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1– गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वरः। गुरुः साक्षात् परं ब्रह्म तस्मै श्रीगुरवे नमः॥
अर्थ: गुरु ही ब्रह्मा हैं, गुरु ही विष्णु हैं, गुरु ही महेश हैं। गुरु ही परब्रह्म हैं, उन्हें मैं नमस्कार करता हूं। (Photo: ChatGPT) शिक्षक दिवस पर गांठ बांध लें खान सर के यह 10 कोट्स, हारी हुई बाजी को पलट देंगे -
2- गुरुदेवो न परं तत्त्वं, गुरुदेवो न परं तपः। गुरुदेवो न परं ज्ञानं, तस्मात् गुरुमुपास्महे॥
अर्थ: गुरु से बड़ा कोई तत्त्व नहीं, गुरु से बड़ा कोई तप नहीं, गुरु से बड़ा कोई ज्ञान नहीं, इसलिए गुरु की ही उपासना करनी चाहिए। (Photo: MetaAI) -
3- अनन्तशास्त्रं बहुलाश्च विद्याः, स्वल्पश्च कालो बहवश्च विघ्नाः। यत्सारभूतं तदुपासितव्यं, हंसो यथा क्षीरमिवाम्बुमिश्रम्॥
अर्थ: शास्त्र अनंत हैं, विद्याएं बहुत हैं, समय कम है और विघ्न अधिक हैं। इसलिए सारगर्भित ज्ञान को ही ग्रहण करना चाहिए, जैसे हंस दूध को पानी से अलग करता है। (Photo: Pexels) -
4- अज्ञानतिमिरान्धस्य ज्ञानाञ्जनशलाकया। चक्षुरुन्मीलितं येन तस्मै श्रीगुरवे नमः॥
अर्थ: जो गुरु ज्ञानरूपी अंजन से अज्ञानरूपी अंधकार को दूर करके नेत्र खोलते हैं, उन्हें प्रणाम है। (Photo: MetaAI) देश के सात सबसे मशहूर शिक्षक, किसी का पढ़ाने का अलग अंदाज तो कई अपनी दरियादिली के लिए है फेमस -
5- मूर्खस्य लक्षणं एकं, यः गुरोर्न शृणोति च। शतं जन्मनि मर्त्यत्वं, स याति नरकं ध्रुवम्॥
अर्थ: जो व्यक्ति गुरु की बात नहीं सुनता, वह मूर्ख है और उसे सौ जन्मों तक नरक प्राप्त होता है। (Photo: ChatGPT) -
6– गुरुज्ञानप्रदातारः, पावकास्ते न संशयः। गुरोराज्ञां न लंघयेत्, धर्मं मार्गं सदा व्रजेत्॥
अर्थ: गुरु ज्ञान देने वाले पवित्र अग्नि के समान हैं। उनकी आज्ञा का उल्लंघन नहीं करना चाहिए और धर्म के मार्ग पर चलना चाहिए। (Photo: MetaAI) -
7- न गुरोरधिकं तत्त्वं न गुरोरधिकं तपः। तत्त्वज्ञानात् परं नास्ति तस्मै श्रीगुरवे नमः॥
अर्थ: गुरु से बड़ा कोई तत्त्व नहीं, कोई तप नहीं। तत्त्वज्ञान सबसे उच्च है और उसके लिए गुरु को नमन है। (Photo: MetaAI) -
8- यो गुरुस्मरणं कुर्यात्, सदा पुण्यफलप्रदः। ज्ञानविज्ञानसंयुक्तं, मुक्तिपथं प्रदर्शयेत्॥
अर्थ: जो गुरु का स्मरण करता है, उसे पुण्य फल प्राप्त होता है। गुरु ज्ञान और विज्ञान से युक्त होकर मोक्ष का मार्ग दिखाते हैं। (Photo: Pexels) -
9- शिष्यादिच्छेत्परां विद्याम्, शिष्यादिच्छेत्सुखं महत्। शिष्यादिच्छेत्परां कीर्तिं, तस्मात् शिष्यं समाचरेत्॥
अर्थ: जो गुरु अपने शिष्य से श्रेष्ठ ज्ञान, सुख और कीर्ति चाहता है, उसे शिष्य को आदर और योग्य मार्गदर्शन देना चाहिए। (Photo: Pexels) -
10- ध्यानमूलं गुरोर्मूर्ति, पूजामूलं गुरोः पदम्। मन्त्रमूलं गुरोर्वाक्यं, मोक्षमूलं गुरोः कृपा॥
अर्थ: ध्यान का मूल गुरु की मूर्ति है, पूजा का मूल गुरु के चरण हैं, मंत्र का मूल गुरु का वचन है और मोक्ष का मूल गुरु की कृपा है। (Photo: Pexels) Teacher’s Day पर अपने फेवरेट शिक्षक को दें यह सात ट्रेंडी गिफ्ट, देख हो जाएंगे खुश
