आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर होना महिलाओं की बहुत-सी परेशानियों का हल है। उनके आत्मविश्वास का आधार है। सुरक्षित जीवन जीने और अपने आत्मसम्मान से समझौता न करने के लिए यह सबसे जरूरी है। ऐसे में तकनीकी क्षेत्रों में महिला श्रमशक्ति की बढ़ती भागीदारी ने उनके जीवन के इस सबसे अहम पक्ष को संबल दिया है।

बीते कुछ बरसों में तकनीक के विस्तार ने देश की आधी आबादी के कामकाजी संसार में तरक्की के नए मार्ग खोले हैं। तकनीकी क्षेत्रों में महिलाओं की बढ़ती संख्या इस बात की पुष्टि करती है। साथ ही बड़ी संख्या में युवतियों के अध्ययन के लिए तकनीक से जुड़े विषयों को चुनना भी यह बताता है कि भविष्य में महिलाएं इस क्षेत्र में बेहतर अवसर मिलने के प्रति आश्वस्त हैं।

हालांकि जीवन के हर मोर्चे पर तकनीक के बढ़ते दखल के चलते दुनिया भर में स्त्रियां इस क्षेत्र का हिस्सा बन रही हैं, पर भारत के सामाजिक-पारिवारिक परिवेश में महिलाओं को मिल रहे नए विकल्प विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं। दरअसल, हमारे यहां कामकाजी महिलाओं के लिए पेशेवर जिम्मेदारियों के अलावा भी दायित्वों और आम जीवन से जुड़ी समस्याओं की एक लंबी सूची है।

घर-परिवार की देखभाल और बच्चों की परवरिश के अलावा सामाजिक संबंधों के निर्वहन की जवाबदेही भी स्त्रियों के ही हिस्से आती है। ऐसे में तकनीकी क्षेत्र से जुड़ी नौकरियों में त्वरित संवाद, घर से काम करने की सुविधा और समय विशेष के मुताबिक अपना काम निपटाने की छूट मिलना बहुत मददगार बन रहा है।

यही वजह है कि तकनीकी दुनिया में कामकाजी महिलाएं न केवल अहम भागीदारी निभा रही हैं, बल्कि सक्रिय रूप से नवाचार को भी प्रोत्साहन दे रही हैं। बीते कुछ बरसों में कई नवोदित स्टार्टअप भी महिलाओं ने शुरू किए हैं। ‘नेशनल सेंटर फार वुमन ऐंड इनफार्मेशन टेक्नोलाजी’ की ताजा रिपोर्ट के मुताबिक तकनीक उद्योग के कार्यबल में महिलाओं की छब्बीस प्रतिशत हिस्सेदारी है। पिछले पांच वर्षों में तकनीक की दुनिया में महिलाओं की संख्या में पांच फीसद की बढ़ोतरी हुई है।

गौरतलब है कि कोरोना महामारी के दौर में मिली घर से काम करने की सुविधा से न केवल महिलाओं, बल्कि नियोक्ताओं को इसकी अहमियत समझ आई है। इस वैश्विक संकट के बाद घर से काम करने की संस्कृति को दुनिया के हर हिस्से में अपनाया गया। तकनीकी क्षेत्रों से जुड़ी भारतीय महिलाओं के लिए भी अब यह सुविधा बहुत कुछ आसान बना रही है। गौरतलब है कि हमारे यहां मातृत्व की जिम्मेदारी, तबादला या कामकाजी सम्मेलनों का हिस्सा बनने के लिए आए दिन दूसरे शहर जाने जैसी बातें महिलाओं के श्रमबल से बाहर होने की अहम वजहें रहीं हैं। ऐसे में तकनीक ने इस भागमभाग को बहुत हद तक कम किया है।

मौजूदा वक्त में कामकाजी महिलाएं तकनीकी दुनिया में कार्यबल का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा बन चुकी हैं। कभी पूरी तरह पुरुष प्रधान रहे तकनीक के क्षेत्र में स्त्रियों की बढ़ती भागीदारी कई मायनों में अहम है। हाल में जारी ग्रांट थार्नटन रिपोर्ट के मुताबिक हमारे यहां पांच प्रतिशत महिलाओं ने हमेशा के लिए ‘वर्क फ्राम होम’ चुना है।

करीब पांच प्रतिशत महिलाएं ‘फ्लेक्सिबल वर्क’ यानी अपने समय और सुविधा के मुताबिक काम कर रही हैं। अपनी मर्जी से दफ्तर या घर से काम करने के विकल्प का चुनाव उनके लिए बहुत कुछ आसान बना रहा है। देखने में आ रहा है कि घर से काम करने की सुविधा से दूसरी और तीसरी श्रेणी के शहरों में रहने वाली महिलाओं की महानगरों में मौजूद बड़ी कंपनियों में भी हिस्सेदारी बढ़ी है। इसके चलते दूर-दराज के क्षेत्रों में कामकाजी महिलाओं की संख्या बढ़ रही है। घर-परिवार की जिम्मेदारियों के साथ संतुलन साधते हुए आगे बढ़ने की ऐसी परिस्थितियां आने वाली पीढ़ियों के लिए भी नई राह खोलने वाली हैं।

दरअसल, हमारे सामाजिक-पारिवारिक ढांचे में महिलाओं को दायित्वों का तानाबाना आज भी मजबूती से बांधे हुए है। इन जिम्मेदारियों में संतुलन बनाए रखने से जुड़ी कई उलझनें कामकाजी दुनिया में उनकी रफ्तार कम करती हैं। हालांकि अब घरेलू आय में उनके योगदान की अहमियत भी समझी जाने लगी है, पर मानसिकता से जुड़ी मुश्किलें बदस्तूर कायम हैं। ऐसे में तकनीकी दुनिया ने उनके जीवन को सहज बनाया है।

