आखिरकार मोदी सरकार को गोमांस के निर्यात पर प्रतिबंध लगाना पड़ा। पिछले साल भर में भारत से गोमांस का निर्यात पंद्रह प्रतिशत बढ़ा है। राजग सरकार की मंत्री मनेका गांधी के अनुसार अकेले बांग्लादेश को सोलह हजार टन गोमांस बेचा जा चुका है। विश्व हिंदू परिषद के प्रवीण तोगड़िया के अनुसार देश में सर्वाधिक गोमांस उत्पादन गुजरात में हुआ है। इस अवधि में नरेंद्र मोदी की सरकार रही है। वे बारह वर्ष गुजरात के मुख्यमंत्री रहे। तब गोचर भूमि उद्योगपतियों को सस्ते में देने का आरोप भी लगा था। भारत में गुलाबी (दुग्ध) क्रांति का नारा बुलंद करने वाले मोदी ने जन्माष्टमी (1 अक्तूबर, 2012) पर अपने ब्लॉग में इल्जाम लगाया था कि यूपीए सरकार गोमांस निर्यात द्वारा आय बढ़ा रही है। अब क्या उत्तर देंगे प्रधानमंत्री मोदी कि सत्ता पाते ही उन्होंने गोमांस का निर्यात तत्काल बंद करने में कोताही क्यों की?

भाजपा के पिछले अवतार (भारतीय जनसंघ) में इसके पुरोधाओं ने गोवध बंदी के संघर्ष से अपनी राजनीति शुरू की थी। तब जनसंघ के उदीयमान नेता अटल बिहारी वाजपेयी ने लखनऊ में सत्याग्रही के अंदाज में जननायक बनने की मुहिम छेड़ी थी। स्कूल के छात्र के नाते मैंने अटलजी को लालबाग चौराहे पर पुलिस की गाड़ी पर सवार होते देखा था। उनका नारा था: ‘कटती गौवें करें पुकार, बंद करो यह अत्याचार।’ फिर वे जेल में रहे। सजा भुगती। तब मुख्यमंत्री थे पंडित गोविंद वल्लभ पंत, जिन्होंने इस विरोध-प्रदर्शन को गांधी-हत्या के लिए दोषी-समूह द्वारा प्रेरित आंदोलन कह कर कुचल दिया था। और उसी दिन से जनसंघ उरूज पर चढ़ता गया।

प्रसंगवश : उन्हीं दिनों एक हास्यास्पद घटना भी हुई। चारबाग रेलवे स्टेशन पर मैं संबंधियों को पहुंचाने गया था। वहां रेलवे पुलिस कई लोगों को रस्सी से बांध कर ले जा रही थी। कॉलेज के मेरे दो सहपाठी भी उन कैदियों में दिखे। मुझे देखते ही वे चिल्ला पड़े: ‘गोवध बंद हो’। मुझे अचरज हुआ। वे दोनों कट््टर कम्युनिस्ट थे, तो कब से जनसंघी हो गए? मैंने थाने में पूछताछ की तो पता चला कि कानपुर-लखनऊ ट्रेन में दैनिक यात्रियों के टिकट की जांच हो रही थी। वे दोनों छात्र बेटिकट थे। गोभक्त बन गए!

लेकिन अटलजी के बारे में मेरा एक संशय बना रहा कि छह वर्षों तक राज किया, गोवध नहीं रोका? एक बहाना जो मिल गया था। पशुधन पर कानून केवल राज्य बना सकते हैं। संविधान में यह विषय केवल राज्य-सूची में है।

शायद अटलजी गाय के मुद््दे पर अपने हीरो जवाहरलाल नेहरू से काफी प्रभावित रहे। नेहरू 6 अप्रैल, 1938 को एक पार्टी अधिवेशन में घोषणा कर चुके थे कि आजादी मिलने पर कांग्रेस कभी भी गोवध पर पाबंदी नहीं लगाएगी। हालांकि तभी दो अन्य बयान भी आए थे। गांधीजी ने कहा था कि ‘जो गाय बचाने के लिए तैयार नहीं है, उसके लिए अपने प्राणों की आहुति नहीं दे सकता, वह हिंदू नहीं है।’ उधर मुसलिम लीगी नेता मोहम्मद अली जिन्ना से पूछा गया कि वे पाकिस्तान क्यों चाहते हैं? उनका उत्तर था, ‘ये हिंदू लोग हमसे हाथ मिला कर अपना हाथ साबुन से धोते हैं और हमें गोमांस नहीं खाने देते। मगर पाकिस्तान में ऐसा नहीं होगा।’

