आज से एक वर्ष पूर्व पेरिस का एफिल टावर दिखाई देना मुश्किल हो गया था, क्योंकि शहर में वायु प्रदूषण की बढ़ती गहनता ने पारदर्शिता (दृश्यता) लगभग खत्म कर दी थी। इससे थोड़ी दूरी पर देखना और दिखाना आसान नहीं रह गया था। पेरिसवासियों के लिए यह एक डरावना दृश्य था। उन्होंने बेजिंग, दिल्ली तथा दूसरे शहरों के बारे में ऐसी खबरें सुन रखी थीं, लेकिन खुद उनके शहर में उनके साथ ऐसा हादसा होगा, कभी सोचा नहीं था। इसका प्रभाव पेरिस के आसपास के शहरों तक फैल गया। फ्रांस के पर्यावरण व स्वास्थ्य मंत्री ने बुजुर्गों, गर्भवती महिलाओं, सांस की बीमारी से पीड़ित व्यक्तियों और छोटे बच्चों को इस प्रदूषित वायु से बचने के लिए सतर्क किया। सरकार ने साइकिल शेयरिंग, इलेक्ट्रिक कार और सार्वजनिक परिवहन के इस्तेमाल का आग्रह किया तथा शहर में सम-विषम योजना लागू कर दी गई।

यह तीसरी बार है जब पेरिस में ऐसी आपातकालीन स्थिति का सामना करना पड़ा है। इसके पूर्व 1997 और 2014 में ऐसी ही हालत पैदा हुई थी। तब से नगर निकाय के द्वारा आपातकालीन उपाय के तौर पर सम-विषम, कार-फ्री दिवस और सार्वजनिक परिवहन के इस्तेमाल की अपील की जाती रही है। इसके बावजूद शहर में वायु प्रदूषण, सड़क जाम और सड़क दुर्घटनाओं में कोई दीर्घकालिक सुधार होता हुआ नहीं दिख रहा था।

इस बार जब फिर ऐसी हालत हुई और पेरिस की मेयर ऐनी हिडैल्गो ने आपातकालीन उपाय के रूप में वही पुराना तौर-तरीका लागू किया, तब फ्रांस के पारिस्थितिकी मंत्री सेगोलेने रॉयल ने इसका सार्वजनिक विरोध किया और कहा कि ‘‘एक लंबी योजना के बगैर शहर के परिवहन, वायु-प्रदूषण, सड़क जाम और दूसरी समस्याओं से निजात पाना संभव नहीं है। ऐनी हिडैल्गो वास्तव में ‘प्रियल ट्रांसपोर्ट पालिसी’ लागू करने में विफल रही हैं, इसीलिए पुराने कार्यक्रम को बार-बार दुहरा रही हैं।’’ गौरतलब है कि पेरिस की मेयर सुश्री ऐनी हिडैल्गो और फ्रांस की पारिस्थितिकी मंत्री सेगोलेने रॉयल, दोनों ही वहां की सोशलिस्ट पार्टी की सदस्य हैं, लेकिन इस मुद््दे पर दोनों एक-दूसरे के खिलाफ खड़ी हैं। पेरिस की मेयर ने कहा कि पारिस्थितिकी मंत्री इसे राजनीतिक रंग दे रही हैं, जबकि पारिस्थितिकी मंत्री का कहना था कि मेयर अपनी असफलता को ढंकने की कोशिश में लगी हैं।

इन दोनों के बीच बहसों के बावजूद पेरिस के लोगों का दबाव इतना बढ़ा कि दोनों को एक साथ आना पड़ा। पेरिस आजकल जहां इस तात्कालिक समस्या से निजात पाने के लिए सक्रिय है वहीं दूरगामी प्रभाव वाली योजनाओं पर भी वहां तीव्रता से काम शुरू कर दिया गया है। पेरिस को लोग ‘रोशनी का शहर’ भी कहते हैं। शहर की वास्तुकला में इसकी झलक मिलती है, खासकर शहर के हृदय स्थल में। शहर में प्राकृतिक रोशनी अबाध रूप से आती रहे इसके लिए बहुमंजिला इमारतें बनाने पर रोक है। लेकिन एफिल टावर इसका अपवाद है। शहर में ‘खुली सार्वजनिक जगह’ इस शहर के खुलेपन का हरदम अहसास कराती है जिसे ‘पेरिस स्क्वायर्स’ के रूप में याद किया जाता रहा है। वहां हरी घास, खुली हवा और रोशनी हर नगरवासी के लिए सुलभ रही हैं। कालांतर में मोटरवाहन इन ‘सार्वजनिक स्थानों’ को अपने कब्जे में लेते गए और खुले सार्वजनिक स्थान लुप्तप्राय होते गए।