नतीजतन, तकनीकी शिक्षा और कामकाजी दुनिया में महिलाओं और बेटियों की संख्या बढ़ रही है। ‘नेशनल स्टैटिस्टिकल आफिस’ के आवधिक श्रमबल सर्वेक्षण के अनुसार, भारत में 2017-18 में 17.5 प्रतिशत रही महिला श्रमबल की भागीदारी में 2020-21 तक पच्चीस प्रतिशत बढ़ोतरी हुई है। हालांकि सूचना प्रौद्योगिकी के इस युग में हर क्षेत्र में महिलाओं की मौजूदगी बढ़ी है, पर कृत्रिम मेधा जैसे बिल्कुल नए क्षेत्र में भी बाईस फीसद विशेषज्ञ महिलाएं हैं। अधिकतर अध्ययन बताते हैं कि आने वाले समय में यह भागीदारी और बढ़ेगी।

नवाचार और तकनीक की दुनिया के हर क्षेत्र में स्त्रियां उल्लेखनीय भूमिका में होंगी। पिछले वर्ष ‘आई डिलाइट’ कंपनी की एक रिपोर्ट में 2022 के अंत तक दुनिया भर की तकनीक कंपनियों में महिलाओं की भागीदारी 33 फीसद तक होने की उम्मीद जताई गई थी। इस हिस्सेदारी में 2023 में आठ प्रतिशत का इजाफा संभव है।

2022 की ‘हुरून इंडिया’ की रिपोर्ट के मुताबिक निजी क्षेत्र की नामी-गिरामी पांच सौ तकनीकी कंपनियों में 11.6 लाख महिलाएं कार्यरत हैं। साथ ही हमारे यहां ‘स्टेम’ शिक्षा में भी लड़कियों को बढ़ावा दिया जा रहा है। ‘स्टेम’ का अर्थ साइंस, टेक्नोलाजी, इंजीनियरिंग और मैथ्स विषयों से है। आंकड़ों के अनुसार 1980 में देश में इंजीनियरिंग की सभी डिग्रियों में महिलाओं की हिस्सेदारी दो प्रतिशत से भी कम थी। चार साल पहले ‘आल इंडिया सर्वे आफ हायर एजुकेशन’ की रिपोर्ट में सामने आया था कि इंजीनियरिंग और प्रौद्योगिकी क्षेत्र की 31 प्रतिशत डिग्रियां महिलाओं द्वारा ली गई थीं।

निस्संदेह ऐसे आंकड़े बदलती सोच और बढ़ती महिला भागीदारी की बानगी हैं। कुछ समय पहले संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंतोनियो गुतारेस ने भी कहा था कि ‘विज्ञान में ज्यादा संख्या में लड़कियां और महिलाएं, बेहतर विज्ञान के समान हैं। महिलाएं और लड़कियां शोध में विविधता साथ लेकर आती हैं, विज्ञान विशेषज्ञों के समुदाय का विस्तार करती हैं।

साथ ही विज्ञान एवं तकनीक में हर किसी के लिए नया परिवेश भी बनाती हैं, जिससे हर किसी को लाभ होता है।’ यकीनन, महिलाओं की वैज्ञानिक सोच, तकनीकी समझ, समाज और परिवार से जुड़े हर पहलू पर सकारात्मक असर डालती है। अपनी देहरी तक सिमटी जिंदगी में भी वे संसार भर से जुड़ पाती हैं। हमारे देश के परिप्रेक्ष्य में देखें तो यह और अहम हो जाता है।

दरअसल, आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर होना महिलाओं की बहुत-सी परेशानियों का हल है। उनके आत्मविश्वास का आधार है। सुरक्षित जीवन जीने और अपने आत्मसम्मान से समझौता न करने के लिए यह सबसे जरूरी है। ऐसे में तकनीकी क्षेत्रों में महिला श्रमशक्ति की बढ़ती भागीदारी ने उनके जीवन के इस सबसे अहम पक्ष को संबल दिया है।

समझना मुश्किल नहीं कि महिलाओं का आर्थिक रूप से सशक्त होना समग्र समाज को सशक्त बनाता है। भावी पीढ़ियों के लिए बदलाव का आधार बनाता है। स्त्रियों की निर्णयकारी क्षमता को बल देता है। नेतृत्वकारी भूमिका में आने का मार्ग सुझाता है। अपेक्षाओं और उपेक्षाओं के परिवेश वाले पारिवारिक ढांचे में उनके अस्तित्व को पुख्ता पहचान दिलाता है।

ऐसे में तकनीकी संसार में बढ़ते महिला श्रमबल ने स्त्रियों के लिए नए मार्ग खोले हैं। सुखद यह भी है कि पारंपरिक रंग-ढंग वाले भारतीय समाज में इस नए बदलाव को आत्मसात करते हुए स्त्रियां आगे भी बढ़ रही हैं। समय के साथ बदलती दुनिया में तकनीक से जुड़े बदलावों को सीखने, समझने और स्वीकार करने की इस सहज सोच ने महिलाओं का जीवन बदल दिया है। यही वजह है कि आधी आबादी ने तकनीक की दुनिया में भी तरक्की का आसमान छुआ है। डिजिटल दुनिया में उनकी यह दस्तक भविष्य का खाका सामने रखती है।