जब आजाद भारत की संसद में गोवध बंदी के लिए कानून का प्रस्ताव आया तो नेहरू ने सदन में धमकी दी थी कि वे ‘प्रधानमंत्री पद से त्यागपत्र दे देंगे। सरकार गिर जाए तो उसकी भी परवाह नहीं करेंगे।’ तब जबलपुर के सांसद सेठ गोविंद दास का विधेयक पेश (2 अप्रैल, 1955) हुआ था।

गाय की उपादेयता पर सदियों से चर्चा, शोधकार्य और प्रमाण पेश किए जा चुके हैं। पैगंबरे-इस्लाम की मशहूर राय भी है कि ‘गाय का आदर करो, क्योंकि वह चौपाए की सरदार है।’ भारत के इस्लामिक सेंटर के वरिष्ठ सदस्य मौलाना मुश्ताक ने लखनऊ प्रेस क्लब में (14 फरवरी, 2012) कहा था कि ‘नबी ने गोमूत्र पीने की सलाह दी थी। इससे बीमार ठीक हो गया था।’ वैज्ञानिक एवं औद्योगिक अनुसंधान परिषद (सीएसआइआर) ने अपनी सहयोगी संस्थाओं के साथ मिल कर गोमूत्र के पेटेंट के लिए आवेदन किया है। लोकसभा में एक प्रश्न के जवाब में तत्कालीन स्वास्थ्यमंत्री गुलाम नबी आजाद ने बताया था कि शोध में पाया गया है कि पंचगव्य घृत पूरी तरह सुरक्षित और कैंसर के इलाज में बहुत प्रभावी है।

पश्चिमी वैज्ञानिकों ने सिद्ध कर दिया है कि कार्बोलिक एसिड होने के कारण गोमूत्र कीटनाशक होता है। अमेरिकी वैज्ञानिक मैकफर्सत ने 2002 में गोमूत्र का पेटेंट औषधि के वर्ग में करा लिया था। चर्म रोग के उपचार में यह लाभप्रद पाया गया है। गाय को सचल दवाखाना कहा गया है। मेलबर्न विश्वविद्यालय के वैज्ञानिक मैरिट क्राम्स्की द्वारा हुए शोध से निष्कर्ष निकला कि गाय के दूध को फेंट कर बने क्रीम से एचआइवी से बचाव होता है। पंचगव्य पदार्थों के गुण सर्वविदित हैं। मसलन, गोबर से लीपी गई जमीन मच्छर-मक्खी से मुक्त रहती है।

महान नृशास्त्री वैरियर एल्विन ने निजी प्रयोग द्वारा कहा था कि दही से बेहतर पेट-दर्द शांत करने का उपचार नहीं है। एल्विन ने सारा जीवन पूर्वोत्तर के आदिवासियों के बीच बिताया। उनकी पत्नी भी भारतीय आदिवासी थी। अफ्रीकी इस्लामी राष्ट्र नाइजीरिया ने भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम की सरकारी यात्रा पर अनुरोध किया था कि पूर्वी उत्तर प्रदेश की तीन हजार गंगातीरी गायें भेज दें। उस नस्ल की गाय का दूध, दही और मक्खन स्वास्थ्यवर्धक होता है।

