दुनिया के कई देशों में बहुत से लोग उड़न तश्तरियों के अस्तित्व पर भरोसा करते हैं। आकाश में उड़ती किसी अज्ञात वस्तु (यूएफओ) को उड़न तश्तरी कहा जाता है। सालों से आसमान में उड़न तश्तरियां देखे जाने का दावा किया जाता रहा है। पिछले दिनों एक बार फिर अमेरिका ने यूएफओ देखे जाने का दावा किया। दरअसल, पेंटागन ने एक वीडियो जारी कर एलियन और उड़न तश्तरियों (यूएफओ) के देखे जाने का दावा किया था। बताया जा रहा है कि इस वीडियो को अमेरिकी नौसेना के पायलटों ने बनाया है। हालांकि यह वीडियो साल 2004 और 2015 के बताए जा रहे हैं। वीडियो नए नहीं, बल्कि पुराने हैं और इनमें से दो को न्यूयॉर्क टाइम्स ने 2017 में अपनी खबर में प्रकाशित किया था। 2019 में पेंटागन ने इसकी पुष्टि की और पूरी तरह से इनकी समीक्षा करने के बाद जारी किया था।

आकाश में देखी जाने वाली अस्पष्ट चीजें हमेशा से लोगों के आकर्षण का केंद्र रही हैं। इसीलिए यूएफओ की अनिश्चितता भी आकर्षक है। इनमें बाकी दुनिया एलियन और सरकार से जुड़ी कई ऐसी बातें शामिल हैं, जो इन्हें बेहद दिलचस्प बनाती हैं। हालांकि वक्त के साथ इन अजीबो-गरीब धारणाओं से भी पर्दा उठता गया। लेकिन इसके बाद साल 2017 में पेंटागन ने आखिरकार स्वीकार किया कि वह काफी वक्त से यूएफओ की जांच करने का कार्यक्रम चला रहा था, जिसे बंद कर दिया गया है। आज अमेरिकी नौसेना इन अस्पष्ट चीजों को यूएफओ या उड़न तश्तरी के बजाय अनआइडेंटिफाइड एरियल फेनॉमिना (यूएएफ) कहना पसंद करती हैं। यानीन ऐसी अज्ञात वस्तुएं ब्रह्मांड में विचरण करती रहती हैं।

भारत के भी कई शहरों में उड़न तश्तरियों को उड़ते हुए देखे जाने की खबरें जब तब आती रही हैं। 29 अक्तूबर 2008 को पूर्वी कोलकाता में आसमान में तेजी से जाती एक बड़ी चीज दिखी थी। इसमें से कई रंग निकलते दिखाई दिए। इसी तरह 20 जून 2013 को चेन्नई में कुछ लोगों ने रात में दक्षिण से उत्तर की तरफ जाती एक चमकदार चीज देखने का दावा किया था। इसके बाद इसी साल चार अगस्त को भारतीय सेना के जवानों ने लद्दाख में अज्ञात चीजें आसमान में देखीं। लेकिन इन घटनाओं का कुछ पता न चल सका। 2014 में लखनऊ में उड़न तश्तरी देखे जाने की घटना सामने आई थी।

खगोलशास्त्री इसे यूएफओ मान रहे थे। सिर्फ हाल के वर्षों में ही नहीं, सन 1951 में नई दिल्ली में सिगार के आकार की वस्तु देखी गई थी, जो करीब बीस फुट लंबी थी। यह वस्तु कुछ ही पलों में ओझल हो गई थी। कई चश्मदीदों के अनुसार इन अज्ञात उड़ती वस्तुओं के बाहरी आवरण पर तेज प्रकाश होता है और ये या तो अकेले घूमती हैं या एक प्रकार से लयबद्ध होकर और इनमें बहुत गतिशीलता होती है। ये उड़न तश्तरियां बहुत छोटे से लेकर बहुत विशाल आकार तक होती हैं।

उड़न तश्तरी शब्द 1940 के दशक में सामने आया था और ऐसी वस्तुओं को दशार्ने या बताने के लिए प्रयुक्त किया गया था, जिनके उस दशक में बहुतायत में देखे जाने के मामले प्रकाश में आये। तब से लेकर अब तक इन अज्ञात वस्तुओं के रंग-रूप में बहुत परिवर्तन आया है, लेकिन उड़न तश्तरी शब्द अभी भी प्रयोग में हैं और ऐसी उड़ती वस्तुओं के लिए प्रयुक्त होता है जो दिखने में किसी तश्तरी जैसी दिखाई देती हैं और जिन्हें धरती की आवश्यकता नहीं होती।

उड़न तश्तरियों के अस्तित्व को आधिकारिक तौर पर दुनिया में मान्यता नहीं दी गई है। ऐसा माना जाता है कि इन उड़ती वस्तुओं का संबंध दूसरी दुनिया से है क्योंकि इनके संचालन की असाधारण और प्रभावशाली क्षमता मनुष्यों द्वारा प्रयुक्त किसी भी उपकरण से बिल्कुल मेल नहीं खाती, चाहे वह सैन्य उपकरण हो या नागरिक, वह बिल्कुल अलग दिखती है।

