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महात्मा गांधी को विश्वभर में अहिंसा और सत्य के प्रतीक के रूप में जाना जाता है। उनका योगदान भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में अनमोल था। 15 अगस्त 1947 को भारत को स्वतंत्रता प्राप्त हुई, लेकिन महात्मा गांधी को उस आजादी की हवा में सांस लेने का ज्यादा समय नहीं मिला। सिर्फ पांच महीने बाद, 30 जनवरी 1948 को, नाथूराम गोडसे ने गांधी जी को दिल्ली में बिड़ला हाउस के पास प्रार्थना सभा के दौरान गोली मार दी। (Photo Source: Pexels)
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दरअसल, नाथूराम गोडसे और उसके सहयोगियों ने यह मान लिया था कि गांधी जी ने पाकिस्तान के पक्ष में नरम रुख अपनाया था, जिसके कारण उन्होंने भारत के विभाजन को सहन किया। इस कारण, गोडसे ने महात्मा गांधी को देश का दुश्मन मानते हुए उनकी हत्या का फैसला लिया। (Photo Source: Pexels)
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हालांकि, यह तथ्य अपने आप में दिलचस्प है कि स्वतंत्रता संग्राम के दौरान गोडसे महात्मा गांधी के आदर्शों का मुरीद था, लेकिन एक समय ऐसा आया कि वह उनका विरोधी बन बैठा और उन्हें देश के बंटवारे का दोषी मानने लगा। गोडसे और उसके साथियों की योजना के अनुसार, गांधी जी को 30 जनवरी 1948 को मारने की योजना बनाई गई थी। (Photo Source: Pexels)
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उस दिन गांधी जी बिड़ला हाउस के पास प्रार्थना सभा में जा रहे थे, तभी गोडसे ने उन्हें नजदीक से तीन गोलियां मारीं। गांधी जी की हत्या के बाद गोडसे ने भागने की कोशिश की, लेकिन वह पकड़ा गया। गोडसे के साथ हत्या की साजिश में शामिल नारायण आप्टे और विष्णु करकरे भी गिरफ्तार किए गए। (Photo Source: Pexels)
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जेल में दोनों को एक साथ फांसी दी गई थी, जिसमें आप्टे की तुरंत मौत हो गई, जबकि गोडसे थोड़ी देर तक तड़पते रहे। 15 नवंबर 1949 को गोडसे और आप्टे को फांसी दी गई। दोनों की मृत्यु के बाद उनका अंतिम संस्कार उसी जेल परिसर में किया गया था। प्रशासन ने बहुत सतर्कता से उनकी अस्थियों को घग्घर नदी में बहा दिया। (Photo Source: Pexels)
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महात्मा गांधी की हत्या के मामले में कुल 9 आरोपित थे, जिनमें से 8 महीने तक सुनवाई चलने के बाद गोडसे और आप्टे को दोषी पाया गया था। इस मामले में केवल एक व्यक्ति को दोषमुक्त किया गया, वह थे विनायक दामोदर सावरकर, जिन्हें गवाही में दोषी नहीं पाया गया। (Photo Source: Pexels)
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गांधी जी की हत्या के 6 दिन बाद मुंबई पुलिस ने सावरकर को गिरफ्तार किया था। इस दौरान, सावरकर ने खुद ही पुलिस से पूछा था, “क्या आप मुझे गांधी जी की हत्या के मामले में गिरफ्तार करने आए हैं?” सावरकर को बाद में दिल्ली ले जाया गया और लाल किले में न्यायालय में उनके खिलाफ मुकदमा चला। महात्मा गांधी की हत्या की यह घटना भारतीय इतिहास के एक काले अध्याय के रूप में हमेशा याद की जाएगी। (Photo Source: Pexels)
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