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भारत के स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में नेताजी सुभाष चंद्र बोस का नाम अद्वितीय शौर्य और त्याग के प्रतीक के रूप में लिया जाता है। उन्होंने आजादी के लिए सशस्त्र संघर्ष का रास्ता चुना और ‘आजाद हिंद फौज’ की स्थापना की। “तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आज़ादी दूंगा” जैसे उनके नारे आज भी देशभक्ति की मिसाल बने हुए हैं। (Photo Source: Express Archive)
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लेकिन नेताजी का जीवन केवल राजनीतिक संघर्ष और देशभक्ति तक ही सीमित नहीं था, उनके जीवन का एक ऐसा पक्ष भी रहा है, जो बहुत कम लोगों को पता है—वह है उनकी अनकही प्रेम कहानी। यह कहानी है ऑस्ट्रिया की एक महिला एमिली शेंकल और भारत के महान स्वतंत्रता सेनानी सुभाष चंद्र बोस के अद्भुत रिश्ते की। (Photo Source: Express Archive)
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पहली मुलाकात: टाइपिंग से शुरू हुआ रिश्ता
साल 1934 में सुभाष चंद्र बोस इलाज के लिए विएना (ऑस्ट्रिया) में थे। जेल में बीमार पड़ने के बाद उन्हें इलाज के लिए यूरोप भेजा गया था। विएना में रहकर वे अपनी किताब ‘द इंडियन स्ट्रगल’ पर काम कर रहे थे। इसके लिए उन्हें एक टाइपिस्ट की जरूरत थी। तभी उनके मित्र डॉ. माथुर ने कुछ उम्मीदवार सुझाए। (Photo Source: Express Archive) -
इसी दौरान 23 वर्षीय ऑस्ट्रियाई युवती एमिली शेंकल उनके पास नौकरी के लिए आईं। एमिली एक कुशल स्टेनोग्राफर थीं। इंटरव्यू के दौरान सुभाष उनकी बुद्धिमत्ता और सरल व्यक्तित्व से प्रभावित हुए और उन्होंने उन्हें काम पर रख लिया। यही उनकी प्रेम कहानी की शुरुआत थी। (Photo Source: Express Archive)
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दोस्ती से प्यार तक
सुभाष उस समय 37 वर्ष के थे। स्वतंत्रता संग्राम उनका पहला और अंतिम लक्ष्य था। लेकिन एमिली के साथ काम करते-करते उनकी जिंदगी में एक नया मोड़ आया। उनके भतीजे सुगत बोस ने अपनी किताब “His Majesty’s Opponent” में लिखा है कि एमिली से मिलने के बाद सुभाष के पर्सनालिटी में ड्रामेटिक चेंज आया। (Photo Source: Express Archive) -
एमिली की खूबसूरती और सरल स्वभाव ने उन्हें आकर्षित किया और धीरे-धीरे दोनों के बीच दोस्ती गहरी होती गई। ऑस्ट्रिया और चेकोस्लोवाकिया में बिताए गए वर्षों ने दोनों को और करीब ला दिया। (Photo Source: Express Archive)
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गुपचुप शादी
26 दिसंबर 1937, एमिली के जन्मदिन पर दोनों ने ऑस्ट्रिया के बादगास्तीन नामक जगह पर पारंपरिक हिंदू रीति से विवाह किया। हालांकि इसमें कोई हिंदू पुजारी मौजूद नहीं था और उन्होंने अपने विवाह को गुप्त रखने का निर्णय लिया। (Photo Source: Express Archive) -
उसी समय वे कांग्रेस अध्यक्ष चुने गए थे। बोस नहीं चाहते थे कि उनकी राजनीतिक छवि या स्वतंत्रता संग्राम पर इस रिश्ते का असर पड़े। यहां तक कि उनके नजदीकी रिश्तेदार भी इसे समझ नहीं पाए और एमिली को केवल उनकी सहयोगी ही मानते रहे। (Photo Source: Express Archive)
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बेटी अनीता का जन्म
29 नवंबर 1942 को एमिली और बोस की बेटी का जन्म हुआ, जिसका नाम अनीता बोस रखा गया। नाम उन्होंने इटली के क्रांतिकारी नेता गैरीबाल्डी की वीर पत्नी अनीता के सम्मान में रखा था। हालांकि बोस अपनी बेटी को बहुत कम समय के लिए ही देख पाए। (Photo Source: Express Archive) -
दुर्भाग्य से सुभाष और एमिली का साथ बहुत छोटा रहा। नेताजी अपनी बेटी को देखने एक बार विएना पहुंचे, लेकिन जल्द ही स्वतंत्रता संग्राम की डगर पर निकल पड़े और फिर कभी लौटकर नहीं आए। (Photo Source: Express Archive)
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पिता का विरोध और बाद में स्वीकृति
शुरुआत में एमिली के पिता इस रिश्ते के खिलाफ थे। उन्हें पसंद नहीं था कि उनकी बेटी किसी भारतीय के साथ काम करे। लेकिन जब उन्होंने सुभाष से मुलाकात की, तो उनके व्यक्तित्व और विचारों से प्रभावित होकर मान गए। (Photo Source: Express Archive) -
अधूरी लेकिन अमर प्रेम कहानी
1934 से 1945 के बीच दोनों का साथ महज 11 साल का रहा। जबकि सात वर्ष और आठ महीने के अपने वैवाहिक जीवन में सुभाष चंद्र बोस ने एमिली के साथ केवल तीन वर्ष ही बिताए। फरवरी 1943 के बाद बोस और एमिली की आखिरी मुलाकात हुई। (Photo Source: Express Archive) -
इसके बाद बोस अपने मिशन पर निकल गए और फिर कभी वापस नहीं आए। 1945 में उनकी विमान दुर्घटना में मृत्यु होने की खबर आई, लेकिन इसका प्रमाण आज तक स्पष्ट नहीं है। इसके बाद एमिली ने पति की यादों के सहारे अकेले जिंदगी बिताई। (Photo Source: Express Archive)
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एमिली ने कभी इस रिश्ते का प्रचार नहीं किया, बल्कि वही गोपनीयता बनाए रखी जो नेताजी चाहते थे। उन्होंने कभी भी बोस के परिवार या भारत सरकार से मदद नहीं ली और अपनी बेटी अनीता को पाल-पोसकर जर्मनी की मशहूर अर्थशास्त्री बनाया। 1996 में उन्होंने इस दुनिया को अलविदा कह दिया। (Photo Source: Express Archive)
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