रहे। आपके योगी केरल में नोटबंदी का बखान नहीं कर पाते हैं लेकिन शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में अन्य राज्यों की तुलना में सेहतमंद इस राज्य को उत्तर प्रदेश की स्वास्थ्य सेवा से सीख लेने की सलाह दे बैठते हैं। योगी उस सूबे के मुख्यमंत्री हैं जहां के मंत्री कहते हैं कि अगस्त में बच्चे मरते हैं। तो जब वे केरल को सेहत का गोरखपुर मॉडल समझाएंगे तो इसे ताजमहल से बड़ा अजूबा ही मान लेना चाहिए।

जब हर तरफ से अर्थव्यवस्था की गंभीर हालत पर सवाल उठ रहे हैं तो आप हल्की-फुल्की रियायत की बात करते हैं। आप अभी भी यही कह रहे हैं कि राजकोषीय घाटा कम होगा तो जीएसटी के स्लैब कम होंगे। अर्थव्यवस्था पर गंभीरता से चर्चा करने की इच्छा गायब ही दिख रही है। आपकी नीतियों की आलोचना हुई तो नीति आयोग के सदस्य को आर्थिक सलाहकार परिषद का अध्यक्ष बना दिया। इन महोदय से तो पहले भी सलाह ली ही जा सकती थी या नीति आयोग के सदस्य के तौर पर उनकी सेवा-शर्त में यह लिखा था कि किसी खास परिषद के अध्यक्ष बनने पर ही सलाह देंगे।

यहां सबसे बड़ी समस्या यही दिख रही है कि समस्या का रुख मोड़ने की कला में आपके प्रबंधक माहिर हो चुके हैं और अभी भी वही ध्यान भटकाने वाले सूत्र को ही ब्रह्मास्त्र माना जा रहा है। अर्थव्यस्था में बड़ी दरारें बना कर पतली गली से निकलने की ही कोशिश दिख रही है। गंभीर सवालों पर जुमलों की बल्लेबाजी कर चौका-छक्का लगाने के बजाए उस पर गंभीर कदम उठाने में जितनी देर करेंगे आपको उतने ही गंभीर नतीजे भुगतने होंगे।

अर्थव्यवस्था को लेकर शल्यक्रिया और कड़वी दवा जैसे जुमले आपने ही दिए थे। अब आपके ही लोग कह रहे हैं कि डॉक्टर साहब, आॅपरेशन नाकाम हो गया है। अब इस अर्थव्यवस्था को दवा की नहीं दुआ की जरूरत है। अभी तो इलाज ही नाकाम हुआ है, कृपया इसे लाइलाज बना कर नहीं छोड़ दीजिएगा। चिंता तो इस बात की भी हो रही है कि आम जनता इस बीमार अर्थव्यवस्था का गुनहगार उस प्रचंड बहुमत को न मान ले जो उसने अच्छे दिनों की आस में दिया था। बाबा भारती की कहानी तो अभी भी पाठ्यक्रम का हिस्सा है। भरोसा टूटना बहुत बुरा होता है।