ये सारे तथ्य उन प्रगतिवादी भारतीयों के लिए हैं, जिनकी मानसिकता अब भी मध्ययुगीन है, नई सदी की दहलीज तक नहीं पहुंची है। वे लोग गोरक्षा के मुद्दे को हिंदू संप्रदायवाद और कदीमी सोच की धुरी समझते हैं। हालांकि गाय के प्रति आज के मुसलमानों के नजरिए का पूर्वाभास मुंशी प्रेमचंद को सौ साल पहले हो गया था, जब उनके एक उपन्यास के मुसलिम पात्र ने अपनी गाय को एक कसाई के हाथ बेचने से साफ मना कर दिया था। उसने हिंदू के हाथ गाय बेची। सुरक्षा के लिए। आज तमाम मुसलमान गोसंवर्धक मिल जाएंगे।

विश्व के लब्धप्रतिष्ठ इस्लामी अध्ययन केंद्र देवबंद के दारूलउलूम के मुफ्ती हबीबुर्रहमान का तो फतवा है कि हर मुसलमान का फर्ज है कि वह दूसरे की आस्था का आदर करे। उस पर आघात न करे। इस फतवे की आवश्यकता पड़ी थी, क्योंकि आल इंडिया मुसलिम मजलिस के उत्तर प्रदेश सचिव मौलाना बद्र काजमी ने आरोप लगाया था कि जिला पुलिस और मांस व्यापारियों की मिलीभगत से सहारनपुर जिले में बड़े पैमाने पर गोवंश की कटान हो रही है। लखनऊ के धर्मगुरुमौलाना इरफान फिरंगी महली ने 29 अगस्त, 2012 को गोहत्या बंदी की मांग की थी।

कुरान के जानकार इब्नेसनि और हाकिम अबू नईम खुद पैगंबर की उक्ति की चर्चा करते हैं कि ‘लाजिम कर लो कि गाय का दूध पीना है, क्योंकि वह दवा है। गाय का घी शिफा है और बचो गाय के गोश्त से चूंकि वह बीमारी पैदा करता है।’ हजरत इमाम आजम अबु अनीफा ने लिखा है कि ‘तुम गाय का दूध पीने के पाबंद हो जाओ। चूंकि गाय अपने दूध के अंदर सभी तरह के पौधों के सत्त्व को रखती है।’ अपनी शोधपूर्ण पुस्तक ‘मुसलिम राज में गोसंवर्धन’ में डॉ सैयद मसूद ने लिखा भी है कि अकबर के समय में गोवध प्रतिबंधित था। फारसी में लिखी अपनी वसीयत में बाबर ने 1526 में गोकशी पर पाबंदी लगाई थी, जिसका उनके बेटे हुमायूं ने पूरी तरह पालन किया था।

जैन मुनि हरिविजयजी सूरि ने शत्रुंजय पर्वत में आदित्यनाथ मंदिर के द्वार पर शिलालेख लगवाया था, जिसमें गोवध बंदी पर अकबर का फरमान अंकित है। विश्व के सबसे बड़े मुसलिम राष्ट्र इंडोनेशिया के बाली द्वीप में लंबू नामक सफेद गाय (स्थानीय भाषा में तरो) की पूजा-अर्चना की जाती है। उसका दाह-संस्कार भी किया जाता है।

करीब एक दशक में वाणिज्यिक दृष्टि से गोधन की दशा का विश्लेषण करें तो सत्तासीन लोगों की नफा कमाने की लोलुपता जगजाहिर होती है। मनमोहन सिंह सरकार के योजना आयोग ने बारहवीं पंचवर्षीय योजना में बूचड़खानों की संख्या में अत्यधिक वृद्धि का लक्ष्य तय किया था। मोंटेक सिंह अहलूवालिया पशु कत्लगाहों के आधुनिकीकरण के लिए अरबों रुपए की राशि आबंटित कर चुके थे। लाइसेंस में भी बढ़ोतरी का आदेश दिया था।

योजना आयोग के ताजा आंकड़े के अनुसार भारत में गायों की संख्या 1947 में एक अरब इक्कीस करोड़ थी, जो घट कर आज केवल दस करोड़ रह गई है। विश्व खाद्य एवं कृषि संगठन की चेतावनी पर भारत को गौर करना होगा, जिसने कहा है कि अगर गोधन का संवर्धन नहीं हुआ, तो पांच वर्ष बाद भारत में दूध का संकट विकराल हो जाएगा।

के. विक्रम राव

 

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