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हम अक्सर यह सोचते हैं कि मेहंदी हमारी भारतीय संस्कृति का हिस्सा है। शादी, त्योहार या किसी विशेष अवसर पर हाथों और पैरों पर मेहंदी लगाना हमारी परंपरा का अभिन्न अंग है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि मेहंदी मूल रूप से भारत की परंपरा का हिस्सा नहीं थी? (Photo Source: Unsplash)
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इतिहासकारों के अनुसार, मेहंदी की प्रथा भारत में मुगलकाल में मुगलों और मध्य-पूर्व से आई थी। हमारे पारंपरिक रीति-रिवाजों में हाथ-पांव को सजाने के लिए आलता यानी महावर का इस्तेमाल किया जाता था। हमारी पारंपरिक मान्यताओं और प्राचीन ग्रंथों में मेहंदी का कोई उल्लेख नहीं मिलता। (Photo Source: Pexels)
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अगर हम सोलह श्रृंगार की बात करें, तो उसमें बिंदी, सिंदूर, चूड़ियां, नथ, हार, मंगलसूत्र, पायल, बिछिया, काजल, मांग टीका, झुमके, बाजूबंद, कमरबंद, गजरा, आलता और लाल वस्त्र जैसे वस्तुओं का जिक्र है, लेकिन मेहंदी का कहीं जिक्र नहीं है। (Photo Source: Unsplash)
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असल में, भारतीय संस्कृति में महिलाओं के हाथों और पैरों को सजाने के लिए आलता का प्रयोग किया जाता था। अल्ता, एक लाल रंग का द्रव है, जिसे खासतौर पर नवविवाहित महिलाओं और देवी लक्ष्मी के रूप में प्रतीकात्मक रूप से इस्तेमाल किया जाता था। (Photo Source: Unsplash)
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जब एक नई दुल्हन घर में प्रवेश करती है, तो उसे देवी लक्ष्मी के रूप में देखा जाता है। अगर आप देवी लक्ष्मी की किसी भी तस्वीर या मूर्ति को देखें, तो उनके हाथों और पैरों में आलता लगी होती है, मेहंदी नहीं। (Photo Source: Unsplash)
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यही कारण है कि पुराने समय में नवविवाहित महिलाओं के हाथों और पैरों को आलता से सजाना एक महत्वपूर्ण परंपरा मानी जाती थी, जो हमारी संस्कृति का महत्वपूर्ण हिस्सा रही है। (Photo Source: Unsplash)
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आज भी बंगाल और दक्षिण भारत में शादी और त्योहारों के दौरान अल्ता का प्रयोग किया जाता है, जिससे हमारी प्राचीन सांस्कृतिक जड़ों को जीवित रखा जा रहा है। यह हमारी पारंपरिक जड़ों को बनाए रखने वाला एक महत्वपूर्ण संकेत भी है। (Photo Source: Unsplash)
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जबकि मेहंदी का प्रयोग भारत में मुगल प्रभाव के बाद फैलना शुरू हुआ और समय के साथ यह हमारी लोकप्रिय परंपरा बन गई। इसलिए कहा जा सकता है कि अल्ता भारतीय परंपरा की जड़ है, जबकि मेहंदी बाद में लोकप्रिय हुई एक सांस्कृतिक परंपरा है। (Photo Source: Unsplash)
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अगर आप अपनी परंपरा और इतिहास के प्रति जागरूक हैं, तो जानना महत्वपूर्ण है कि मेहंदी भारत की मूल संस्कृति का हिस्सा नहीं थी। हमारी सांस्कृतिक जड़ों और परंपराओं को समझना और उन्हें संजोना भी उतना ही आवश्यक है। (Photo Source: Pexels)
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