राजनीतिक संघर्ष और जन-दबाव ने पेरिस के मेयर को नई और टिकाऊ विकास योजनाएं लागू करने को मजबूर किया और अवसर भी दिया। उन्होंने तत्काल विलुप्त हो चुके ‘पेरिस स्क्वायर्स’ में से सात को ‘प्रिक्लेम पब्लिक स्पेस’ और सड़कों पर लोकतांत्रिक हक के लिए ‘पद-पथिक पेरिस’ योजना की शुरुआत की। उन्होंने पेरिस स्क्वायर्स के पुन:जनोन्मुख विकास के लिए 3.4 करोड़ डॉलर का प्रावधान किया और तत्काल प्रभाव से इस काम की शुरुआत भी करवा दी। सातों स्क्वायर्स पैदल राहगीरों और साइकिल चालकों की सुविधा को ध्यान में रखते हुए विकसित होंगे, जहां आराम से संवाद के लिए फर्नीचर और मूलभूत जरूरतें उपलब्ध होंगी। इस इलाके की डिजायन ऐसी होगी कि मोटरगाड़ी का प्रवेश वर्जित होगा। ‘पद-पथिक पेरिस’ के संदर्भ में कहा गया है कि यह समय शहर में कारों के प्रवेश और इस्तेमाल पर पुनर्विचार करने का है और शहर के विकास में नागरिकों के गुणवत्तापूर्ण जीवन का समावेश तथा पेरिस के सार्वजनिक स्थानों पर उनके हक की बहाली का है। हमारे नए राजनैतिक कार्यक्रम का मुख्य आधार शहरी गतिशीलता और सामुदायिक स्थान हैं।

‘द डिपार्टमेंट ऑफ रोड एंड मोबिलिटी’ ने पेरिस की सार्वजनिक जगहों में नए बदलाव के लिए लगातार अभियान चला रखा है। शहर के अंदर एक सौ पचासी एकड़ में बनी सड़क को साइकिल चालकों, पैदल राहगीरों के लिए छोड़ दिया है, जहां गाड़ियों की पार्किंग पर रोक होगी। नए विचार के अनुसार, शहर के सार्वजनिक स्थानों की फिर से डिजायन का काम जोरों से चल रहा है। इसके कारण वाहनों की आवाजाही में पच्चीस प्रतिशत की गिरावट और कारों के मालिकाने में सैंतीस प्रतिशत की कमी आई है।

अभी शहर के अंदर कारों की गति पचास किलोमीटर प्रतिघंटा है। इसके कारण दूसरे वाहनों के लिए सड़कें सामान्यतया सुरक्षित नहीं हैं। इसलिए स्थानीय निकाय ने पूरे शहर में कारों की गति बीस किलोमीटर प्रतिघंटा कर दी है। यह योजना स्थानीय निकाय के नए दृष्टिकोण का अंग है, जिसके तहत आधुनिक सड़कों पर मोटरवाहनों के एकाधिकार और दबदबे को समाप्त कर दिया गया है और इसके स्थान पर ‘सड़कों पर सबको समान अधिकार’ की परिपाटी लागू की गई है। इन ढांचागत सुधारों के कारण सार्वजनिक परिवहन का उपयोग करने वालों की संख्या में इजाफा हो गया है। आज पेरिस एक रास्ता दिखाने वाला शहर बनता जा रहा है।

दिल्ली में दूसरी बार सम-विषम योजना लागू की गई। इस बार सरकार ने नारा दिया ‘दिल्ली बोले दिल से, ऑड-इवन फिर से।’ पहली बार जब यह योजना चली थी तो लोगों ने मन से इसे स्वीकार किया था और इसे लागू करने में बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया था। लेकिन इस बार हर ओर से इसे चुनौती मिली। इसका एक कारण यह है कि किसी भी क्षेत्र में आपातकालीन हथियार बार-बार इस्तेमाल नहीं किया जा सकता, वैसा करने से उसका महत्त्व या असर जाता रहता है। दिल्ली सरकार ने अभी तक समाज और देश के सामने जो संदेश दिया है उससे इस बात की कतई पुष्टि नहीं होती है कि कार और मोटर-वाहन शहर के लिए समस्या हैं और वह शहर के निवासियों को इनसे मुक्ति दिलाना चाहती है।

