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BSP supremo Mayawati compared herself to Lord Shri Ram: मायावती ने मुख्यमंत्री बनने के बाद दलितों के उत्थान पर काम जरूर किया, लेकिन सरकारी खर्च पर अपनी और पार्टी के चुनावी चिन्ह को बनवाना भारी पड़ा गया था। मायावती ने करीब 2600 करोड़ रुपये के सरकारी बटज को मूर्तियां बनाने पर खर्च किया था। तब कोर्ट में याचिका दायर की गई थी और सुप्रीम कोर्ट ने उनसे मूर्तियों को बनवाने के पीछे कारण पूछा था।
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मायावती ने सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिका के जवाब में अपने हलफनामे में दलील दी थी कि देश में मूर्तियां या प्रतिमा बनाना कोई नई बात नहीं है। सदियों से ऐसा होता आ रहा है। इसे भी पढ़ें- 14 सालों में मायावती ने कांशीराम के रत्नों को कर दिया पार्टी से बाहर
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मायावती के अधिवक्ता शैल द्विवेदी ने दलील दी थी कि कांग्रेस शासन के दौरान केंद्र और राज्य एजेंसियों ने सार्वजनिक धन से देश भर में जवाहरलाल नेहरू, इंदिरा गांधी, राजीव गांधी, पीवी नरसिम्हा राव की प्रतिमाएं स्थापित की थीं।
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मायावती ने अपनी दलील में कहा था कि अयोध्या में भगवान राम की प्रस्तावित 221 मीटर की मूर्ति पर ऐसी कोई आपत्ति क्यों नहीं उठाई जा रही है? इसे भी पढ़ें- मायावती के भतीजे ने पहने थे 70 हजार के जूते, उठा था विवाद
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मायावती ने हलफनामे में योगी आदित्यनाथ सरकार भूमि अधिग्रहण के लिए 200 करोड़ रुपये की शुरुआती लागत के साथ भगवान राम की मूर्ति की योजना बनाने पर भी सवाल उठाया था कि उनकी प्रतिमा बन सकती है तो उनकी क्यों नहीं?
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मायावती ने खुद की मूर्तिया बनवाने पर सफाई दी थी कि और लोगों की इच्छा ने उन्हें राज्य विधायिका को स्मारक और मूर्तियों के लिए बजटीय मंजूरी को मंजूरी देने के लिए मजबूर किया था। इसे भी पढ़ें- जब लखनऊ से मुंबई मायावती का सैंडल लेने गया था विमान
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मायावती का कहना था कि उनकी प्रतिमाएं राज्य विधानमंडल की इच्छा के रूप में लोगों की इच्छा का प्रतिनिधित्व करने के लिए स्थापित की गई हैं। इसे भी पढ़ें- जब इस बीजेपी नेता के लिए फूट-फूट कर रो पड़ी थीं मायावती
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मायावती ने अपने हलफनामें के यह भी दलील दी थी कि कुछ असंतुष्ट तत्व एक दलित महिला नेता के लिए इतने सम्मान को पचा नहीं पाए और उन्होंने स्मारकों के निर्माण और मूर्तियों की स्थापना के मुद्दे पर कोर्ट में याचिका दायर कर दी।
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Photos; PTI