सुधीर कुमार

धरती पर वायु और जल प्रदूषण ही नहीं, ध्वनि प्रदूषण भी संकट का बड़ा कारण बन गया है। हाल में संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (यूएनईपी)की सालाना रिपोर्ट आई है। इस रिपोर्ट के मुताबिक भारत में उत्तर प्रदेश का मुरादाबाद जिला बांग्लादेश की राजधानी ढाका के बाद दुनिया का दूसरा सर्वाधिक ध्वनि प्रदूषण वाला शहर बताया गया है। मुरादाबाद दुनिया के उन शीर्ष आठ शहरों में शामिल है जहां शोर का औसत स्तर एक सौ डेसिबल से ऊपर पहुंच चुका है। ढाका में दिन के समय शोर का स्तर एक सौ उन्नीस डेसिबल तक पहुंच जाता है, जबकि रामगंगा नदी के तट पर स्थित मुरादाबाद में यह एक सौ चौदह डेसिबल दर्ज किया गया है।

इस सूची में कोलकाता और आसनसोल (नवासी डेसिबल), जयपुर (चौरासी डेसिबल) और दिल्ली (तिरासी डेसिबल) जैसे शहर भी शामिल हैं, जहां ध्वनि आवृति विश्व स्वास्थ्य संगठन के निर्धारित मानक से अधिक पाई गई है। गौरतलब है कि 2018 में जारी अपने दिशानिर्देशों में विश्व स्वास्थ्य संगठन ने दिन के समय ध्वनि प्रदूषण के विभिन्न स्रोतों के लिए अलग-अलग मापदंड जारी किए थे।

इसके मुताबिक सड़क यातायात में दिन के समय शोर का स्तर तिरपन डेसिबल, रेल परिवहन में चौवन, हवाई जहाज और पवन चक्की चलने के दौरान यह स्तर पैंतालीस डेसिबल से अधिक नहीं होना चाहिए। इससे ऊपर का शोर स्वास्थ्य के लिए बहुत हानिकारक माना जाता है। जाहिर है, शोर का बढ़ता स्तर बड़े खतरे का सूचक है, जिसे अब और नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।

औद्योगीकरण और शहरीकरण के रास्ते पर तेजी से बढ़ते शहरों में ध्वनि प्रदूषण की स्थिति दिनोंदिन भयावह होती जा रही है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के अनुसार वायु प्रदूषण के बाद शोर स्वास्थ्य समस्याओं का दूसरा सबसे बड़ा पर्यावरणीय कारण बन गया है। परिवहन और उद्योग क्षेत्र से निकलने वाली उच्च आवृत्ति की ध्वनियां लोगों को असमय बीमार बना रही हैं।

इसका असर जीवन प्रत्याशा पर पड़ रहा है। दुनिया के कई शहर ध्वनि प्रदूषण की गहरी चपेट में हैं। मसलन न्यूयार्क शहर में सार्वजनिक परिवहन इस्तेमाल करने वाले हर दस में से नौ यात्री सत्तर डेसिबल की निर्धारित सीमा से अधिक शोर झेलने को मजबूर हैं। वहीं स्पेन के बार्सिलोना शहर की बहत्तर फीसद से अधिक आबादी पचपन डेसिबल से अधिक शोर स्तर की मार झेल रही है।

कनाडा के टोरंटो शहर के निवासियों पर पंद्रह साल तक किए गए अध्ययनों में पाया गया कि सड़क यातायात के शोर के संपर्क में आने से लोगों में दिल की बीमारियों के जोखिम बढ़ गए और मधुमेह की घटनाओं में आठ फीसद व उच्च रक्तचाप के मामलों में दो फीसद की वृद्धि हुई।

कई शहरों में दिन के समय शोर में हर एक डेसिबल वृद्धि के चलते दिल संबंधी रोगों का खतरा कई गुना बढ़ रहा है। पहले से ही वायु, जल और मृदा प्रदूषण की मार झेल रही वैश्विक आबादी के लिए ध्वनि प्रदूषण से निपटना किसी चुनौती से कम नहीं है। ध्वनि प्रदूषण सड़कों, रेलवे, हवाई अड्डों, उद्योगों और बड़े आयोजनों से उत्पन्न होता है।

आमतौर पर शहरों में जहां यातायात और उद्योगों का संकुल अधिक है, वहां ध्वनि प्रदूषण एक स्थायी समस्या का रूप ले चुका है। लेकिन अब गांव भी इससे अछूते नहीं रह गए हैं। गांवों में कृषि संयंत्रों के प्रयोग और टीवी, मोबाइल और लाउडस्पीकर जैसे ध्वनि यंत्रों ने ग्रामीणों के ‘सुनने के तरीके’ को प्रभावित कर दिया है।

कर्णप्रिय, हल्की और मधुर ध्वनि रोजमर्रा की जिंदगी का एक महत्त्वपूर्ण और मूल्यवान हिस्सा है। लेकिन परिवेश की ध्वनि जब शोर में तब्दील होने लगती है, तो यह हमारे मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव डालने लगती है। ध्वनि प्रदूषण को सभी आयु वर्ग और सामाजिक समूहों में एक शीर्ष पर्यावरणीय जोखिम और सार्वजनिक स्वास्थ्य बोझ के रूप में देखा जाने लगा है।

