राकेश सिन्हा
लंदन से प्रकाशित मेडिकल जर्नल (पत्रिका) ने 8 मई को ‘इंडियाज कोविड इमरजंसी’ शीर्षक से संपादकीय में सीधा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर निशाना साधा। संपादकीय का स्वर घोर राजनीतिक था। आलोचना में कटुता हावी थी। हालांकि यह पहला अवसर नहीं है, जब इसके संपादकीय में भारत की वर्तमान सरकार पर सीधा प्रहार किया गया हो।

जब भारत की संसद ने धारा 370 को खत्म करने का प्रस्ताव पारित किया था तब यह लैसेंट के प्रधान संपादक रिचर्ड हॉर्टन और बेजिंग (चीन) में स्थित कार्यकारी संपादक हेलेना हुई वांग को नागवार गुजरा। 17 अगस्त 2019 को 356 शब्दों का ‘कश्मीर के भविष्य पर भय और अराजकता’ जैसा संपादकीय लिखा गया। धारा 370 को हटाने की आलोचना करते हुए कहा गया कि कश्मीर के लोगों के घाव भरने की जरूरत है जो दशकों पुराने विवाद से उत्पन्न हुआ है न कि ‘हिंसा और अलगाव के हवाले करने की।’ हाल का एक और प्रकरण है कोविड-19 की पहली लहर में मलेरिया की दवा कारगर सिद्ध हो रही थी। अमेरिका, ब्रिटेन, सहित दुनिया के देशों को भारत इसकी आपूर्ति कर रहा था। 22 मई 2020 में लैंसेट ने इस दवा की उपयोगिता पर लेख छापकर सवाल उठाया। इसने दुनिया के चिकित्सकों और शोधकर्ताओं को आश्चर्य में डाल दिया। यह सत्य का सीधा निषेध था।

दुनिया के 180 शोधकर्ताओं एवं चिकित्सकों ने लैंसेट की इस हरकत पर खुला पत्र लिखकर इस दवा की उपयोगिता और प्रामाणिकता को सामने रखा। उस झूठ को उजागर किया जिसमें इसे कोविड-19 के इलाज में अनुपयोगी बताते हुए इसका उपयोग करने वाले रोगी की मृत्यु होने की बात कही गई थी। अंतत: पत्रिका ने 5 जून 2020 को इस प्रायोजित शोध के लिए माफी मांगी। क्या यह मात्र चूक थी? आखिर लैंसेट ने ऐसा क्यों किया था? इसका उत्तर संपादकीय गलती में नहीं उसकी नीयत में है।

दरअसल, लैंसेट में कुछ वर्षों से थोड़ा परिवर्तन आया है। लेकिन हॉर्टन के मुख्य संपादक बनने के बाद तो स्पष्ट परिवर्तन दिखाई दिए। पत्रिका ने चिकित्सा क्षेत्र की शोध पत्रिका की मर्यादा को लांघने का काम किया है। राजनीति हावी हो रही है। हॉर्टन और 22 लोगों की संपादकीय टीम का पूर्वाग्रह, उनकी अपनी राय संपादकीय एवं अन्य आलेखों में अभिव्यक्त हो रही है।

स्वास्थ्य से जुड़ी नीतियों, उपचारों, सेवाओं, चिकित्सकों एवं दवाओं का संबंध राजनीति से है। पर यह राजनीति राज्य की नीतियों से अधिक है। दुनिया के सभी मेडिकल जर्नल अपनी लक्ष्मण रेखा को समझते और पालन करते हैं। लैंसेट अपवाद बनकर अपनी गिरावट की सूचकांक को आगे बढ़ा रहा है। यह इराक, सीरिया, कश्मीर पर राजनीतिक पत्रिका की तरह लिख रहा है।

लैंसेट की कलई इस कोविड काल में पूरी तरह खुल गई। कोरोना विषाणु के उद्गम को लेकर इस बात का प्रमाण चीन की वुहान प्रयोगशाला में कार्यरत ली पेनलिंयाग ने दिया था। 7 फरवरी 2020 को उसकी रहस्यमयी मृत्यु हो गई। चीन अलग-थलग पड़ा हुआ है लेकिन इस घड़ी में उसे लैंसेट का खुलकर साथ मिल रहा है। 25 जुलाई 2020 को इसने कोविड-19 और चीन : सीख और आगे का रास्ता नामक शीर्षक से संपादकीय लिखा। इसमें चीन को इस आरोप से निष्कलंकित करने का प्रयास किया गया। इसमें लिखा गया ‘चीन अपनी आंतरिक और विदेश नीति के संबंध में कई वैधानिक सवालों का सामना कर रहा है परंतु कोविड-19 मामले में इसे बलि का बकरा बनाना रचनात्मक कार्य नहीं है।’ 8 अक्तूबर 2020 को लैंसेट ने एक और लेख छापा कि चीन ने कोविड-19 पर सफलतापूर्वक नियंत्रण किया है।

बाद में चीन के ग्लोबल टाइम्स ने लैंसेट के प्रमाणपत्र देने वाले लेख पर प्रमुखता से समाचार बनाया। लैंसेट ने 19 फरवरी 2020 पर एक बयान में स्पष्ट तौर पर चीन का बचाव किया। इसमें कहा गया कि हम एकजुटता के साथ षड्यंत्र सिद्धांतों की निंदा करते हैं जो यह प्रतिपादित करता है कि कोविड-19 का स्वाभाविक उद्गम नहीं है।… हम आप सबको वुहान और चीन के चिकित्सकों, वैज्ञानिकों के समर्थन में खड़ा होने के लिए आह्वान करते हैं।