इस सरकार के मुखिया और इनका पूरा नेतृत्व बराबर कारों और अन्य मोटर वाहनों के मालिकों के हितों के साथ खड़े दिखते हैं। इन्होंने अपने पूरे चुनाव-प्रचार में बीआरटी के खिलाफ मुहिम चलाई और सरकार में आने के बाद उसे तोड़ने का निर्णय लिया और उत्सव मनाया। सम-विषम योजना में कारों की विभिन्न श्रेणियों के अंदर छूट मिली हुई है, जिनकी अच्छी-खासी संख्या है। सरकार का कोई भी राजनीतिक प्रतिनिधि खुद को मिसाल के तौर पर एक रोल मॉडल के रूप में पेश नहीं करता, बल्कि इससे बचने के हर उपक्रम को जायज और दूसरों की तुलना में सही साबित करने की होड़ में लिप्त दिखता है।

सरकार के द्वारा अभी तक लिए गए निर्णय और पहल से कम से कम परिवहन के क्षेत्र में कोई ऐसा उदाहरण नहीं मिल रहा जो भविष्य के लिए प्रेरक बन सके। इसके विपरीत इन्होंने सार्वजनिक परिवहन और साइकिल के ढांचागत विकास के लिए जो घोषणाएं की हैं उनमें कुछ में वास्तविक रूप से होता हुआ नहीं दिख रहा है और कुछ घोषणाएं तो वाहन उद्योग के हितों को साधने वाली हैं। एक ताजा मिसाल, विकासपुरी से वजीराबाद तक पैदल राहगीरों, साइकिल और रिक्शा चालकों के लिए अलग लेन बनाने की योजना थी। इस मार्ग पर मुख्यमंत्री कई बार कई फ्लाईओवर मार्ग का उद्घाटन कर चुके हैं, लेकिन आज तक योजना के तहत मंजूर और शर्त के रूप में रखे गए पद-पथिकों, साइकिल और रिक्शा चालकों की सहूलियत के लिए बनने वाले ढांचे का कहीं भी नामोनिशान नहीं है, न ही इसकी कोई खोज-खबर लेता हुआ दिखता है।

दूसरा किस्सा दिल्ली में बनाए जाने वाले दो नए बीआरटी कॉरिडोरों का है। सरकार ने घोषणा की है कि दोमंजिले फ्लाईओवर का निर्माण होगा, जिसकी एक मंजिल कारों के लिए होगी और दूसरी मंजिल पर बाकी गाड़ियां चलेंगी और इसी के एक लेन में बीआरटी बसें भी चलेंगी। जाहिर है, अभी भूतल पर बसों के स्टॉप तक पहुंचने के लिए सुविधा का अभाव झेल रहे लोग यह कैसे भरोसा करें कि दूसरी मंजिल के फ्लाईओवर पर बने बस स्टॉप पर पहुंचने का सपना साकार होगा। क्या यह वास्तव में दिल्ली के लोगों के लिए बनाई जा रही योजना है या कुछ खास जनों की सुविधा के लिए? इन्होंने कार-फ्री दिवस मनाया, लेकिन वह भी एक-दो घंटे के कार्यक्रम से आगे नहीं जा सका।

बसों की खरीद, बस में सीसीटीवी कैमरा, किराये की साइकिल, शेयरिंग साइकिल, नए बस डिपो का निर्माण, ये सब जरूरी कार्य हो सकते हैं। लेकिन इससे जरूरी काम जिसे पहले करना है, जिसकी अनुपस्थिति में इस सब का चलना नामुमकिन है, वह है इनके अनुकूल ढांचा बनाना और वाहनों के बढ़ते ग्राफ पर अंकुश लगाना ताकि पैदल राहगीरों, साइकिल और रिक्शा चालकों के लिए रास्ता बनाया जा सके और उनका हक बहाल किया जा सके। सड़क की डिजाइन समाज की जरूरत को परिलक्षित करे, न कि कुछ लोगों की। अभी तो दूर-दूर तक रोशनी नहीं दिखती है, शायद इसी के पीछे लौ छिपी है।