सतीश कुमार
ब्रह्मपुत्र नदी अन्य नदियों की तरह महज जल प्रवाह तक सीमित नहीं है। चीन के लिए जहां यह एक बड़ा संसाधन है, वहीं तिब्बत और भारत की यह सांस्कृतिक विरासत से भी जुड़ी है। भारत के पूर्वोत्तर के चार राज्यों से यह नदी गुजरती है और इसका सबसे बड़ा मार्ग तिब्बत में ही पड़ता है, उसके बाद भारत और फिर बांग्लादेश की ओर मुड़ती है। भूटान का छोटा हिस्सा भी इसमें शामिल है। फिलहाल ब्रह्मपुत्र को लेकर विवाद चीन के एक बड़े बांध के कारण पैदा हुआ है। चीन अपनी चौदहवीं पंचवर्षीय योजना में इस नदी पर बड़ा बांध बनाने जा रहा है। हालांकि पहले भी चीन ब्रह्मपुत्र पर छोटे-छोटे बांध बनाता रहा है। लेकिन इस बार मामला उतना सहज नहीं है। चीन पूरी तरह से नदियों के रास्ते भारत को तबाह करने की कोशिश में है।
ब्रह्मपुत्र नदी पर बांध बनाने का चीन का फैसला भारत-चीन के रिश्तों में तनाव की नई वजह बन सकता है। ब्रह्मपुत्र को चीन में यारलंग जैंगबो नदी के नाम से जाना जाता है। ये नदी वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) के करीब तिब्बत के इलाकों में बहती है। अरुणाचल प्रदेश में इस नदी को सियांग और असम में ब्रह्मपुत्र के नाम से जाना जाता है। पनबिजली परियोजना के नाम पर चीन इस नदी पर जो बांध बनाएगा, उससे नदी पर पूरी तरह चीन का नियंत्रण हो जाएगा।
चीन की इस साजिश से भारत, पाकिस्तान, भूटान और बांग्लादेश प्रभावित होंगे। वर्ष 1954 से लेकर आज तक हर वर्ष ब्रह्मपुत्र नदी की विभीषिका भारत के पूर्वोत्तर राज्यों को तबाह करती रही है। इस बांध के बन जाने के चीन जल संसाधन को हथियार की तरह इस्तेमाल कर सकता है। विशेषज्ञों ने इसे ‘वाटर कैनन’ नाम दिया है। अंतरराष्ट्रीय नदियों के संदर्भ में भारत की नीति दुनिया के सामने एक आदर्श मानक बनी हुई है। पाकिस्तान के साथ सिंधु संधि की प्रशंसा आज भी होती है। उसी तरह 2007 में बांग्लादेश के साथ हुई संधि दोनों देशों के लिए सुकून की बात है। जबकि चीन अपने पडोसी देशों के साथ अंतरराष्ट्रीय नदियों को एक तुरुप के पत्ते की तरह इस्तेमाल करता है।
अगर आबादी के लिहाज से देखें तो चीन की आबादी दुनिया की कुल आबादी की बीस फीसद है, जबकि उसके पास स्वच्छ पानी का औसत महज पांच फीसद भी नहीं है। इसके बावजूद दुनिया की महत्त्वपूर्ण नदियां जो तिब्बत के पठार से निकलती हैं, उन पर बांध बना कर चीन दुनिया को पूरी तरह से तबाह कर देने की मंशा रखता है। मेकांग नदी आसिआन देशों के लिए जीवनदायिनी है। लेकिन चीन ने अलग-अलग मुहानों पर बांध बना कर नदियों के वास्तविक स्वरूप को बिगाड़ दिया है और हालत यह है कि दूसरे देशों तक पहुंचते-पहुंचते ये नदियां एक नाले में तब्दील हो जाती हैं। चीन ऐसा ही ब्रह्मपुत्र के साथ कर रहा है।
इसके परिणाम घातक होंगे। अगर चीन इस बांध को बनाने में सफल हो गया तो भारत के चार महत्त्वपूर्ण राज्यों की कृषि व्यवस्था और जीवनस्तर गंभीर खतरे में पड़ जाएगा। तिब्बत में ब्रह्मपुत्र के साथ तैंतीस सहायक नदियां मिलती हैं, उसी तरह भारत में अरुणाचल से प्रवेश करने के उपरांत तेरह नदियां फिर से उसका हिस्सा बन जाती है। अगर चीन इसका इस्तेमाल एक हथियार के रूप में करेगा तो बाढ़ का ऐसा आलम बन सकता है जिससे पूरा का पूरा क्षेत्र ही बहाव में विलीन हो जाएगा और अगर उसने बहाव को रोक लिया तो कृषि व्यवस्था तबाह होगी।
