तमाम राजनीतिक हो-हल्ले वाली खबरों के बीच पंजाब के मालवा इलाके में सफेद मक्खी के कारण फसल बर्बाद होने की खबर कहीं दब गई। जबकि हकीकत यह है कि पंजाब में पिछले एक महीने में सात किसानों ने सफेद मक्खी के कारण फसल खराब होने के बाद आत्महत्या कर ली। ये किसान उस इलाके के थे, जहां से खुद मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल का ताल्लुक है। पिछले कुछ महीनों में पंजाब के अलग-अलग इलाकों में बीस से ज्यादा किसानों ने आत्महत्या की है। तथ्य यह है कि जहां एक तरफ फसल बर्बाद हुई, वहीं दूसरी तरफ इसी फसल पर किसानों ने कर्ज लिया था। मरने वाले ज्यादातर छोटे किसान थे।
किसानी पर संकट केवल पंजाब में नहीं, पूरे देश में गहरा रहा है। लेकिन इस मामले में पंजाब इसलिए महत्त्वपूर्ण है कि यह प्रांत हरित क्रांति के लिए जाना जाता है। किसी जमाने में लोग उदाहरण देकर पंजाब के संपन्न किसानों के बारे में बताते थे। पर आज पंजाब के मालवा इलाके के किसान अगर फसल खराब होने से परेशान हैं, तो दोआबा के किसान गन्ने की बकाया राशि के लिए आंदोलन कर रहे हैं। वहीं माझा इलाके में किसानों की बासमती की दस लाख बोरियां अभी तक मंडियों में पड़ी हैं, क्योंकि सरकार चार हजार रुपए प्रति क्विंटल वाला बासमती बारह सौ रुपए प्रति क्विंटल की दर पर खरीदना चाहती है। सरकार की शर्तों से नाराज बासमती उगाने वाले किसान अमृतसर, गुरदासपुर, तरनतारन में धरना दे रहे हैं। सरकारी प्रतिनिधि, जिनमें मंत्री भी शामिल हैं, किसानों के गुस्से का शिकार हो रहे हैं।
एक आधिकारिक सर्वे के आंकड़ों से जाहिर है कि पंजाब में सन 2000 से लेकर 2010 तक लगभग सात हजार किसानों ने कर्ज के कारण आत्महत्या कर ली। यह सर्वे पंजाब के तीन सरकारी विश्वविद्यालयों- पंजाब कृषि विश्वविद्यालय (लुधियाना), पंजाबी विश्वविद्यालय (पटियाला) और गुरु नानकदेव विश्वविद्यालय (अमृतसर) ने किया था। 2010 के बाद भी किसानों की आत्महत्या का सिलसिला रुका नहीं है।
पंजाब के पड़ोसी राज्य हरियाणा में इस साल फसलों के नुकसान के कारण कई किसानों की आत्महत्या की खबरें आर्इं। कर्ज के बोझ तले दबा किसान फसल बर्बाद होने और पैदावार की वाजिब कीमत न मिलने के कारण आत्महत्या कर रहा है। बठिंडा, मानसा, संगरूर आदि जिलों के किसानों की खुदकुशी की घटनाएं इसका उदाहरण मात्र हैं। लेकिन सरकारें किसानों को इस कुचक्र से बाहर निकालने के लिए कोई कदम नहीं उठा रही हैं।
पंजाब में किसानों द्वारा लिए गए कुल कर्जों में साहूकारों से मिले कर्ज का हिस्सा पैंतालीस प्रतिशत है। लेकिन साहूकारों द्वारा चलाई जाने वाली कर्ज-व्यवस्था को नियमित करने के लिए पंजाब सरकार ने आज तक कानून नहीं बनाया। पूर्व मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने अपने कार्यकाल में साहूकारी व्यवस्था को व्यवस्थित करने के लिए कानून बनाने की कोशिश की थी, लेकिन वह पहल अधर में ही लटक गई। हालत यह है कि साहूकार किसानों को बारह से छत्तीस प्रतिशत ब्याज पर कर्ज दे रहे हैं। खुद सरकारी आंकड़े बता रहे हैं कि फिलहाल पंजाब में किसानों पर कुल पैंतीस हजार करोड़ रुपए का कर्ज है।
