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हिंदू विवाह में बारात केवल एक धूमधाम वाला जश्न नहीं है, बल्कि यह दूल्हे और उसके परिवार के लिए एक पवित्र और आध्यात्मिक यात्रा का प्रतीक है। बारात शब्द संस्कृत के ‘वरयात्रा’ से लिया गया है, जिसका अर्थ है, दूल्हे की विवाह स्थल तक की पवित्र यात्रा। (Photo Source: Pexels)
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बारात का मूल उद्देश्य दूल्हे को मानसिक, भावनात्मक और आध्यात्मिक रूप से विवाह के लिए तैयार करना है। इसमें ध्यान, कृतज्ञता और विवाह के प्रति सम्मान शामिल होता है। (Photo Source: Pexels)
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पुराने समय में, वरयात्रा एक वैदिक प्रथा थी जिसमें दूल्हा, उसके परिवार, मित्र और गांव के बुजुर्ग मिलकर विवाह स्थल तक पैदल यात्रा करते, भजन गाते और मंत्रों का उच्चारण करते। इसका उद्देश्य समूह की ऊर्जा को उच्च बनाए रखना और सभी को समारोह के लिए भावनात्मक रूप से तैयार करना था। (Photo Source: Pexels)
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पारंपरिक रीति में, दुल्हन का परिवार बारात का स्वागत आरती, तिलक और फूलों से करता था। यह स्वागत दो परिवारों के बीच स्वीकृति और एकता का प्रतीक माना जाता है। वर्तमान समय में भी बारात के आगमन पर दुल्हन के परिवार द्वारा आरती, तिलक और फूलों से स्वागत किया जाता है। (Photo Source: Pexels)
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बारात का महत्व केवल उत्सव तक सीमित नहीं है। यह हिंदू संस्कारों का अभिन्न हिस्सा है और विवाह समारोह के लिए सही मानसिक और आध्यात्मिक माहौल तैयार करता है। प्रत्येक कदम और परंपरा का अपना प्रतीकात्मक और व्यावहारिक महत्व है। (Photo Source: Pexels)
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दुर्भाग्य से, आज के समय में बारात को कभी-कभी केवल पार्टी या मनोरंजन का माध्यम बना दिया जाता है। समय के साथ बारात में बदलाव आया। जहां पहले भजन और मंत्रों के साथ आध्यात्मिक यात्रा होती थी, आज वहां कभी-कभी तेज संगीत और शराब का सेवन दिखाई देता है। (Photo Source: Pexels)
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शराब या किसी भी प्रकार के नशे का उपयोग विवाह समारोह की पवित्रता को कमजोर कर सकता है। वहीं, दूल्हे के इस चिंतनशील यात्रा को भी केवल दिखावे तक सीमित कर दिया गया है, जो बारात की पवित्रता को कम कर रहा है। (Photo Source: Pexels)
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हमें बारात या वरयात्रा को समझना और उसका सम्मान करना चाहिए। यह दूल्हा और दुल्हन के लिए जीवन की सबसे महत्वपूर्ण यात्रा की शुरुआत है। इसे केवल जश्न नहीं बल्कि एक आध्यात्मिक और सांस्कृतिक अनुभव मानकर अपनाना चाहिए। (Photo Source: Pexels)
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