मौलाना मसूद अजहर को वैश्विक आतंकी घोषित करवाने में भारतीय कूटनीति विफल हो गई है। इस बार भी चीन ही बाधा बना है। पाकिस्तान के दोस्त चीन ने फिर एक बार भारतीय बाजार की परवाह नहीं की। साठ अरब डालर के व्यापार संतुलन को अपने पक्ष में करने के बाद भी चीन ने भारत को बड़ा झटका दिया। दिलचस्प बात थी कि चीन से झटका खाने के बाद भी भारतीय विदेश मंत्रालय ने काफी संभल कर प्रतिक्रिया दी। पाकिस्तान के खिलाफ आग उगलने वाली भारतीय कूटनीति चीन को लेकर एकदम ठंडी नजर आई। आखिर क्यों भारतीय कूटनीति सुरक्षा परिषद के प्रस्ताव 1267 के तहत मौलाना मसूद अजहर को वैश्विक आतंकी घोषित करवाने में विफल रही? जबकि पिछले दस सालों में मसूद अजहर को लेकर सुरक्षा परिषद में भारत की यह चौथी कोशिश थी। इससे पहले भारतीय पक्ष लगातार चीन के संपर्क में था। लेकिन चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे (सीपीईसी) के माध्यम से पाकिस्तान में भारी निवेश करने वाले चीन ने साफ संकेत दे दिया कि फिलहाल उसकी प्राथमिकता चीन ही है।
हर बार मसूद अजहर के लिए चीन राहत लेकर आता रहा है। यह चीन का निश्चित तौर पर पक्षपाती रवैया है। चीन जहां एक तरफ पश्चिमी चीन के आतंकवाद को लेकर अपनी चिंता व्यक्त करता रहा है, वहीं पड़ोसी मुल्कों में फैल रहे आतंक पर भेदभाव की रणीति अपनाता रहा है। भारत में पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद पर तो चीन लगातार आतंकवाद समर्थक रणनीति अपनाता रहा है। लेकिन हैरानी की बात तो यह है कि भारत-चीन के बीच होने वाली द्विपक्षीय बैठकों में चीन लगातार भारत को आतंकवाद के खिलाफ सहयोग करने का वादा भी करता रहा है। बुहान में भी भारतीय प्रधानमंत्री की चीनी राष्ट्रपति ने आतंकवाद के खिलाफ जंग में साथ देने का वादा किया था। लेकिन मसूद अजहर पर चीन की रुकावट ने वुहान भावना की धज्जियां उड़ाई हैं। दिलचस्प बात है कि हर बार चीन ने भारत के विरोध में खेल किया, लेकिन भारत ने हर बार चीन के प्रति तीखी प्रतिक्रिया के बदले ठंडी कूटनीति अपनाई।
चीन की इस नीति का देश के अंदर लगातार विरोध हुआ। यही नहीं, संसदीय समिति ने भी चीन को लेकर अपनाई गई भारतीय कूटनीति को लेकर सवाल उठाए। विदेश मामलों की संसदीय समिति ने पिछले साल अपनी रिपोर्ट में चीन के प्रति नरम रवैया खत्म करने की सलाह दी थी। संसदीय समिति ने चीन के प्रति विनय की परंपरा को खत्म करने की सिफारिश की है। लेकिन भारतीय कूटनीति में कोई बदलाव नहीं हुआ। हमारी कूटनीति सिर्फ पाकिस्तान के खिलाफ सख्त है, लेकिन चीन के खिलाफ नरम है। जबकि एक जमीनी सच्चाई यह है कि सिर्फ आतंक को लेकर चीन भारत विरोधी रवैया नहीं अपनाता रहा, बल्कि भारतीय सीमा में लगातार चीनी सैनिक घुसपैठ कर भारतीय संप्रभुता को चुनौती देते रहे हैं।
हालांकि एक बहस यह भी है कि भारत मसूद अजहर को वैश्विक आतंकी घोषित करवाने में अपनी ज्यादा ऊर्जा खर्च करने के बजाय अपनी सीमाओं को सुरक्षित करे। भारत में जो नौजवान आतंकी संगठनों के प्रभाव में आ रहे हैं, उन्हें मुख्यधारा में लाने के प्रयास किए जाएं। कश्मीर में जैश-ए-मोहम्मद जैसे संगठन स्थानीय युवाओं को भर्ती करने में सफल हो गए हैं। एक तर्क यह भी है कि संयुक्त राष्ट्र की वैश्विक आतंकी सूची में मसूद अजहर को डाले जाने से आतंकी गतिविधियां नहीं रुकेंगी, क्योंकि मसूद अजहर का संगठन जैश-ए-मोहम्मद कई साल पहले आतंकी सूची में आ गया था। इसके बावजूद जैश की गतिविधियां बेलगाम जारी रही हैं। तब मौलाना अजहर को आतंकी सूची में डाले जाने से क्या फर्क आएगा?