रूस के इतिहास में 1989 का साल काफी दिलचस्प रहा। उस साल वहां कई बार यूएफओ देखे जाने की खबरें आई थीं। सबसे पहले 14 अप्रैल के दिन चेरेपोवैस्क के इवान वेसेलोवा ने बहुत बड़े आकार की यूएफओ देखने का दावा किया। फिर छह जून के दिन कोनेटसेवो में बहुत से बच्चों ने ऐसा दावा किया। इसके बाद 11 जून के दिन वोलागड़ा की एक महिला ने सत्रह मिनट तक उड़न तश्तरी देखने की बात कही। एक और मामले में करीब पांच सौ लोगों ने ऐसा दावा किया।

सबसे ज्यादा रोमांचक किस्सा 17 सितंबर 1989 का है जब वोरोनेज के एक पार्क में बहुत बड़ा लाल रंग का अंडाकार यान उतरा था। कुछ देर बाद यान में से दो एलियन निकले। एक करीब बारह से चौदह फीट लंबा था और उसकी तीन आंखें बताई गई थीं। दूसरा रोबोट जैसा लग रहा था। पार्क में खेल रहे बच्चे उसे देखकर चीखने लगे तो उसने एक बच्चे पर लाइट की बीम छोड़ी और बच्चा लकवे जैसी स्थिति में पहुंच गया। उस जगह की गहन जांच करने पर वहां मिट्टी में विकिरण के निशान मिले थे। वहां फास्फोरस की मात्रा ज्यादा पाई गई। वैज्ञानिकों के अनुसार यूएफओ का वजन कई टन था।

ऐसी ही एक और पुरानी घटना है जो उड़न तश्तरियों के अस्तित्व पर प्रकाश डालती है। जून,1947 में एक अमेरिकी कारोबारी कैनेथ अर्नाल्ड ने अपने हेलिकाप्टर से वाशिंगटन की नजदीकी पहाड़ियों के ऊपर अर्ध चंद्राकार नौ अज्ञात वस्तुएं आकाश में उड़ती देखी थीं। अगले ही दिन अखबारों की सुर्खियां थीं- अमेरिका में उड़न तश्तरी देखी गई। इस घटना के दो दशक बाद स्टेनफोर्ड यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर पीटर स्टार्क और प्रो. वोन आर. ईशलमैन के नेतृत्व में एक सम्मेलन आयोजित किया गया था। इस सम्मेलन में उन आठ खगोल वैज्ञानिकों को बुलाया गया था जिन्होंने उड़न तश्तरी के बारे में ठोस दावे किए थे।

हालांकि सम्मेलन के अंत में यही रिपोर्ट जारी की गई कि ऐसी अनोखी घटनाओं के बारे में और अधिक अध्ययन करने की आवश्यकता है। इससे पहले भी उड़न तश्तरियों पर अमेरिका के साथ ही रूस, स्वीडन, फ्रांस, बेल्जियम, ब्राजील, चिली, मैक्सिको आदि देशों में अध्ययन किए गए थे। स्पेन के वैज्ञानिकों ने तो अपने अध्ययन में ऐसे करीब छह हजार दावों को तर्क की कसौटी पर परखा और अमेरिका को इस मामले में मनगढ़ंत अफवाहें फैलाने का दोषी भी माना। हालांकि ऐसे अध्ययन जारी रहे।

विज्ञान की कसौटी पर उड़न तश्तरी अब भी खरी नहीं उतरी है। तेल अवीव यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर कोलिन प्राइस उड़न तश्तरी को प्राकृतिक परिघटना के रूप में देखते हैं। उन्होंने अपनी अध्ययन रिपोर्ट में कहा भी था कि दरअसल उड़न तश्तरी एक प्राकृतिक परिघटना है। उन्होंने इसका नाम स्प्राइट यानी जादुई परी रखा था।

हालांकि वर्ष 1989 में दुर्घटनावश स्प्राइट की परिघटना को रिकार्ड कर लिया गया था। उस समय एक खगोल विज्ञानी ने तारों का अध्ययन करते समय अपनी शक्तिशाली दूरबीन से जुड़े कैमरे में कौतूहलपूर्ण क्षणिक घटना को कैद कर लिया था। बाद में प्रो. प्राइस और उनकी टीम ने उस पर गंभीर अध्ययन किया तो पाया कि धरती से पचास से एक सौ बीस किलोमीटर की दूरी पर इस तरह की घटनाएं खास परिस्थितियों में लगातार होती रहती हैं।

वैज्ञानिक मानते हैं कि खास प्राकृतिक घटनाओं की वजह से ऐसा दिखाई देता है। आकाश में काफी ऊंचाई पर बनने वाले शक्तिशाली चक्रवातों की वजह से विद्युतीय तरंगें पैदा होती हैं, जो विमानों और राडारों को प्रभावित करती हैं। कई बार तो इन परिस्थितियों में व्यक्ति शारीरिक एवं मानसिक रूप से भी प्रभावित हो जाता है। ऐसे में चक्रवात जैसी प्राकृतिक घटनाएं भी चमत्कारिक लग सकती है।