सुशील कुमार सिंह
फिलहाल सौर ऊर्जा भविष्य की केवल आवश्यकता नहीं, अनिवार्यता होगी। मगर यह पूरी तरह सक्षम और सशक्त तभी हो पाएगी, जब सभी तक इसकी पहुंच बन सकेगी।भारत भौगोलिक रूप से उष्ण कटिबंधीय देशों में शुमार है, जहां साल में तीन सौ दिन धूप खिली रहती है। जाहिर है, इससे सौर ऊर्जा के मामले में भारत मजबूत देश बन सकता है। हालांकि अभी इस दिशा में उतने पुख्ता इंतजाम नहीं किए गए हैं, जितने होने चाहिए। मगर पारंपरिक माध्यमों से बिजली पैदा करना लगातार महंगा होता जा रहा है, इसलिए सौर ऊर्जा एक बेहतर विकल्प बन कर उभर रही है।
गौरतलब है कि 2035 तक देश में सौर ऊर्जा की मांग सात गुना बढ़ने की संभावना है। भारत की आबादी कुछ ही समय में चीन से अधिक हो जाएगी। ऐसे में दुनिया के सबसे बड़े आबादी वाले देश को बिजली की जो जरूरत होगी उसमें सौर ऊर्जा कहीं अधिक प्रभावशाली रहेगी। तथ्य यह भी है कि पर्यावरण के लिहाज से भी सौर ऊर्जा कहीं बेहतर विकल्प है।
भारत की ऊर्जा मांग का एक बड़ा हिस्सा तापीय ऊर्जा द्वारा संभव होता है, जिसकी निर्भरता जीवाष्म र्इंधन पर है। वैसे विश्व भर में केवल ऊर्जा उत्पादन से प्रति वर्ष लगभग बीस अरब टन कार्बन डाईआक्साइड और अन्य दूषित तत्त्व निकलते हैं, जो जलवायु परिवर्तन के लिए जिम्मेदार हैं। जाहिर है कि सौर ऊर्जा कार्बन उत्सर्जन में कटौती में भी मदद करती है। सौर ऊर्जा, ऊर्जा का एक ऐसा स्वच्छ रूप है, जो पारंपरिक ऊर्जा स्रोतों का बेहतरीन विकल्प है।
विकासशील अर्थव्यवस्था वाला भारत ऊर्जा के कई विकल्प आजमाता रहा है। औद्योगीकरण, शहरीकरण समेत कृषि और रोजमर्रा की बिजली से जुड़ी आवश्यकताओं से भी भारत को नई-नई चुनौतियां मिलती रही हैं। उच्च जनसंख्या घनत्व के चलते जहां एक ओर सौर संयंत्र स्थापित करने के लिए भूमि की उपलब्धता कम है, वहीं परंपरागत ऊर्जा से जरूरत भर की आपूर्ति होना भी संभव नहीं है।
फिर सौर ऊर्जा केवल एक सुखद पहलू नहीं है, इससे उत्पन्न कचरा भविष्य की चुनौती हो सकता है। फिलहाल भारत ई-कचरा, प्लास्टिक कचरा समेत कई कचरों के निपटान को लेकर मुश्किलों में फंसा है। अनुमान है कि 2050 तक भारत में सौर कचरा 18 लाख टन के आसपास होने की संभावना है। इन सबके अलावा भारत को अपने घरेलू लक्ष्यों को प्राथमिकता देने और विश्व व्यापार संगठन की प्रतिबद्धताओं के बीच भी चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है।
फिलहाल सौर ऊर्जा के इस्तेमाल को बढ़ावा देने के लिए केंद्र और राज्य सरकारें विभिन्न योजनाएं भी चला रही हैं। बहुत कम दाम पर सोलर पैनल उपलब्ध कराए जा रहे हैं। सौर संयंत्र लगाने पर सबसिडी का भी प्रावधान है। पर इस बात को भी समझना होगा कि भारत में हर पांचवां व्यक्ति गरीबी रेखा के नीचे है। झुग्गी-झोपड़ियों से लेकर कच्चे मकानों की तादाद भी यहां बहुतायत में है। 2011 की जनगणना के अनुसार देश में साढ़े छह करोड़ लोग झुग्गी-झोपड़ियों में रहते हैं और करोड़ों बेघर हैं। ऐसे में सोलर पैनल लगाना अपने तरह की एक चुनौती है। भारत सरकार ने 2022 तक दो करोड़ पक्के मकान देने का वादा किया था। अगर ये मकान उपलब्ध हो जाएं तो शायद वे सोलर पैनल लगाने के काम भी आएंगे।
सरकार ने 2022 के अंत तक नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता का जो लक्ष्य 175 गीगावाट निर्धारित किया है। इसमें पवन ऊर्जा साठ गीगावाट, बायोमास दस गीगावाट और जल विद्युत परियोजना महज पांच गीगावाट शामिल है, जबकि इसमें सौ गीगावाट अकेले सौर ऊर्जा का है। हालांकि जिस दर से बिजली की आवश्यकता बढ़ रही है, उसमें समय के साथ कई गुना बढ़ोतरी करते रहना होगा। मगर यह तभी संभव है, जब सोलर पैनल सस्ते और टिकाऊ हों।