गंभीर सवाल तो यह है कि आतंकी सूची में डाले जाने के बाद भी अजहर को पाकिस्तानी सैन्य प्रतिष्ठानों का जो संरक्षण मिलता रहेगा, उस पर लगाम कैसे लगे। इसका साफ उदाहरण लश्कर-ए-तैयबा और उसका मुखिया हाफिज सईद है। लश्कर और हाफिज सईद को काफी पहले आतंकी सूची में डाला जा चुका है। लेकिन इसका लाभ क्या मिला? हाफिज आज भी खतरनाक आतंकी है, सरेआम घूम रहा है, लाहौर और इस्लामाबाद में रैलियां करता है, भारत विरोधी भाषण देता है, भारत में हमले की साजिश रचता है। उसके संगठन जमात-उद-दवा के सारे वित्तीय कारोबार चल रहे हैं। समस्या यह है कि इन पर प्रतिबंध सिर्फ कागजों में लगा हुआ है। कागजों में ही इन आतंकियों की संपत्ति और बैंक खाते जब्त हैं। लेकिन सच्चाई यह है कि हाफिज को सारी कार्रवाई से पहले सूचना दी गई और उसने पहले ही बैंकों से सारे पैसे दूसरे ट्रस्टों के खातों में स्थानांतरित करवा लिए।
अगर मसूद अजहर की बात करें तो जैश-ए-मोहम्मद और उससे संबंधित दो बड़े ट्रस्ट अल रशीद ट्रस्ट और अल अख्तर ट्रस्ट पर 2003 और 2005 में प्रतिबंध लगाया गया था। इसके बावजूद जैश के लोग दूसरे ट्रस्टों के माध्यम से अपनी गतिविधियां चला रहे हैं। इसका मतलब साफ है। संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के प्रस्ताव 1267 का असर जमीन पर नहीं पड़ता। इससे पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद पर कोई लगाम नहीं लगेगी। लश्कर और जैश जैसे संगठनों या इनके कमांडरों की गतिविधियां तभी खत्म होंगी जब पाकिस्तानी सैन्य प्रतिष्ठान और आइएसआइ यह मान लेगी कि इन आतंकी संगठनों का अफगानिस्तान और भारतीय कश्मीर में अब उनके लिए उपयोग नहीं रह गया है। पाकिस्तानी सेना के बड़े अधिकारियों का संरक्षण मसूद अजहर को है। इसके प्रमाण हैं।
मौलाना मसूद अजहर ने पूर्व पाकिस्तानी राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ पर जानलेवा हमला करवाया। मुशर्रफ इसे खुल कर स्वीकार करते रहे हैं। उन्होंने जैश और अजहर पर कार्रवाई की कोशिश भी की। लेकिन सेना के भीतर एक ताकतवर लॉबी ने मुशर्रफ के मंसूबों पर पानी फेर दिया। मसूद अजहर का मुशर्रफ अपने समय में कुछ भी नहीं बिगाड़ पाए। आइएसआइ मसूद अजहर का अपने हितों के लिए इस्तेमाल करती है। तभी तो चीन पूरी तरह से मसूद अजहर के साथ खड़ा है। मसूद अजहर के लड़ाके बलूचिस्तान, सिंध और पंजाब में चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे की सुरक्षा की जिम्मेवारी निभा रहे हैं। बलूच आतंकी संगठनों से इस गलियारे को खतरा है। बलूच आतंकियों ने पिछले साल नवंबर में कराची स्थित चीनी वाणिज्य दूतावास पर हमला किया था। इससे चीन खासा घबराया गया था। यही नहीं, बलूचिस्तान में कुछ चीनी कामगारों और इंजीनियरों की भी हत्या बलूच आतंकी संगठनों ने की है। वैसे में चीन मसूद अजहर और उसके संगठन का सहयोग सिंध और बलूचिस्तान में लेना चाहता है।
भारतीय कूटनीति पाकिस्तान के खिलाफ खूब आग उगलती है। लेकिन जब चीन की बात आती है तो ठंडी हो जाती है। चीन पाकिस्तान में बैठे भारत विरोधी आतंकियों को लगातार समर्थन दे रहा है। लेकिन चीन से हम सिर्फ विनम्र अनुरोध करते हैं। चीन के प्रति सख्त रवैया नहीं अपनाते। अब भारत को चीन को लेकर ट्रंप नीति का अनुसरण करना चाहिए। अमेरिका की तरह ही भारत को भी चीनी आयात पर शुल्क लगाना चाहिए। चीनी कंपनियां भारतीय बाजार का जबर्दस्त दोहन कर रही हैं। आज भारतीय बाजार का सबसे ज्यादा दोहन चीनी उत्पाद कर रहे हैं। चीन और भारत के बीच द्विपक्षीय व्यापार सलाना अठारह फीसद की दर से बढ़ रहा है। दोनों मुल्कों के बीच सालाना व्यापार लगभग नब्बे अरब डॉलर के करीब पहुंच रहा है। द्विपक्षीय व्यापार पूरी तरह से चीन के पक्ष में है। भारत का चीन के साथ सालाना व्यापार घाटा लगभग साठ अरब डॉलर तक पहुंच चुका है। चीन को भारतीय बाजार से भारी आर्थिक लाभ है। इसके बावजूद चीन भारत विरोधी आतंकी मसूद अजहर के साथ खड़ा है।