किसान संकट में हैं, तो इसका दुष्प्रभाव दूसरे तबकों पर भी पड़ेगा। कार, एयरकंडिशन, इंटरनेट, टेलीफोन के बिना तो आप जीवन काट सकते हैं, लेकिन चावल, दाल, आटा, सब्जी के बिना जीवन नहीं चलेगा। मध्यवर्ग महंगाई को लेकर हो-हल्ला मचाता है, तो सरकारें परेशान होती हैं। वोट बैंक खिसकने का खतरा नजर आता है। तुरंत महंगाई नियंत्रण के लिए सरकारें कदम उठाने की घोषणा करती हैं। महंगाई नियंत्रित करने के लिए विदेशों से गेहूं, आलू, प्याज मंगवाया जाता है। लेकिन देश में पैदा होने वाले अनाज, फल, सब्जियों आदि की समुचित मूल्य पर खरीद और संरक्षण आदि को लेकर कभी गंभीरता नहीं दिखाई जाती। अपने किसानों की समस्याएं दूर करने की चिंता सरकारों को नहीं है।
महंगाई बढ़ने का एक कारण किसानों का संकट में होना भी है। किसान कर्ज के बोझ तले ही नहीं दबा है। उसे कई और संकटों से भी जूझना पड़ रहा है। वह कर्ज के कारण विषाद, उदासी और निराशा का शिकार हो रहा है। इससे बचने के लिए वह नशा करने लगा है। नशे के दुष्प्रभाव में किसान गंभीर बीमारियों का शिकार हो रहा है। वहीं इलाज की खातिर लिए जाने वाले कर्ज के कारण उसका पूरा परिवार बर्बाद हो रहा है। पंजाब के मालवा इलाके में नशे के कारण हेपेटाइटिस-सी का प्रकोप तेजी से फैला है।
हालांकि सरकार इसे फिलहाल विस्फोटक स्थिति नहीं मान रही है, लेकिन इलाके को समझने वाले लोग हेपेटाइटिस-सी को पंजाब का एक गंभीर संकट मान रहे हैं, क्योंकि इसके इलाज में तीन से चार लाख रुपए खर्च होते हैं। इसके लिए भी किसान को कर्ज लेना पड़ रहा है। भुक्की, अफीम, नशीले इंजेक्शन ने जहां पूरे पंजाब को अपनी चपेट में ले लिया है, वहीं सरकार की आबकारी नीति नशे को आधिकारिक रूप से प्रभावित कर रही है।
सरकार को लगता है कि शराब पर लगने वाले टैक्स से पंजाब का खजाना भर जाएगा। पंजाब की कुल आबादी करीब 2.8 करोड़ है, जिसमें आधे से अधिक बच्चे और महिलाएं शामिल हैं, इसके लिए पंजाब सरकार ने 2015-16 में चौंतीस करोड़ बोतल शराब बेचने की अनुमति दी है। अगर बच्चों और महिलाओं को छोड़ दें, तो पंजाब की लगभग एक करोड़ आबादी साल में चौंतीस करोड़ बोतल पी जाएगी। सरकार को लोगों की सेहत की चिंता के बजाय सालाना मिलने वाले लगभग पांच हजार करोड़ रुपए आबकारी टैक्स की चिंता है। यहां यह बताना भी जरूरी है कि पंजाब में शराब की काफी मात्रा अवैध तरीके से भी बेची जाती है।
अगर हेपेटाइटिस-सी को लेकर पंजाब में चिंता बढ़ी है तो वहां कैंसर भी भयानक रूप से फैल चुका है। राज्य सरकार खुद पूरे राज्य में लगभग सत्ताईस हजार कैंसर रोगी होने की बात मानती है। इसके अलावा बहुत सारे संदिग्ध मरीजों की जांच फिलहाल चल रही है, जिन्हें कैंसर होने की आशंका है। हरित क्रांति के दुष्प्रभावों ने पंजाब के मालवा इलाके को कैंसर की राजधानी बना दिया है। अब दूसरे इलाकों से भी कैंसर के मरीजों की संख्या बढ़ने लगी है। हालात इतने नाजुक हैं कि बीकानेर तक जाने वाली एक ट्रेन का नाम ही स्थानीय लोगों ने कैंसर एक्सप्रेस रख दिया है। क्योंकि मालवा के ज्यादातर लोग कैंसर का इलाज महंगा होने के कारण बीकानेर के एक चैरिटेबल अस्पताल में कैंसर के इलाज के लिए जाते हैं।