यह एक ऐसा गंभीर पर्यावरणीय और अदृश्य खतरा है जो हमारे शरीर के कुछ अंगों के साथ-साथ मानसिक स्वास्थ्य को भी प्रभावित कर रहा है। अवांछित और अप्रिय शोर हमें परेशान कर सकता है और तनावग्रस्त बना सकता है। इससे नींद में खलल पड़ता है और लोगों को सोने में कठिनाई होती है। उच्च ध्वनि का श्रवण हमारे सुनने की क्षमता को कमजोर कर बहरेपन की ओर ले जाता है।

संयुक्त राष्ट्र के अनुसार दुनिया भर में लगभग डेढ़ अरब लोग इस समय कम श्रवण क्षमता के साथ जीवन जी रहे हैं। वहीं, विश्व स्वास्थ्य संगठन की एक रिपोर्ट दर्शाती है कि वर्ष 2050 तक दुनिया में हर चार में से एक व्यक्ति यानी लगभग पच्चीस फीसद आबादी किसी न किसी हद तक श्रवण क्षमता में कमी के साथ जी रही होगी।

दरअसल सार्वजनिक स्वास्थ्य पर शोर का प्रतिकूल प्रभाव बढ़ती हुई वैश्विक चिंता है। माना जाता है कि पिच्यासी डेसिबल या इससे अधिक आवृत्ति की ध्वनि किसी व्यक्ति के कानों को नुकसान पहुंचा सकती है। तेज आवाज के संपर्क में आने से उच्च रक्तचाप और हृदय रोग का खतरा बढ़ सकता है।

बच्चों, बूढ़ों और गर्भवती महिलाओं पर इसका असर सबसे ज्यादा होता है। उच्च ध्वनि क्षेत्रों में रहने से याददाश्त में कमी, ध्यान लगाने में परेशानी, पढ़ाई-लिखाई प्रभावित होना भी आम बात है। जो लोग ऐसे इलाकों में लंबे समय तक रहते हैं, वे पहले की तुलना में जोर से बोलना शुरू कर देते हैं और उन्हें धीमी आवाज सुनने में भी परेशानी होने लगती है। इससे उनके शरीर और मन पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।

ध्वनि प्रदूषण के चलते होने वाली ‘टिनिटस’ एक आम बीमारी है, जिसे कान बजना भी कहा जाता है। मानव कान अनुश्रव्य (बीस हर्ट्ज से कम आवृत्ति) और पराश्रव्य (बीस हजार हर्ट्ज से अधिक आवृत्ति) ध्वनि को सुनने में अक्षम होता है। कानों में लगातार उच्च आवृत्ति बच्चों के कान के पर्दे को कमजोर कर देती है। दिन में आठ घंटे शोर के लगातार संपर्क में रहने से बच्चों में स्थायी श्रवण परिवर्तन हो सकता है, जिससे कुछ आवृत्तियों को सुनने में असमर्थता भी शामिल है।

बढ़ता शोर न सिर्फ जमीन पर रहने वाले जानवरों को प्रभावित करता है, बल्कि समुद्री जीवों के लिए भी एक बड़ी समस्या के रूप में सामने आया है। दरअसल जहाजों, समुद्र के भीतर तेल के लिए खोदाई करने वाली ड्रिल मशीनों के शोर, सोनार उपकरणों और भूकंपीय परीक्षणों ने समुद्री वातावरण की शांति भी खत्म कर दी है। इससे समुद्री जीवों विशेषकर स्तनपायी जीवों को कई समस्याओं का सामना करना पड़ता है। शोर से उत्पन्न कंपन समुद्री जीवों को असहज बना देता है।

शोर पर नियंत्रण इसलिए भी आवश्यक है ताकि धरती को एक और आपदा से बचाया जा सके और सभी जीवों के जीवन की रक्षा की जा सके। जैव विविधता को बचाए रखने के लिए इस पर काबू पाना अत्यंत आवश्यक हो गया है।
बेशक ध्वनि प्रदूषण पर नियंत्रण के लिए सरकार प्रयास करती रही है, लेकिन जब तक समाज आगे नहीं आएगा, यह समस्या खत्म नहीं होने वाली। पर्यावरण के प्रति सभी के भीतर जिम्मेदारी का बोध कराना होगा, तभी यह धरती पुन: जीने लायक हो पाएगी।

ध्वनि प्रदूषण (विनियमन और नियंत्रण) नियम-2000 के तहत शोर उत्पन्न करने वाले उपकरणों का इस्तेमाल, आवाज वाले पटाखे फोड़ने, सड़कों पर हार्न बजाने और ऊंची आवाज में संगीत और वाद्य यंत्रों का प्रयोग प्रतिबंधित है। इसके साथ ही इस कानून में दिन के समय औद्योगिक क्षेत्रों में शोर का स्तर पचहत्तर, वाणिज्य क्षेत्रों में पैंसठ, आवासीय क्षेत्रों में पचपन और शांत परिक्षेत्रों में पचास डेसिबल तय किया गया है। अगर हम अपने-अपने स्तर पर शोर करना बंद कर दें तो पूरा परिवेश ध्वनि प्रदूषण से मुक्त हो सकता है।