-
उत्तर प्रदेश की संगम नगरी प्रयागराज में गंगा, यमुना और सरस्वती नदी के संगम तट पर दुनिया का सबसे बड़ा धार्मिक मेला महाकुंभ चल रहा है। विश्व के सबसे बड़े धार्मिक आयोजनों में से एक महाकुंभ ने केवल एक आयोजन नहीं बल्कि आस्था, अध्यात्म और सामूहिकता की अद्भुत शक्ति का प्रतीक है। (Photo: PTI)
-
यहां संत-महंत, ऋषि-मुनि और नागा साधु तीसरे अमृत स्नान के बाद अब लौटने लगे हैं। लेकिन क्या आपको पता है कि ये साधु-संत अब कहा जाएंगे। आइए जानते हैं: (Photo: PTI)
-
महाकुंभ मेले के शान कहे जाने वाले 13 अखाड़े अब धीरे-धीरे प्रयागराज से प्रस्थान कर रहे हैं। (Photo: Indian Express)
-
महाकुंभ के बाद नागा साधु हिमालय की गुफाओं में चले जाते हैं जहां वो साधना करते हैं। वहीं, अन्य साधु संत अपने अखाड़ों के साथ मठ और आश्रमों में लौट जाते हैं। (Photo: PTI)
-
लेकिन महाकुंभ के बाद नागा, अघोरी और साधु संत फिलहाल हिमालय नहीं बल्कि काशी में अपना डेरा जमाएंगे। (Photo: PTI)
-
नागा संन्यासियों और संप्रदायों में शामिल सन्यासी (शिव उपासक), बैरागी (राम-कृष्ण उपासक) और उदासीन (पंच देव उपासक) अखाड़े अपनी परंपरा के अनुसार काशी की ओर प्रस्थान करेंगे। (Photo: Indian Express) महाकुंभ छोड़ने से पहले कढ़ी-पकोड़ा क्यों खाते हैं साधु-संत, जानें मान्यता और कौन बनाता है?
-
संत महाशिवरात्रि तक काशी में प्रवास करेंगे। इस दौरान वे शोभा यात्रा निकालकर काशी विश्वनाथ के दर्शन करेंगे। (Photo: Indian Express)
-
इसके बाद ये संत गंगा स्नान करेंगे और मसाने की होली खेलेंगे। इसके बाद वो अपने-अपने मठों और आश्रमों में लौट जाएंगे। (Photo: Indian Express)
-
भगवान शंकर की नगरी काशी में ‘मसाने की होली’ में न रंग, पिचकारी और न ही गुलाल का उपयोग होता है। यहां महादेव के भक्त चिता की भस्म से होली खेलते हैं। (Photo: PTI)
-
चिता भस्म की होली महाश्मशान मणिकर्णिका घाट पर खेली जाती है। मान्यता है कि मोक्ष की नगरी काशी में भगवान शिव स्वयं तारक मंत्र देते हैं। (Photo: Indian Express)
-
पैराधिक कथाओं के अनुसार इस परंपरा की शुरुआत खुद भगवान शंकर ने की थी। रंगभरी एकादशी के दूसरे दिन काशी के मणिकर्णिका और हरिश्चंद्र घाट पर भस्म वाली होली खेलते हैं। (Photo: Indian Express)
-
मान्यताओं के अनुसार, रंगभरी एकादशी के दिन शिव जी माता पार्वती का गौना कराने के बाद उन्हें काशी लेकर आए थे। तब उन्होंने अपने गणों के साथ रंग-गुलाल की होली खेली थी। (Photo: Indian Express)
-
लेकिन वे श्मशान में बसने वाले भूत, प्रेत, पिशाच, यक्ष गन्धर्व, किन्न जीव जंतु आदि के साथ होली नहीं खेल पाए थे। इसलिए रंगभरी एकादशी के एक दिन बार महादेव ने श्मशान में बसने वाले भूत-पिशाचों के साथ होली खेली थी। (Photo: Indian Express) 41 दिन तक ब्रह्मचर्य और सात्विक भोजन के बाद दर्शन, कई रहस्यों से भरा है ये भारत का मशहूर मंदिर