सरकारें कैंसर के सस्ते इलाज का खूब दावा कर रही हैं। लेकिन सच्चाई तो यह है कि इसका इलाज इतना महंगा है कि लोग इसके अभाव में मर रहे हैं। राज्य में निजी क्षेत्र के ज्यादातर अस्पताल कैंसर के इलाज के नाम पर लोगों की जेबें खाली कर रहे हैं। मजबूरी में लोग पीजीआइ, चंडीगढ़ आते हैं, जहां भारी भीड़ है, या चैरिटेबल अस्पतालों की खोज में लगे हुए हैं। पंजाब में कर्ज में डूबे किसान कैंसर के इलाज के लिए पैसा कहां से लाएं, यह एक बड़ी समस्या है। कीटनाशकों और रासायनिक खादों के बेतहाशा इस्तेमाल ने पंजाब के मालवा इलाके की मिट्टी को इतना प्रदूषित कर दिया है कि देश के प्रमुख अस्पतालों में आने वाले पीजीआइ, चंडीगढ़ की टीम भी हतप्रभ है। कीटनाशकों और रासायनिक खादों ने मिट्टी ही नहीं, भूजल को भी प्रदूषित किया है। पंजाब में कैंसर का एक प्रमुख कारण भूजल प्रदूषित होना भी है।
खेती घाटे का सौदा बन गई है। किसान आत्महत्या कर रहे हैं। लेकिन किसानी पर संकट के साथ-साथ एक और बड़ी समस्या पंजाब में आई है, भूजल का बेतहाशा घटता स्तर। भूजल के संकट ने किसानों को और भी कर्जदार बना दिया है। बीते बीस सालों में पंजाब में भूजल काफी नीचे चला गया। ज्यादातर ब्लॉक ‘डार्क जोन’ की श्रेणी में आ गए, यानी वहां जमीन के नीचे का पानी समाप्त हो चुका है। कुल एक सौ सैंतीस ब्लॉक में से डार्क जोन वाले ब्लॉकों की संख्या एक सौ तीन तक पहुंच गई है। गिरते भूजल के कारण मजबूरी में किसानों को अपने ट्यूबेल को और गहराई तक ले जाना पड़ा है।
एक अनुमान के अनुसार पंजाब में चौदह लाख ट्यूबवेल हैं। ट्यूबवेल की पाइप को और गहराई में ले जाने की प्रक्रिया में पंजाब के किसानों ने अब तक लगभग पंद्रह हजार करोड़ रुपए खर्च कर दिए हैं। एक किसान को इस काम में तीन से दस लाख रुपए तक खर्च करना पड़ता है। यह अनुमान खुद राज्य सरकार ने लगाया है। हालांकि इस खर्च को किसी खाते में नहीं रखा गया है। यह खर्च खेती पर आने वाली लागत से अलग है। पंजाब में आज किसान ट्यूबवेल के लिए औसतन दस से बीस हॉर्स पावर के मोटर इस्तेमाल कर रहे हैं। कई जगहों पर चालीस हॉर्स पावर के मोटर भी इस्तेमाल में ला रहे हैं। इस वजह से भी राज्य में बिजली की मांग में इजाफा हुआ है।
चूंकि पंजाब में किसानों को बिजली मुफ्त मिलती है, इसलिए सरकार पर बिजली सबसिडी का बोझ बढ़ा है। वर्ष 2015-16 के बजट में पंजाब सरकार ने बिजली सबसिडी के लिए 5484 करोड़ रुपए का प्रावधान रखा। बिजली सबसिडी में लगातार बढ़ोतरी हो रही है। इससे राज्य सरकार की वित्तीय सेहत भी खराब हुई है। लेकिन सरकार किसानों की बिजली सबसिडी खत्म करेगी, तो इससे किसान और बदतर हालत में पहुंच जाएंगे। सच्चाई तो यही है कि बिजली सबसिडी किसानों को सरकार की तरफ से मिलने वाली एकमात्र राहत है।.. (संजीव पांडेय)
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