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अक्सर घर पर या कहीं बाहर भोजन करते समय ऐसा होता है कि खाने में बाल या मक्खी गिर जाती है। कई बार लोग उसे हटा कर उसी भोजन को खा लेते हैं, लेकिन संत-महापुरुष इसे शुद्धता और साधना की दृष्टि से उचित नहीं मानते। (Photo Source: Pexels)
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इसी विषय में संत प्रेमानंद महाराज ने स्पष्ट रूप से बताया है कि उपासक को भोजन के मामले में कैसी सावधानी रखनी चाहिए। (Photo Source: PremanandJi Maharaj/Facebook)
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बासी और अपवित्र भोजन का त्याग करें
महाराज जी कहते हैं कि जो भोजन शाम को बनाया गया हो, उसे सुबह नहीं खाना चाहिए। रोटी, दाल जैसे कच्चे और ताजे अन्न बासी होने पर अपवित्र हो जाते हैं। केवल घी में तले हुए कुछ पकवान एक-दो दिन तक खाए जा सकते हैं। (Photo Source: Pexels) -
उन्होंने विशेष रूप से कहा कि जिस भोजन में बाल गिर गया हो या मक्खी मर गई हो, ऐसे अन्न का तुरंत त्याग करना चाहिए। यह भोजन शुद्ध नहीं माना जाता और साधक की साधना में बाधा डाल सकता है। (Photo Source: Pexels)
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बर्तनों के उपयोग में सावधानी
प्रेमानंद महाराज ने यह भी समझाया कि साधक को कांसे के बर्तन का उपयोग नहीं करना चाहिए। साधक के लिए रज (पीतल या मिट्टी) के पात्र अधिक उपयुक्त माने गए हैं। (Photo Source: PremanandJi Maharaj/Facebook) -
भोजन करते समय ध्यान और चिंतन
भोजन करते समय साधक का मन और चिंतन किस ओर है, यह भी बहुत महत्वपूर्ण है। महाराज जी कहते हैं कि भोजन करते समय न तो भोजन पर चिंतन करना चाहिए, न किसी व्यक्ति, वस्तु या स्थान पर। (Photo Source: Pexels) -
यदि भोजन के समय आपका ध्यान किसी व्यक्ति पर है तो उसके स्वभाव और गुण आपके भीतर प्रवेश कर जाएंगे। यानी भोजन करते समय किसी व्यक्ति का चिंतन करते हैं तो उसका स्वभाव और गुण आपके ऊपर प्रभाव डालते हैं। (Photo Source: Pexels)
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यदि वह व्यक्ति साधु या संत है तो आपके भीतर 24 घंटे तक भजन और साधना की शक्ति बढ़ जाएगी। लेकिन यदि वह साधारण व्यक्ति सांसारिक या नकारात्मक स्वभाव वाला है तो उसकी प्रवृत्ति आपके भीतर असर डालेगी और आपको 24 घंटे तक परेशान कर सकती है। (Photo Source: Pexels)
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इसलिए, भोजन पाते समय न तो भोजन के स्वाद में खोना चाहिए और न ही किसी व्यक्ति, वस्तु या स्थान का चिंतन करना चाहिए। सर्वोत्तम यह है कि भोजन करते समय मन को प्रभु, गुरुदेव या किसी महापुरुष में स्थिर रखा जाए। (Photo Source: PremanandJi Maharaj/Facebook)
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