इसके साथ ही अधिक से अधिक लोगों की छतों तक ये पहुंच सकें और सोलर पार्क भी बढ़ाए जाएं। चीन की कंपनियों के साथ भारत की वस्तुओं की हमेशा स्पर्धा रही है। भारतीय घरेलू निर्माता तकनीकी और आर्थिक रूप से उतने मजबूत नहीं हैं, इसलिए दूसरे देशों के बाजार पर निर्भरता भी घटानी होगी। सौर ऊर्जा क्षेत्र में रोजगार के नए अवसर की अनेक संभावनाएं मौजूद हैं। आंकड़े बताते हैं कि एक गीगावाट सौर ऊर्जा उत्पादन से प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से लगभग चार हजार लोगों को रोजगार मिल सकता है। इसके अलावा इसके संचालन और रखरखाव में भी रोजगार के अवसर ढूंढ़े जा सकते हैं।
जहां 2035 तक वैश्विक सौर क्षमता में भारत की कुल हिस्सेदारी आठ फीसद होने की संभावना है, वहीं तीन सौ तिरसठ गीगावाट की क्षमता के साथ वैश्विक अगुआ के रूप में उभरने की संभावना भी है। अंतरराष्ट्रीय सौर ऊर्जा गठबंधन, जिसका शुभारंभ भारत और फ्रांस द्वारा 30 नवंबर, 2015 को पेरिस में किया गया था। उसकी पहल भारत ने की थी। उस वक्त पेरिस जलवायु सम्मेलन चल रहा था। इस संगठन में एक सौ बाईस देश हैं, जिनकी स्थिति कर्क और मकर रेखा के मध्य है। सूर्य साल भर इन्हीं दो रेखाओं के बीच सीधे चमकता है, जिससे धूप और प्रकाश की मात्रा सर्वाधिक देखी जा सकती है। हालांकि विषुवत रेखा पर यही धूप और ताप अनुपात में सर्वाधिक रहता है।
भारत में राजस्थान के थार मरुस्थल में देश की सर्वोत्तम सौर ऊर्जा परियोजना प्रारंभ की गई है। सौर ऊर्जा मिशन के लक्ष्य पर नजर डालें तो 2022 तक बीस हजार मेगावाट क्षमता वाले सौर ग्रिड की स्थापना के अलावा दो हजार मेगावाट वाली गैर ग्रिड के सुचारु संचालन की नीतिगत योजना दिखती है। इसी मिशन में 2022 तक दो करोड़ सौर बत्तियों को भी शामिल किया गया है। ई-चार्जिंग स्टेशनों की स्थापना शुरू कर दी गई है।
यह सौर ऊर्जा से चलने वाले वाहनों के लिए एक बेहतरीन कदम है। गौरतलब है कि भारत में वाहन उद्योग ने भी सौर ऊर्जा को तेजी से अपनाना शुरू कर दिया है और ऐसे वाहन बनाए जा रहे हैं, जिन्हें पेट्रोल, डीजल के बजाय सौर ऊर्जा से चलाया जा सके। किसी भी योजना को अंजाम देने के लिए कौशल विकास एक अनिवार्य पक्ष है। किसी भी देश का कुशल मानव संसाधन विकासात्मक और सुधारात्मक योजना के लिए प्राणवायु की भांति होता है। भारत में जहां इसकी घोर कमी है, वहीं लागत को लेकर भी चुनौती रही है।
सौर ऊर्जा की औसत लागत प्रति किलोवाट एक लाख रुपए से अधिक है, जो सभी के बूते में नहीं है। भारत में ढाई लाख पंचायतें और साढ़े छह लाख गांव हैं, जहां खंभा और तार कमोबेश पहुंचे तो हैं, मगर उनमें बिजली कम ही दौड़ती है। ग्रामीण उद्यमिता और वहां के मझोले, छोटे और लघु उद्योग बिजली की कमी से जूझते हैं, जिसके चलते कई कुशलताएं धरी की धरी रह जाती हैं और शहरों की ओर पलायन उनकी मजबूरी बन जाती है। गांवों में डेयरी उद्योग से लेकर कई ऐसे दस्तकारी से जुड़े कारोबार हैं, जिनमें सौर ऊर्जा बेशकीमती योगदान कर सकता है और गांव आत्मनिर्भर बन सकते हैं।
वैसे देखा जाए तो भारत ने सौर ऊर्जा के क्षेत्र में कुछ हद तक कमाल भी किया है। चालू वित्तवर्ष की पहली छमाही में सौर ऊर्जा उत्पादन के चलते 1.94 करोड़ टन कोयले की बचत और 4.2 अरब डालर के अतिरिक्त खर्च से मुक्ति मिली है। सौर ऊर्जा क्षमता से संपन्न शीर्ष दस अर्थव्यवस्थाओं में पांच एशिया महाद्वीप के देश हैं, जिनमें भारत, चीन, जापान, दक्षिण कोरिया और वियतनाम शामिल हैं। फिलहाल सौर ऊर्जा भविष्य की केवल आवश्यकता नहीं, अनिवार्यता होगी। मगर यह पूरी तरह सक्षम और सशक्त तभी हो पाएगी, जब सभी तक इसकी पहुंच बन सकेगी।