ऐसे में छोटे निवेशक शेयर बाजार की जगह बैंक में फिर से निवेश करना शुरू कर सकते हैं, क्योंकि बैंक में जमा करना शेयर बाजार में निवेश करने की अपेक्षा सुरक्षित है। जमा बीमा कवर की सीमा को एक लाख से बढ़ा कर पांच लाख रुपए करने से पंचानबे फीसद से अधिक निवेशकों के बैंक में किए गए निवेश पूरी तरह से सुरक्षित हो गए हैं।

महंगाई पर काबू पाने के लिए भारतीय रिजर्व बैंक रेपो दर में लगातार इजाफा कर रहा है। मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) 4 मई, 2022 के बाद से रेपो दर में कुल 190 आधार अंकों की बढ़ोतरी कर चुकी है। अब रेपो दर 5.90 फीसद के स्तर पर पहुंच गया है। हाल में की गई मौद्रिक समीक्षा में रिजर्व बैंक ने रेपो दर में फिर से पचास आधार अंकों की बढ़ोतरी की है। अगर महंगाई काबू में नहीं आती, तो केंद्रीय बैंक आगामी मौद्रिक समीक्षाओं में नीतिगत दरों में और इजाफा कर सकता है।

चूंकि केंद्रीय बैंक, बैंकों को दी जाने वाली उधारी पर रेपो दर के अनुसार ब्याज लेता है, इसलिए, रेपो दर में बढ़ोतरी करने से बैंकों को महंगी दर पर पूंजी मिलती है और पूंजी की लागत अधिक होने पर बैंक उधारी पर ब्याज दर में बढ़ोतरी कर देते हैं, ताकि उनके नुकसान की भरपाई हो सके।

हालांकि, उधारी दर में वृद्धि से महंगाई में कमी आने की संभावना बढ़ जाती है, क्योंकि जब बैंक महंगी दर पर कर्ज देते हैं तो आम आदमी और कारोबारी कर्ज लेने से परहेज करते हैं। पैसों की किल्लत की वजह से महंगे उत्पाद खरीदना मुमकिन नहीं होता, जिससे मांग में कमी आती है और जब किसी उत्पाद की मांग में कमी आती है तो उसकी कीमत में भी कमी आ जाती है।

बैंक उधारी देने के लिए या तो रिजर्व बैंक से रेपो दर पर कर्ज लेते हैं या फिर अपनी जमा राशि का इस्तेमाल करते हैं। इसलिए जब केंद्रीय बैंक से उधार लेना महंगा हो जाता है तो पूंजी इकट्ठा करने के लिए बैंक जमा दर में बढ़ोतरी करते हैं, ताकि अधिक ब्याज मिलने पर छोटे निवेशक बैंक में अपना पैसा जमा करें और उसका इस्तेमाल उधारी देने में किया जा सके।

रिजर्व बैंक द्वारा रेपो दर में बढ़ोतरी के बाद बैंकों ने बचत, आवर्ती और मियादी जमा दर को बढ़ाना शुरू कर दिया है। ऐसा करना इसलिए भी जरूरी होता है, क्योंकि जमा और उधारी दर के बीच के अंतर में एक निश्चित फासला हो। बैंक, जमा पर ग्राहकों को ब्याज देता है, जबकि उधारी पर उनसे ब्याज लेता है। इसलिए जमा और उधारी दर और जमा या उधारी की अवधि के बीच बैंकों को संतुलन बनाकर रखना होता है, ताकि ब्याज दर या जमा या उधारी की अवधि में ज्यादा अंतर न हो और उसकी वजह से बैंकों के समक्ष परिचालन संबंधी जोखिम खड़ा न हो।

वैश्विक महामारी और बाजार में मौजूद व्यवधानों के बीच, भारतीय निवेशकों ने वित्त वर्ष 2021 में 1.42 करोड़ नए डीमैट खाते खोले, जो पिछले वित्त वर्ष की तुलना में लगभग तीन गुना अधिक है। 31 मार्च, 2022 तक भारत में सक्रिय डीमैट खातों की संख्या 8.97 करोड़ थी, जो वित्त वर्ष 2021 की तुलना में तिरसठ फीसद अधिक है। नए डीमैट खाते खोलने वालों में छोटे निवेशकों की संख्या ज्यादा है, जो यह दर्शाता है कि छोटे निवेशक अब बैंक की जगह शेयर बाजार में निवेश करने लगे हैं।

निवेशकों की जमा प्रवृत्ति में बदलाव का कारण बैंकों की जमा दरों में कमी आना और कुछ सहकारी और निजी बैंकों का विगत वर्षों में गंभीर आर्थिक संकट के दौर से गुजरना है। बैंक में मियादी जमा सबसे सुरक्षित विकल्प माना जाता है, लेकिन पिछले सालों में निवेशकों का भरोसा बैंक पर कम हुआ है। हालांकि ग्राहकों के मन में दुबारा बैंकों के प्रति भरोसा पैदा करने के लिए सरकार ने ‘डिपाजिट इंश्योरेंस’ की सीमा को एक लाख से बढ़ा कर पांच लाख रुपए कर दिया है।

