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राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) चीफ लालू प्रसाद यादव के बड़े बेटे और बिहार के स्वास्थ्य मंत्री तेज प्रताप यादव एक बार फिर विवादों में हैं। 20 नवंबर 2015 को मंत्री पद की शपथ लेने वाले तेज प्रताप 12 फरवरी से पहले बिल्कुल चुप थे। कई बार उनके कार्यक्रमों को अटेंड करने के लिए लालू यादव गए और बेटे की जगह खुद भाषण दिया। उन्हें डर था कि कहीं तेज प्रताप कोई विवाद खड़ा न कर दें। लेकिन बीते चार दिनों में वह दो बार विवाद खड़ा कर चुके हैं। 12 फरवरी को उन्होंने इशरत जहां को बिहार की बेटी बताया था तो अब उन्होंने मीडिया वालों को एल्बेंडाजोल की दवा खाने की नसीहत दी है।
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डेविड कोलमैन हेडली ने हाल ही में इशरत जहां को लश्कर आतंकी बताया था, इसी के बाद तेज प्रताप से सवाल पूछा गया था, क्या आप भी जेडीयू की तरह इशरत को बिहार की बेटी मानते हैं। इस पर तेज प्रताप ने कहा कि हम उनका समर्थन करते हैं, जबकि खुद नीतीश इस बयान से अपने आप को अलग कर चुके हैं। उन्होंने सोमवार को कहा कि उन्होंने कभी इशरत को बिहार की बेटी नहीं बताया।
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नीतीश कुमार के जनता दरबार में पहली बार शिरकत करने पहुंचे तेज प्रताप ने कहा, 'मीडियाकर्मियों के पेट में कीड़ा है। आप लोगों को भी एल्बेंडाजोल की दवा देना पड़ेगा। कहिएगा तो हम व्यवस्था करा देंगे।' आपको बता दें कि तेज प्रताप से मीडियाकर्मियों ने सवाल पूछा था कि कीड़ा मारने की दवा से बच्चे बीमार क्यों हो रहे हैं? इसके जवाब में वह उल्टा मीडिया पर ही बरस पड़े।
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बिहार सरकार में सीएम नीतीश कुमार और डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव के बाद तीसरे नंबर की हैसियत रखने वाले तेज प्रताप के बारे में कुछ दिनों पहले तक यह चर्चा हो रही थी कि वह बोल नहीं रहे हैं। मीडिया में ऐसी भी रिपोर्ट आई थीं कि लालू यादव इस बात से डरे हुए हैं कि तेज प्रताप कहीं कोई विवाद खड़ा न कर दें। खबरें तो यहां तक आई थीं कि लालू यादव और आरजेडी के वरिष्ठ नेता चाहते हैं कि तेज प्रताप सावर्जनिक कार्यक्रमों में न बोलें।
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17 जनवरी 2016 को लालू प्रसाद यादव को नौवीं बार राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) का अध्यक्ष चुना गया था। उस वक्त पटना के कृष्णा मैमोरियल हॉल में उनकी पत्नी राबड़ी देवी ने भाषण दिया था और आरएसएस पर जमकर कटाक्ष किए थे। उन्होंने मोहन भागवत से पूछा था कि आरएसएस वाले हाफ पेंट्स क्यों पहनते हैं? इसी समारोह में लालू के छोटे बेटे तेजस्वी यादव भी उपस्थित थे और उन्होंने सुशासन को अपनी सरकार का एजेंडा बताया। लेकिन समारोह में उपस्थित तेज प्रताप कुछ नहीं बोले। वह चुप रहे और तालियां बजाते रहे।
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30 जनवरी को पटना में होम्योपैथी कांग्रेस का आयोजन किया गया था। प्रदेश का स्वास्थ्य मंत्री होने नाते इस कार्यक्रम में तेज प्रताप यादव को मुख्य अतिथि के तौर पर बुलाया गया था। कार्यक्रम में लोग उनका इंतजार करते रहे, लेकिन वह नहीं आए। हां, लालू यादव जरूर इस कार्यक्रम में शामिल हुए और लोगों से कहा कि तेज प्रताप को एक जरूरी मीटिंग में जाना पड़ा।
31 जनवरी को राघोपुर में पुल निर्माण कार्य की शुरुआत के कार्यक्रम में नीतीश कुमार, लालू यादव, तेजस्वी यादव ने भाषण दिया, लेकिन तेज प्रताप वहां भी खामोश थे। लालू यादव ने तेज प्रताप को जब से राजनीति में लॉन्च किया है, वह तभी से न तो विधानसभा में बोल रहे थे और न ही सार्वजनिक कार्यक्रमों में। वह थोड़ा-बहुत उसी वक्त बोले थे, जब महुआ विधानसभा क्षेत्र में उनके चुनाव-प्रचार के लिए नीतीश कुमार आए थे। -
सूत्रों की मानें तो पार्टी तेज प्रताप को इसलिए ‘प्रोटेक्शन’ दे रही थी, ताकि उनकी जुबान न फिसल जाए, लेकिन ऐसा लग रहा है कि पार्टी के लिए अब उन्हें रोकना मुश्किल हो गया है। दावा तो यहां तक किया गया कि वह पार्टी के वरिष्ठ नेताओं से सलाह ले रहे हैं, जिससे कि वह अपनी भाषण शैली को बेहतर कर सकें। खुद लालू यादव भी उन्हें तैयार कर रहे हैं।
आरजेडी के राष्ट्रीय प्रवक्ता मनोज झा ने कुछ दिनों पहले इंडियन एक्सप्रेस से कहा था, ‘वह सार्वजनिक तौर पर अपनी बात नहीं कह पाते हैं, पर वह तेजी से सीख रहे हैं।’ उन्हें लगता है कि इस मुद्दे को लेकर तेज प्रताप के पीछे पड़ना गैरजरूरी है। तेज प्रताप की खामोशी सिर्फ सार्वजनिक कार्यक्रमों तक सीमित नहीं रही, बल्कि वह विधानसभा में भी चुप ही रहे हैं। उन्होंने विधान परिषद के सेशन को भी अटेंड नहीं किया था। -
बीजेपी नेता सुशील कुमार ने कहा था कि तेज प्रताप हाउस में नहीं बोलते। जब ऐसा लगता है कि वह अपने विभाग से संबंधित सवालों का जवाब देंगे, तभी वह कोई न कोई बहाना बना देते हैं, जिससे कि उन्हें बोलना न पड़े। वहीं, आरजेडी के सहयोगी दलों के नेताओं का कहना है कि थोड़े समय की बात है, वह जल्दी सीख जाएंगे। वह अभी वरिष्ठ नेताओं से सीख रहे हैं।
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तेज प्रताप ने 20 नवंबर 2015 को मंत्री पद की शपथ ली थी। वह जब पटना के गांधी मैदान में मंत्री पद की शपथ लेने पहुंचे तो थोड़े घबराए हुए दिखे थे और अपेक्षित की जगह उपेक्षित बोल गए थे। इस गलती की वजह से राज्यपाल रामनाथ गोविंद ने उन्हें फिर से पद और गोपनीयता की शपथ दिलाई थी।