दो महीने बाद इससे 18 अप्रैल 2020 को फिर चीन का कोविड नियंत्रण करने के लिए महिमामंडन किया। अपने संपादकीय में पत्रिका ने लिखा कि चीन का कार्य न सिर्फ प्रेरक है बल्कि दूसरे देशों के लिए उत्साहवर्द्धक उदाहरण भी है। एक साल बाद लैंसेट ने दुनिया को चीन के साथ सहयोग करने की नसीहत दे डाली।

10 अप्रैल 2021 को चीन का कोविड-19 पर कदम : सहयोग का अवसर शीर्षक में लिखा गया कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चीन के संबंध में शंकाएं हैं। चीन विरोधी भावना बढ़़ी है। जब विज्ञान और स्वास्थ्य का सवाल आता है तब विरोध नहीं सहयोग अधिक परिणामकारक होता है। 18 जुलाई 2020 को हॉर्टन ने चीन फोबिया से निकलने का संदेश प्रसारित किया।

इससे पहले लैसेंट ने चीन के विस्तारवाद को दुनिया के लिए अवसर बताया। चीन की बेल्ट और रोड पहल 65 देशों, जिसमें दुनिया के 70 फीसद लोग रहते हैं और जहां दुनिया का 75 फीसद ऊर्जा संसाधन है, को नियंत्रण में करने वाली एक विस्तारवादी नवसाम्राज्यवादी परियोजना है। इसे सिल्क रोड भी कहा जाता है। चीन की मंशा इन देशों की स्वास्थ्य सेवाओं में निवेश और तत्पश्चात नियंत्रण करना है। लैंसेट ग्लोबल हेल्थ ने जुलाई 2018 में बड़़ा लेख लिखकर चीन के दुनिया के स्वास्थ्य के क्षेत्र में निवेश को उत्साहवर्द्धक बताया। लैंसेट ने इसमें पुनर्जागरण देखा। इसने 6 अप्रैल 2019 को इस पर एक संपादकीय भी लिखा।

लैंसेट ने 2010 में चीनी संस्करण बेजिंग से शुरू किया। हेलेना जो चीनी राज्य के उपक्रमों से जुड़ी रहीं, वे बेजिंग में हैं। वे कार्यकारी संपादक बनीं, जिनपर पूरे एशिया के लिए शोधकर्ताओं एवं सरकारी एजंसियों से संबंध बनाने के लिए जिम्मेदारी है।

इसी वर्ष चीन ने 150 मिलियन डॉलर चिकित्सा शोध में खर्च करने का निर्णय लिया। 27 फरवरी 2010 को लैंसेट ने संपादकीय लिखा कि चीन चिकित्सा शोध को बढ़ा रहा है। हेलेना कहती हैं कि लैंसेट चीन के लिए एकदम ठीक है। चीन के खुले मस्तिष्क होने का प्रमाण है।

लैंसेट की लंदन में वरिष्ठ कार्यकारी संपादक पाम दास ने 14 मई 2021 को सोशल मीडिया (ट्वीट) पर लिखा कि मोदी को अपना अहंकार व अभिमान छोड़ना चाहिए। इसके पूर्व उन्होंने 30 अप्रैल 2021 को द गार्डियन में भारत की छवि पर प्रश्न करने वाले अरुंधति राय के लेख को ट्विटर पर समर्थन दिया। लैंसेट पूरी तरह से चीन के अधीन हो चुकी है। वह एक राजनीतिक प्रवक्ता के रूप में चीन के स्वार्थ का साधन बनती जा रही है।

भारतीयों की त्रासदी है कि वे विदेशी संस्थाओं, समाचारपत्रों एवं विचारकों को निष्पक्ष और हितकारी मान बैठते हैं। यह गलती औपनिवेशिक मानसिकता और यूरोप केंद्रित सोच का प्रमाण है। कोई विदेशी पत्र-पत्रिका प्रशंसा करे या आलोचना उससे हम अभिभूत हो जाते हैं। यही स्थिति लैंसेट या न्यूयार्क टाइम्स के सम्बन्ध में होती है।

यही कारण है कि लैंसेट में जब नरेंद्र मोदी की आलोचना हुई, तब भारत के समाचार पत्रों ने सुर्खियां बनाईं जैसे महाभारत में कोई आकाशवाणी हुई हो। मुख्य प्रतिपक्ष की पार्टी कांग्रेस ने तो लैंसेट के इस संपादकीय को ऐसे ट्वीट किया जैसे दासों के बीच दासों के स्वामी की आवाज आई हो। इसने लिखा कि दुनिया की सबसे बेहतरीन चिकित्सा पत्रिकाओं में एक लैंसेट भी विश्वास नहीं करती है कि मोदी सरकार ने कोरोना विषाणु की पहली लहर में जीत हासिल कर ली थी।

भारत के लिए सोनिया गांधी का बोलना महत्त्वपूर्ण हो सकता है लेकिन हॉर्टन के संपादकीय को उसके लिए प्रमाण बनाना विचारों की गुलामी का प्रतीक है। यही कारण है कि लैंसेट में जब कांग्रेस लैसेंट की चीनी चरित्र से या तो अनभिज्ञ है या चीन से उसे साठगांठ से परहेज नहीं है।
-लेखक राज्यसभा सदस्य हैं। (विचार निजी)