‘डिपाजिट इंश्योरेंस एंड क्रेडिट गारंटी कारपोरेशन एक्ट 1961’ की धारा 16 (1) के तहत प्रत्येक जमाकर्ता के अधिकतम पांच लाख रुपए तक की जमा राशि पर बीमा कवर मिलता है। यह सुरक्षा केंद्रीय बैंक की सहायक ‘डिपाजिट इंश्योरेंस एंड क्रेडिट गारंटी कारपोरेशन’ (डीआइसीजीसी) द्वारा दी जाती है। यानी अगर किसी वजह से कोई बैंक डूब जाए, दिवालिया हो जाए या बैंक का लाइसेंस रद्द हो जाए तो उस स्थिति में प्रत्येक जमाकर्ता को उस बैंक में जमा पांच लाख रुपए तक की राशि का भुगतान किया जाएगा।

जमाकर्ता को, जो अधिकतम पांच लाख रुपए का बीमा कवर मिलता है, उसमें मूलधन के साथ-साथ उस पर मिलने वाला ब्याज भी शामिल होता है। अगर ग्राहक के किसी एक बैंक की अलग-अलग शाखाओं में पैसे जमा हैं तो सभी शाखाओं में जमा धनराशि को जोड़ दिया जाता है और अधिकतम पांच लाख रुपए की जमा राशि पर बीमा कवर का फायदा मिलता है।

ताजा मौद्रिक समीक्षा में केंद्रीय बैंक ने अपने पुराने रुख पर कायम रहते हुए वित्त वर्ष 2023 के लिए मुद्रास्फीति के 6.7 फीसद पर रहने का अनुमान जताया है, जबकि मुद्रास्फीति की सहनशीलता सीमा पांच से छह फीसद के बीच है। इसलिए, रिजर्व बैंक मुद्रास्फीति पर लगाम लगाने के लिए आगामी मौद्रिक समीक्षाओं में नीतिगत दरों में और भी बढ़ोतरी कर सकता है।

रेपो दर में वृद्धि के बाद महंगाई को नियंत्रित करने के लिए बैंकों ने उधारी दरों में वृद्धि की है, लेकिन उस अनुपात में जमा दरों में इजाफा नहीं किया है। इसलिए, कयास लगाए जा रहे हैं कि बैंक जमा दरों में भी वृद्धि करेंगे। त्योहारों के मौसम में कुछ बैंक उत्सव जमा योजना लेकर आए हैं। इस योजना के तहत जमा राशि पर एक हजार दिनों के लिए 6.1 फीसद ब्याज देने का प्रस्ताव है। वरिष्ठ नागरिकों को इसमें 0.8 फीसद का अतिरिक्त ब्याज देने का प्रस्ताव है।

माना जा रहा है कि बैंक जमा दर में वृद्धि का दौर अभी जारी रहेगा। ऐसे में छोटे निवेशक शेयर बाजार की जगह बैंक में फिर से निवेश करना शुरू कर सकते हैं, क्योंकि बैंक में जमा करना, शेयर बाजार में निवेश करने की अपेक्षा सुरक्षित है। जमा बीमा कवर की सीमा को एक लाख से बढ़ा कर पांच लाख रुपए करने से पंचानबे फीसद से अधिक निवेशकों के बैंक में किए गए निवेश पूरी तरह से सुरक्षित हो गए हैं।

बैंकों के लिए मौद्रिक सख्ती चुनौतीपूर्ण स्थिति पैदा कर रही है। नियामकीय जरूरतों को पूरा करने के लिए बैंकों को ब्याज दर में बढ़ोतरी करने से बचने की कोशिश करनी पड़ रही है, क्योंकि जब ब्याज दरें बढ़ती हैं तो बांड प्रतिफल बढ़ता है और उसकी कीमत में गिरावट आती है। चूंकि, नियामकीय जरूरतों को पूरा करने के लिए बैंकों को एक बड़ी राशि बांडों में निवेश करना होता है, इसलिए, बांड की कीमतों में गिरावट आने से बैंकों को होने वाला नुकसान बढ़ सकता है।

चार मई के बाद से रिजर्व बैंक ने रेपो दर में कुल 190 आधार अंकों की बढ़ोतरी की है। इसकी वजह से दस साल के बेंचमार्क सरकारी बांड का प्रतिफल 61 आधार अंक बढ़ गया, जिससे बैंकों को 11,800 करोड़ रुपए का नुकसान हुआ है, जिसमें से 8,600 करोड़ रुपए का नुकसान सिर्फ सरकारी बैंकों को हुआ है।

पिछले कुछ वर्षों में छोटे निवेशकों ने बैंक की जगह शेयर बाजार में निवेश करना जरूर शुरू कर दिया था, लेकिन अब बैंक फिर से निवेश के लिए सुरक्षित और ज्यादा प्रतिफल देने वाले विकल्प बन रहे हैं। शेयर बाजार जोखिम मुक्त नहीं माना जा सकता। अधिकांश छोटे निवेशकों की आर्थिक स्थिति बहुत अच्छी नहीं होती है। अगर उनके पैसे डूबेंगे तो उनकी मुश्किलें भी बढेंगी, जिसका समाधान निकालना सरकार और नियामक दोनों के लिए आसान नहीं होगा।