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निर्देशक-आशीष आर मोहन, कलाकार- अरशद वारसी, जैकी भगनानी, ल़ॉरेन गाटलीब, दानिश हुसैन, दलीप ताहिल। (फोटो: बॉलीवुड हंगामा)
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अगर एक ही फिल्म में आपको थोड़ा हंसने को भी मिल जाए और थोड़ी बोरियत भी हो जाए तो उसे क्या कहेंगे? ज्यादा सोचने की जरूरत नहीं है। इसे आप ‘वेलकम टू कराची’ कह सकते हैं। अरशद वारसी की वजह से इसमें आपको कई जगहों पर जोरदार हंसी छूटेगी और आप ठहाके लगाने को मजबूर हो जाएंगे। (फोटो: बॉलीवुड हंगामा)
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लेकिन आपको इसका एहसास भी जल्द हो जाएगा कि हंसी पर नजर भी लगती है। फिल्म में आपके सामने कई लम्हे ऐसे भी आएंगे जब आपको लगेगा कि कहां फंस गए। वैसे यह फिल्म ‘डंब और डंबर’ का रूपांतर है। यह उल्लेख इसलिए किया जा रहा है ताकि आपको पता चल जाए कि निर्देशक की मौलिकता को लेकर आपकी कोई राय हो तो उसे दुरुस्त कर लें। (फोटो: बॉलीवुड हंगामा)
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अरशद वारसी ने इसमें शम्मी और जैकी भगनानी ने केदार नाम के किरदार निभाए हैं। केदार के पिता की अपनी क्रूज बोट है। शम्मी और केदार एक क्रूज बोट पर पार्टी के दौरान मस्ती कर रहे होते हैं। अचानक उनको मालूम होता है वे तो कराची पहुंच गए। बिना पासपोर्ट और वीजा के उनकी हालत वैसी हो जाती है मानो किसी घने जंगल में खेती में काम आने वाले बैल घुस आए हैं। (फोटो: बॉलीवुड हंगामा)
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वे उस पाकिस्तान में होते हैं जहां तालिबान का दबदबा है और दहशतगर्दों का आतंक। दोनों को वहां से बचना है और जान बचाकर हिंदुस्तान वापस आना है। दोनों बौड़म किस्म के हैं इसलिए मुसीबत में फंसते जाते हैं और किसी तरह निकलते भी जाते हैं। (फोटो: बॉलीवुड हंगामा)
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पूरी फिल्म में यही होता रहता है। कमजोर पटकथा और जैकी भगनानी की बेहद कमजोर एक्टिंग की वजह से इसे झेलना कठिन होता जाता है। (फोटो: बॉलीवुड हंगामा)
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इस प्रक्रिया में आपका साबका पाकिस्तान की खुफिया संस्था की महिला जासूस (ल़ॉरेन गाटलीब) से भी होता है। हालांकि गाटलीब की भूमिका बड़ी नहीं है लेकिन इसका अंदाजा तो हो ही जाता है कि पाकिस्तान में आइएसआइ तालिबान से क्यों नहीं निबट पा रही है।
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निर्देशक के दिमाग में शायद यह बात रही है कि मौजूदा पाकिस्तान में तालिबानी ताकतों के बारे में जो कहानियां आती हैं उसका इस्तेमाल किया जाए। इसमें बुरा कुछ भी नहीं है। लेकिन इसे दिखाने वाले ज्यादातर संवाद और दृश्य स्टीरियोटाइप वाले हैं। (फोटो: बॉलीवुड हंगामा)
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निर्देशक की टीम ने अगर शोध किया होता और पटकथा टीम ने मेहनत की होती तो फिल्म ज्यादा चुस्त हो सकती थी। जैकी भगनानी को अभी भी अभिनय की किसी अच्छी वर्कशाप में भाग लेने की जरूरत है। अरे भाई, हीरोगीरी करनी है तो मेहनत भी करनी होगी। वे हास्य पैदा करने वाले संवाद भी सपाट तरीके से बोलते हैं और दयनीय हो जाते हैं। (फोटो: बॉलीवुड हंगामा)
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फिल्म के एक गाने के बोल हैं ‘चल भाग नहीं तो………लात पड़ेगी’। आप अनुमान लगा सकते हैं कि निर्देशक ने हंसाने के लिए क्या-क्या जुगत भिड़ाई है। आशीष आर मोहन ने इसके पहले ‘खिलाड़ी 786’ भी निर्देशित की थी। उस फिल्म में हंसी के पटाखे ज्यादा थे, इसमें हास्य की फुलझड़ियां भर हैं। (फोटो: बॉलीवुड हंगामा)