चीन मौजूदा पंचवर्षीय योजना के तहत इस बांध को बनाएगा। यह योजना वर्ष 2025 तक चलेगी। लोवी इंस्टीट्यूट की रिपोर्ट में कहा गया है कि चीन ने तिब्बत के जल पर अपना दावा ठोका है, जिससे वह दक्षिण एशिया में बहने वाली सात नदियों सिंधु, गंगा, ब्रह्मपुत्र, इरावडी, सलवीन, यांगत्जी और मेकांग के पानी को नियंत्रित कर रहा है। ये नदियां पाकिस्तान, भारत, बांग्लादेश, म्यांमा, लाओस और वियतनाम में होकर गुजरती हैं। इनमें से अड़तालीस फीसद पानी भारत से होकर गुजरता है। भारत और चीन के बीच पानी के आंकड़े साझा करने का समझौता भी है, लेकिन वर्ष 2017 में चीन ने डोकलाम संकट के समय यह आंकड़ा देने से मना कर दिया।
पिछले कुछ वर्षों में कम से कम तीन ऐसे अवसर आ चुके हैं जब चीन ने जानबूझ कर नाजुक मौकों पर भारत की ओर नदियों का पानी छोड़ा और इससे भारत में भारी तबाही मची। जून 2000 में अरुणाचल प्रदेश के दूसरी तरफ तिब्बती क्षेत्र में ब्रह्मपुत्र पर बने एक बांध का हिस्सा टूट गया और इससे निकले जल ने भारतीय क्षेत्र में भारी तबाही मचाई। उसके बाद जब भारत के केंद्रीय जल शक्ति आयोग ने इससे जुड़े तथ्यों का अध्ययन किया तो पाया गया कि चीनी बांध का टूटना एक पूर्व नियोजित साजिश ही थी।
रक्षा विशेषज्ञों की चिंता है कि भारत के साथ युद्ध की स्थिति में या किसी राजनीतिक विवाद में चीन ने यदि ब्रह्मपुत्र पर बनाए गए बांधों के पानी को वाटर-बम की तरह इस्तेमाल कर लिया तो भारत के कई सीमावर्ती क्षेत्रों में जानमाल और रक्षा तंत्र के लिए भारी खतरा पैदा हो जाएगा। यह बांध कितना बड़ा होगा कि इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि चीन में बने दुनिया के सबसे बड़े बांध- थ्री जॉर्ज की तुलना में इससे तीन गुना ज्यादा पनबिजली पैदा की जा सकेगी।
प्रश्न उठता है कि भारत के पास विकल्प क्या है? भारत चीन को रोक कैसे सकता है? दरअसल चीन भौगोलिक रूप से ऊपर स्थित है। नदियां वहां से नीचे की ओर आती हैं। भारत ने पड़ोसी देशों के साथ नदियों से संबंधित संधियों का अनुपालन किया है, जबकि चीन ने किसी भी तरह से अंतरराष्ट्रीय नदियों पर किसी भी देश के साथ कोई संधि नहीं की है। अर्थात वह जैसा चाहे, निर्णय ले सकता है। इसलिए मसला मूलत: ताकत के खेल पर अटक जाता है। समस्या की मूल जड़ तिब्बत को चीन द्वारा हड़पने और उसमें भारत की मंजूरी में है। निकट भविष्य में ऐसा प्रतीत नहीं होता कि भारत की तिब्बत नीति में कोई बड़ा परिवर्तन हो पाएगा। दूसरा तरीका क्वाड (अमेरिका, आॅस्ट्रलिया, जापान और भारत) का है, जिसके द्वारा चीन पर दबाव बनाया जा सकता है। भारत इस कोशिश में लगा हुआ भी है।
बांध बनाने की चीन की घोषणा ने भारत के लिए गंभीर चिंताएं पैदा कर दी हैं। यह बांध ब्रह्मपुत्र के बहाव को काफी हद तक प्रभावित करेगा। इसका सीधा असर अरुणाचल प्रदेश और असम की अर्थव्यवस्था और पर्यावरण पर होगा। इसके अलावा इसका प्रभाव भारत और बांग्लादेश के राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक संबंधों पर भी पड़ेगा, क्योंकि यह नदी भारत के बाद बांग्लादेश होते हुए बंगाल की खाड़ी में गिरती है। चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग 2035 तक दुनिया का मठाधीश बनने की घोषणा पहले ही कर चुके हैं। यह बांध भी 2035 तक बन कर तैयार होगा। यानी चीन की इस कवायद को एक सुनयोजित योजना के रूप में देखा जा सकता है।
चीन इक्कीसवीं शताब्दी को अपनी जागीर बनाना चाहता है। उसमे भारत के लिए कोई जगह नहीं है। उसकी वन बेल्ट वन रोड परियोजना योजना भी इसकी तस्दीक करती है। अपने बूते सैन्य रूप से तो भारत चीन की चुनौतियों का करारा जवाब दे सकता है और दिया भी है, लेकिन नदियों के मामले में भारत की परिधि सीमित है। भौगोलिक रूप से ऊपर होने का लाभ चीन के पास है। देखना यह है कि भारत चीन की इस बांध योजना को कैसे नियंत्रित कर पाता है?

